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Saturday, May 6, 2023

ग्रीष्म ऋतु की आहार-विहार अनुशंसायें

ऋतु परिवर्तन हो रही है और ग्रीष्म ऋतु आ चुकी है । ऋतु परिवर्तन के साथ आहार-विहार में भी परिवर्तन करना आवश्यक है ताकि हमारा शरीर संतुलित और परिणामस्वरूप स्वस्थ्य रह पाये ।


ग्रीष्म ऋतु में दो माह होते हैं । यह दो माह हैं जेठ और आषाढ़ । प्रस्तुत लेख में ग्रीष्मकाल के आहार-विहार की अनुशंसायें आप सब के लिये दी जा रही हैं । आशा है पसंद आयेंगी और आप इन्हें अपनाकर लाभान्वित होंगे।


       एक मान्यता के अनुसार वसंत ऋत में चैत्र तथा बैसाख माह आते हैं और ग्रीष्म ऋतु में ज्येष्ठ (जेठ) तथा आषाढ़ माह आते हैं। एक अन्य मतानुसार वसंत ऋतु में फाल्गुन और चैत्र माह आते हैं तथा ग्रीष्म ऋतु में बैसाख और ज्येष्ठ माह आते हैं। ग्रेगेरियन माह के अनुसार लगभग मध्य फरवरी से मध्य अप्रैल तक वसंत तथा मध्य अप्रैल से मध्य जून तक ग्रीष्म ऋतु आती है।

ग्रीष्म ऋतु के लक्षण
    चूँकि ऋतु का प्रभाव मनुष्य के शरीर, खान-पान तथा रहन सहन पर पड़ता है अतः ऋतु का निर्णय ऋतु के लक्षण के अनुसार लेना उचित होता है।


    वसंत ऋतु में खिले फूल अब ग्रीष्म ऋतु के दिन और रात के बढ़ते तापमान तथा वातावरण में कम होती नमी के कारण मुरझाने लगते हैं, बगीचे में तितलियाँ और भौंरों की संख्या कम हो जाती है। प्रकृति का सौंदर्य कम होने लगता है तथा सूखापन बढ़ने लगता है।


    दिन में भूख कम और प्यास अधिक लगने लगती है और पाचक अग्नि मंद होने के कारण भूख कम लगने लगती है। कफ की समस्या में कमी आती है और पित्त की समस्या (त्वचा सम्बंधी समस्यायें जैसे घमौरियाँ, कील-मुहाँसे, अपच, उल्टी और दस्त इत्यादि) की अधिकता देखने में आती है।


    दिन में घर से बाहर निकलने का मन कम करता है। ग्रीष्म ऋतु में, लोग,पंखे के साथ-साथ कूलर और ए.सी. भी चलाने लगते हैं।


 आयुर्वेदिक अनुशंसायें: 

1. ग्रीष्म ऋतु में सामान्य तौर पर मीठे रस के आहार का सेवन उत्तम माना जाता है किंतु खट्टे रस के आहार का सेवन नहीं करना चाहिये ।

2. प्रकृति में ग्रीष्म ऋतु में पित्त बढ़ने की संभावना होती है । यदि शरीर में पित्त में वृद्धि हो (लक्षण: शरीर के तापमान में वृद्धिउल्टी लगना अथवा उल्टी होनाशरीर में जलन होनाविशेषकर पेट तथा आहार नलिका में जलन होनात्वचा में फोड़े अथवा फुंसी होनाबाल गिरना) तो कड़वेकसैले और मीठे रस के आहार का सेवन करना उत्तम होगा चूँकि इस प्रकार आहार पित्त को कम करते हैं । 

3. तीखेखट्टे और नमकीन रस के आहार का सेवन नहीं करना चाहिये क्योंकि इस प्रकार का रसशरीर में पित्त में वृद्धि करता है ।

4.  ग्रीष्म ऋतु में देसी गाय के दूध से बने घी का उपयोग आहार में करें । इस प्रकार का घीआहार को स्निग्धता प्रदान करता है तथा पित्त को नियंत्रित अवस्था में रखता है ।

