वर्षा ऋतु
के पश्चात शरद ऋतु आती है जिसमें दो मास, अश्विन (क्वाँर) तथा और कार्तिक आते हैं । शरद ऋतु में आकाश से बादल
हटा जाने से होने वाली प्रखर धूप के कारण मौसम गर्म और नमी युक्त हो जाता है जिससे
वातावरण में सूक्ष्म तत्व अधिक सक्रिय हो जाते हैं तथा स्वास्थ्य का तथा आहार-विहार
का ध्यान रखना बहुत आवश्यक हो जाता है ।
शरद ऋतु एवं स्वास्थ्य
सम्बंधी समस्यायें:
आयुर्वेद
के अनुसार इस ऋतु में प्रकृति में पित्त दोष प्रकुपित होता है तथा वात दोष का शमन
होता है किन्तु जठरागनी मन्द रहती है ।
पित्त, अग्नि तथा जल महाभूत से निर्मित होता है । पित्त
के कारण रक्त धातु दूषित होता है । इस ऋतु में हाथ पाँव में जलन, मुँह में छाले होना, दुर्गन्धयुक्त पसीना आना, चक्कर
आना, आँखें लाल होना, आँखे जलना, त्वचा संबंधी समस्यायें होना, बालों का झड़ना, बालों का सफेद होना, मासिक धर्म का
स्त्राव अधिक होना, एसिडिटी, सीने में जलन होना, खट्टी
डकारें, पीलिया होना, पीली पिशाब होना,
त्वचा में पीलापन होना तथा सर दर्द, हो सकता है । यदि पित्त्त दोष को संतुलित रखा जा
सके तो स्वास्थ्य की रक्षा सरलता से की जा सकती है ।
शरद ऋतु एवं अनुशंसित
एवं निशिद्ध रस (स्वाद):
1. शरद ऋतु में मीठे, कड़वे
(करेला और नीम आदि) और कसैले (आँवला, कच्चा अमरूद, पालक, मसूर आदि) रस (स्वाद) की खाद्य सामग्री के
सेवन करने की अनुशंसा है । यह रस पित्त को नियंत्रित करते हैं ।
2. साथ ही खट्टे, नमकीन
तथा तिक्त (तीखे) रस (स्वाद) वाली खाद्य सामग्री का सेवन नहीं करने की अनुशंसा है
क्यों कि यह रस, पित्त की वृद्धि करते हैं ।
शरद ऋतु एवं पारम्परिक
आहारीय अनुशंसा:
अश्विन
(क्वाँर) माह प्रारम्भ हो चुका है, पारम्परिक माह ज्ञान के अनुसार इस माह में गुड़ के सेवन की अनुशंसा है
किंतु करेले का सेवन का निषेध है ।
शरद ऋतु में पित्त दोष को संतुलित करने के लिये मह्त्वपूर्ण आहार-विहार सम्बंधी अनुशंसायें:
1.चूँकि मौसम में गर्मी बढ़ी है अत: इस ऋतु में शीत और लघु आहार का सेवन करना चाहिये अर्थात पचने में हल्के आहार का सेवन करें गरिष्ठ आहार जैसे मिठाईयाँ, तली हुई मसालेदार व्यंजन का सेवन नहीं करें और गर्म मसालों (जैसे लौंग, काली मिर्च, दालचीनी, मेथी दाना, जायफल, पीपली, जावित्री, तेज़ पत्ता) का उपयोग नहीं करें बल्कि ठंडे मसालों (धनिया, सौंफ, जीरा एवं मिश्री आदि ) का उपयोग करें ।
2. आवश्यक मात्रा में ही भोजन करें तथा भूख अच्छी प्रकार से लगने पर ही भोजन करें । साथ ही ध्यान रखें कि लंबे समय तक भूखे नहीं रहें ।
3.पित्त को नियंत्रित करने के लिये सर्वाधिक महत्वपूर्ण आहार है देसी गाय के दूध से निर्मित घी । नारियल का तेल भी प्रकृति में ठंडा होता है । अत: आहार में देसी गाय के दूध से बने घी का और नारियल के तेल का ही उपयोग करें ।
4.गर्म तासीर के तेल, जैसे सरसों और तिल का उपयोग अभी आहार में नहीं करें ।
5.हल्की दालें जैसे मूँग और अरहर का उपयोग करें, मसूर की दाल का भी सेवन किया जा सकता है किंतु अन्य गरिष्ठ दालों का उपयोग नहीं करें ।