5. ग्रीष्म ऋतु में प्रकृति में वात संचित होता है । यदि शरीर में वात का प्रभाव (लक्षण: शरीर मेंघुटने मेंगर्दन और कमर में दर्द होनागैस बनानाडकार आनाबवासीर होनाएकाग्रचित्त न हो पानामन भागनानींद कम आनात्वचा और बाल का रुखा होना ) दिख रहा है तो मीठेखट्टे और नमकीन रस के आहार का सेवन उत्तम होता है क्योंकि इस प्रकार का आहार शरीर में वात को कम करता हैकिंतु कड़वेकसैले और तीखे रस के आहार का सेवन नहीं करना उत्तम होता है क्योंकि ऐसा आहार शरीर में वात में वृद्धि करता है ।

6. ग्रीष्म ऋतु में पचने में हल्के (लघु)ठंडी तासीर केस्निग्धजलांश युक्त तथा ठंडी तासीर के आहार का सेवन श्रेष्ठ होता है । 

7. इस के विपरीत पचने में भारी (गुरु अथवा गरिष्ठ)खुश्कगर्म तासीर के आहार और मसालों का सेवन नहीं करना चाहिये (गर्म तथा ठंडी तासीर में खाद्य पदार्थों की जानकारी के लिये कृपया दिये गये लिंक को क्लिक करें: (लिंक

8. बेल वाली सब्ज़ियों  में  बहुत पानी होता हैइन सब्ज़ियों को जैसेकुम्ड़ाहलौकीगिल्की और तुरई जैसी सब्ज़ियों  का सेवन करें । 

9. मूँग की दाल का सेवन श्रेष्ठ हैमसूर और अरहर  की दाल का सेवन कभी-कभी कर सकते हैं किंतु उड़द की दाल का सेवन ग्रीष्मकाल में नहीं करें क्योंकि यह दाल गरिष्ठ होती है ।

10.जौ का सेवन उत्तम होता है। जौ उपलब्ध न होने पर गेहूँ का सेवन भी किया जा सकता है। चावल खुले बर्तन में पका कर ही सेवन करें। 

11.हरी पत्तेदार सब्ज़ी गुरु (गरिष्ठ) स्वभाव की होती है अतः ग्रीष्म ऋतु में इनका सेवन नहीं करें।

12.चूँकि भुने जौ और चने के सत्तू की तासीर ठंडी होती है अतः ग्रीष्मकाल में सत्तू के सेवन की अनुशंसा हैयह स्वास्थ्य हेतु लाभकारी होता है ।

13. ग्रीष्म काल में जठराग्नि मंद हो जाती है तथा भूख कम लगती है अतः भूख से कम भोजन ग्रहण करे। 


 पेय पदार्थ की अनुशंसा

1.प्यास लगते ही सामान्य तापमान अथवा घड़ेसुराही अथवा छागल के स्वच्छ जल को ग्रहण करते रहें । ध्यान रखें फ्रिज के ठंडे पानी अथवा बर्फ वाले पानी का सेवन नहीं करें । धूप से घर में आ करजब पसीना सूख जाये और शरीर का तापमान सामान्य हो जाये तब जल ग्रहण करें। 

2. एक लीटर में पुदीने की 3 से 4 पत्तियों को धोकर डालें साथ में धुले हुये नींबू का एक छोटा टुकड़ा अथवा खीरे (जो कड़वा न हो) के एक छोटे टुकड़े को भी पानी में डालें और 3 से 4 घंटे के लिये पानी को स्थिर रखें फिर इस पानी को पीने में उपयोग करें । इस प्रकार के पानी से पित्त को संतुलित रखा जा सकता है ।

3. कच्चे आम और पुदीना से बने पने का सेवन करना लू से बचने में लाभदायक होता है ।

4. भुने ज़ीरे से बने जलज़ीरा का सेवन भी ग्रीष्म ऋतु में लाभदायक होता है ।

5. गाय के साथभैंस के दूध का भी ग्रीष्म ऋतु में सेवन किया जा सकता है । दूध को कुछ देर चन्द्र भगवान की किरणों में रख कर शीतल कर लें फिर सेवन करें दूध अधिक लाभकारी हो जायेगा।

6. गन्ने का रसकोकम का शर्बतखस का शर्बत और नींबू का शर्बत जैसे प्राकृतिक शर्बत का ग्रीष्मकाल में सेवन अनुशंसित है ।

7. दूध के साथ फल का सेवन नहीं करें यह विरुद्ध आहार है आर्थात ग्रीष्मकाल में मिलने वाले फलों के शेक (जैसे आम और दूध से बना मैंगो शेक)फलों की आईसक्रीम और कस्टर्ड इत्यादि का सेवन का निषेध है।

8. ग्रीष्मकाल में दही और श्रीखंड का सेवन नहीं करेंचूँकि यह गुरु (गरिष्ठ) होते हैं (दहीलस्सीश्रीखंड और छाछ की जानकारी के लिये कृपया दिये गये लिंक को क्लिक करें: लिंक

9. वात दोष से प्रभावित व्यक्ति खट्टे छाछ में सेंधा नमक मिला कर सेवन कर सकते हैं ।

10.पित्त दोष से प्रभावित व्यक्ति ताज़े   छाछ में मिश्री मिला कर सेवन कर   सकते हैं ।

11. कफ दोष से प्रभावित व्यक्ति छाछ में त्रिकटु (सौंठकाली मिर्च और पीपली) मिला कर सेवन कर सकते हैं।

12. कृपया कोल्ड ड्रिंक का सेवन नहीं करें । इसमें सोडा होता है जो कि पाचन को खराब कर सकता हैसाथ ही इसमें रासायनिक रंग और परिरक्षक (प्रिज़र्वेटिव) होते हैं जो कि शरीर को हानो पहुँचाते हैं । कोल्ड ड्रिंक में किसी भी प्रकार के लाभदायक पौष्टिक तत्व का आभाव होता है ।


ग्रीष्म ऋतु हेतु पारंपरिक अनुशंसायें

    ग्रीष्म ऋतु में दो माह होते हैंयह हैं जेठ एवं अषाढ़। साथ ही बैसाख  माह के कुछ दिन भी ग्रीष्मकाल में  शामिल होते हैं । इन महीनों हेतु पारम्परिक आहारीय तथा विहारीय अनुशंसायें निम्नानुसार हैं  :  


परम्परागत एवं अनुभवजन्य ज्ञान आधारित अनुशंसाये :

1.इस माह में बेल तथा बेल के उत्पाद जैसे बेल का मुरब्बा और बेल के शर्बत का सेवन करें क्योंकि बेल में कटु (कड़वा)तिक्त (तीखा) और कसैला (जिसके सेवन से जीभ ऐंठे) रस के गुण हैइसका वीर्य उष्ण (गर्म तासीर) हैअत: कफ दोष को नियंत्रित करता है।

2.इस माह में तेलतिलहन और स्निग्ध खाद्य पदार्थ का सेवन नहीं करें क्योंकि इस माह में जठराग्नि मंद होती है और तैलीय तथा स्निग्ध पदार्थों का पाचन दुष्कर होता है । ऐसा करने से अपच की स्थिति उत्पन्न हो सकती है ।


जेठ माह हेतु पारंपरिक आहारीय अनुशंसायें

1. जेठ के माह में राई और सरसों की तरह गर्म तासीर के तेल का सेवन नहीं करने की अनुशंसा है बल्कि ठंडे तासीर के तेल के उपयोग की अनुशंसा है ।

2.  जेठ के माह में दोपहर को यात्रा नहीं करें बल्कि शयन करें ।


जेठ माह हेतु पारम्परिक विहारीय अनुशंसा: 