6.पुराना चावल, गेहूँ, जौ और जवार जैसे अनाजों का सेवन करना चाहिये । चावल को प्रैशर कुकर में नहीं पकायें बल्कि इसे बर्तन में पकायें ।
7.लौकी, गिल्की, कच्चा केला, कद्दू, परवल, पेठा (भूरा कद्दू अथवा बरिहा) की सब्ज़ी का सेवन करें । सुबह बरिहा के रस का सेवन करना पित्त को नियंत्रित करने के लिये लाभदायक होता है । करेले जैसी कड़वी सब्ज़ी तथा अदरक, मिर्च और काली मिर्च जैसे तिक्त मसालों का सेवन नहीं करें । सब्ज़ी बनाते समय घी अथवा नारियल के तेल का छौंका लगायें ताकि पित्त को नियंत्रित रखा जा सके ।
8.शरद ऋतु में दूध, दही, और मक्खन के सेवन की भी अनुशंसा है किन्तु दही और छाछ का सेवन नहीं करें । साथ ही, समय खमीर युक्त अथवा फर्मैंटेड भोजन जैसे ब्रैड, ढोकला, इडली, डोसा इत्यादि से भी दूर रहें ।
9.आँवले का अचार (ऐसा अचार जो बहुत मसालेदार नहीं हो) के अतिरिक्त किसी भी अन्य अचार का सेवन नहीं करें । आँवले का मुरब्बा, कैंडी और सुपारी, रस और शर्बत तथा कोकम का शर्बत तथा शहद के पानी के सेवन की भी अनुशंसा हैं ।
10.अंजीर, मुनक्का (काला), केला, सीताफल, मीठे अंगूर, पिंड खजूर, हरड़, आँवला और नारियल के पानी इत्यादि का सेवन कर सकते हैं किंतु खट्टे फ़लों का सेवन नहीं करें ।
11.पानी का सेवन करें जिसमें दिन में सूर्य की किरणें तथा रात को चन्द्र की किरणे पड़ी हों (हंसोदक), का सेवन लाभकारी होता है किंतु आज के समय में इस प्रकार का पानी उपलब्ध होना व्यवहारिक तौर पर कठिन है । अतः पीने के लिये पानी को तैयार करने की सरल विधि अपनायें जो इस तरह है :
· पानी में थोड़ा सा आँवले का चूर्ण डाल कर उबालें फिर छान कर ठंडा कर सेवन करें ।
· एक चम्मच साबुत धनिया अथवा एक चम्मच साबुत सौंफ को दो कप पानी में डाल कर उबालें, जब आधा कप पानी बचे तो इसमें थोड़ी मिश्री डाल कर घोलें । इस प्रकार से तैयार किये गये पानी को दिन में दो बार सेवन किया जा सकता है जिससे पित्त दोष नियंत्रित होता है ।
· पानी को छान कर ठंडा कर के सेवन में लें । रात को काले मुनक्के को पानी में रख दें सुबह इस पानी को पी सकरते हैं तथा मुनक्के का सेवन भी कर सकते हैं ।
12.दिन में बाहर कम निकलें । यदि निकलना आवश्यक हो तो टोपी अथवा छाता लगा कर ही बाहर निकलें । दिन में सोयें नहीं । रात्रि शीतल होती हैं अतः रात्रि में चंद्र की शीतलता में बाहर घूम सकते हैं अथवा बैठ सकते हैं ।
संदर्भ:
१.वागभट्ट ऋषि द्वारा लिखित अष्टांग हृदय, सूत्रस्थान का तीसरा अध्याय, ऋतुचर्या अध्याय ।
२. ऋषि चरक द्वारा लिखित चरक संहिता सूत्र स्थान का छँटवा अध्याय, त्स्याशितीय अध्याय ।
३.Youtube/ayurvedaforeveryone
सादर
जय प्रियतम अवतार मेहेरबाबा सदा !!!
आदरणीय महोदय,
जवाब देंहटाएंजय बाबा,
आपको यह लेख कैसा लगा, यदि आपका कोई सुझाव हो तो ज़रूर अपना कमेंट बॉक्स में लिखकर ज़रूर बताईयेगा,
जय अवतार मेहेरबाबा
डॉ. किंजल्क सी.सिंह
दो.चन्द्रजीत सिंह
कृषि विज्ञान केंद्र, रीवा (म.प्र.)
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