1.  जेठ के माह में दोपहर को यात्रा नहीं करें बल्कि  शयन करें ।

2.चंद्र भगवान के उदय होने के पश्चातचंद्र भगवान की शीतल किरणों में कुछ देर अवश्य टहलेंयह स्वास्थ्यप्रद है होता ।


अषाढ़ माह हेतु पारंपरिक आहारीय अनुशंसायें

   अषाढ़ माह में बेल का सेवन करना मना है ।


अषाढ़ माह हेतु पारंपरिक विहारीय अनुशंसायें

अषाढ़ माह में जब आसमान में बादल छाने लगते हैंहवा चलने लगती है और मौसम कुछ ठंडा हो जाता है तब खेलने की अनुशंसा है ।


ग्रीष्म ऋतु हेतु सामान्य विहारीय अनुशंसा: 

1. जेठ के माह में दोपहर को यात्रा नहीं करें बल्कि  ठंडे कमरे में शयन करें ।

2. चंद्र भगवान के उदय होने के पश्चातचंद्र भगवान की शीतल किरणों में कुछ देर अवश्य टहलेंयह स्वास्थ्यप्रद होता है ।

3. यदि दिन में बाहर निकलना हो तो भूखे पेट और प्यासे न जायें

4. जब बाहर निकलें तो टोपीपगड़ीगमछा लगा कर अथवा छाता लगा कर ही निकलें ।

5. धूप में निकलने के पूर्व इस प्रकार वस्त्र धारण करें कि धूप सीधे शरीर पर नहीं पड़े । विशेषकर ध्यान रखें कि शीशचेहेराकानहाथ और पैर के पंजे पर सीधे धूप नहीं पड़े । अच्छा होगा कि मोज़े और जूते पहनकर ही धूप में निकलें और साथ ही आँखों में धूप का चश्मा लगायें ।

6. धूप से आ कर तुरंत हाथपाँव और मुँह न धोयेंस्नान नहीं करें । धूप से अंदर आ कर पहले पसीना सूखने देंशरीर के तापमान को सामान्य होने दें फिर स्वच्छ जल से हाथपाँव और मुँह धोयें अथवा स्नान करें ।

7. चूँकि ग्रीष्म ऋतु में प्रकृति में वात संचित होता है अतः व्यायाम कम करना चाहिये अथवा जिन्हें व्यायाम करना आवश्य्क हो वही व्यायाम करें ।

8.चंद्र भगवान के उदय होने के पश्चातचंद्र भगवान की शीतल किरणों में कुछ देर अवश्य टहलेंयह स्वास्थ्यप्रद है होता ।

9. शरीर में चंदन का  लेप लगायें। यह शरीर को ठंडा रखेगा ।


ग्रीष्म ऋतु हेतु घरेलू उपाय

1. घर के बाहरजेब में छोटा प्याज़ रख कर निकलें ।

2. यदि लू लगे तो प्याज़ का रसहाथ और पैर के नाखूनों में लगायें ।  


 ध्यान दें

उपरोक्त वर्णित अनुशंसायें सिर्फ स्वस्थ्य व्यक्तियों के लिये है। अन्य व्यक्ति कृपया चिकित्सक से परामर्श लें ।


आग्रह

कृपया नीचे दिये गये कमेंट बॉक्स में लेख के बारे में अपने अमूल्य विचार और सुझाव ज़रूर लिखें।


 सादर 

जय बाबा जय जिनेन्द्र सदा

Thank You for writing. Please keep in touch. Avtar Meher Baba Ki Jai Dr. Chandrajiit Singh

4 comments:

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    1. आग्रह:
      कृपया नीचे दिये गये कमेंट बॉक्स में लेख के बारे में अपने अमूल्य विचार और सुझाव ज़रूर लिखें
      *सादर*
      *जय बाबा जय जिनेन्द्र सदा*

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  2. बहुत ज्ञानवर्धक लेख.जीवन में लागू करने की पूरी कोशिश करेंगे

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपको प्रोत्साहित करने के लिये, सादर जय प्रियतम अवतार मेहेरबाबा की जय जय जिनेन्द्र सदा 💐💐

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