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Thursday, July 6, 2023

वर्षा ऋतु के श्रावण (सावन) माह में आहार विहार

ग्रीष्म ऋतु पूर्ण हो चुकी है तथा विसर्ग काल में वर्षा ऋतु प्रारंभ हो चुकी है। यह चातुर्मास का भाग है जो की व्रत, उपवास, ध्यान, पूजन, संयम और शाकाहार का समय है। इस ऋतु के दो भाग हैं श्रावण और भाद्रपद। श्रावण माह में फुहार के रूप में निरंतर वर्षा होती है जो की प्रकृति हेतु अत्यंत पोषक होती है। वातावरण में नमी बढ़ती है और तापमान कम होता है। परिवर्तित होती ऋतु के अनुसार आहारविहार संयम और अनुशासन रखने से शरीर संतुलित और स्वस्थ रहता है। इस हेतु निम्नलिखित अनुशंसाओं का पालन लाभकारी हो सकता है।


अ. वर्षा ऋतु एवं दोष: 

वर्षा ऋतु में शरीर में: 

1.वात दोष प्रकुपित होता है। 

2. वर्षा ऋतु में पित्त दोष संचित होता है।


ब. वात प्रकुपन का शरीर पर प्रभाव:

शरीर में वात दोष की वृद्धि के कारण:

1.शरीर में भारीपन लगता है।

2.शरीर के विभिन्न अंगों में तथा शरीर के जोड़ों में दर्द हो सकता है।

3. शरीर में गैस बन सकती है तथा डकार इत्यादि आ सकती है। 

4. मल कड़ा हो सकता है, मल त्याग कठिन हो सकता है और कब्ज़ जैसी समस्यायें हो सकती हैं। 


स. वात की प्रकृति:

1.वात की प्रकृति ठंडी होती है।

2.वात की प्रकृति रूखी होती है।


द. वात को संतुलित करने वाले आहार का प्रकार: 

1.आहार गर्म तासीर का होना चाहिये, ठंडा नहीं।

2.आहार स्निग्ध होना चाहिये, रूक्ष (रूखा) नहीं।

3.आहार लघु अर्थात पचने में हल्का होना चाहिये गरिष्ठ अर्थात पचने में कठिन और भारी नहीं होना चाहिये।


इ. आयुर्वेदिक अनुशंसा

वर्षा ऋतु एवं आहार रस:

अनाज, दलहन, तिलहन, सब्ज़ी, फल, दूध एवं दुग्ध उत्पाद इत्यादि का आहार तैयार करने के लिये चुनाव निम्नलिखित आहार रस के नियम के आधार पर ही करें:

1.वात को शरीर में संतुलित रखने के लिये मीठे, नमकीन और खट्टे रस के आहार का सेवन करें। 

2.वर्षा ऋतु में कड़वे, तीखे और कसैले रस की आहार का सेवन नहीं करें। 

3.वात में वृद्धि करने वाले आहार का सेवन नहीं करें बल्कि वात को कम करने वाले आहार का सेवन करें। 


पथ्यकर तथा अपथ्यकर खाद्य पदार्थ:

विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ जिनका सेवन वर्षा ऋतु में किया जा सकता है, वह इस प्रकार हैं:


सब्ज़ियाँ: 

1.वर्षा ऋतु में बेल वाली सब्ज़ियाँ जैसे लौकी, कुम्ड़ाह, गिल्की, तरोई, परवल, भिंडी, टिंडा, खीरा, ककड़ी इत्यादि का सेवन हितकर है। 

2.आलूसाबूदाना, बैंगन, गोभियाँ, मूली, फलियाँ, साग और कंद का सेवन नहीं करना चाहिये।

3.यदि साग का सेवन करना ही हो तो, साग को साफ कर, धो कर, पानी में उबाल लें। इसके उपरांत साग को पानी से निकाल कर रस निचोड़ कर अलग कर दें फिर कम तेल में भून लें। अब इस साग की सब्ज़ी बनायें।


फल: 

1.सेब, केला, देसी पका आम, नाशपाती, अनार इत्यादि का सेवन किया जा सकता है।

2.खरबूज़, तरबूज़ इत्यादि का सेवन नहीं करें।


अनाज: 

1.वर्षा ऋतु में गेहूँ की तरह स्निग्ध और जौ जैसे अनाज का सेवन किया जाना हितकर है। नये अनाज का उपयोग नहीं करें बल्कि कम से कम एक वर्ष पुराने अनाज का उपयोग करें। साथ में देसी गाय के दूध से बने घी का उपयोग करें।

2.वर्षा ऋतु में चावल का सेवन नहीं करें। यदि चावल का सेवन करना ही है तो नये चावल का सेवन नहीं करें बल्कि कमसेकम एक वर्ष पुराने चावल का सेवन करें। यदि नये चावल का सेवन करना ही हो तो पहले नये चावल को भून लें फिर खुले बर्तन में पकाने के बाद, माड़ हटा कर इसका सेवन करें। ऐसा चावल पचाने में हल्का होता है। चावल का सेवन दिन में करें।

दस्त के उपाय के रूप में चावल के माड़ का उपयोग किया जा सकता है। माड़ को तैयार करने की विधि निम्नानुसार है

चावल + चौदह गुना पानी + उबाल लें + छान लें + माड़ तैयार पायें

तैयार माड़ + छौंका (शुद्ध देसी घी + ज़ीरा + कढ़ी पत्ता + कोकम + किसा अदरक + स्वादानुसार सेंधा नमक) (कोकम खट्टा होने के बाद भी पित्त नहीं बढ़ाता है।)

3.मोटा अनाज तथा लघुधान्य प्रकृति में खुश्क होते हैं अतः वात दोष में वृद्धि कर सकते हैं। वर्षा ऋतु में इनके सेवन की मनाही है। यदि इनका सेवन करना ही हो तो साथ में देसी गाय के दूध से बने शुद्ध घी का उपयोग अवश्य करें।


दालें:

1.हरी छिल्के वाली मूँग की दाल का सेवन श्रेष्ठ होता है।

2.पतली अरहर की दाल का भी सेवन किया जा सकता है। 

3.इन दालों में शुद्ध देसी घी से छौंका लगा कर सेवन करना हितकर होता है। 

4.सोयाबीन, उड़द मसूर की दाल मटर, चने और छोले जैसी गरिष्ठ दालों का सेवन न करना हितकर होता है।


तेल और घी का उपयोग: 

1.अधिक तेल और घी में बने आहार का सेवन नहीं करें बल्कि तेल अथवा देसी गाय के दूध से बने घी का उपयोग आहार में ऊपर से अवश्य करें जैसे दाल और सब्ज़ी में ऊपर से तेल अथवा शुद्ध देसी घी को डालना, रोटी में शुद्ध देसी घी लगाना। शुद्ध देसी घी से पित्त नियंत्रित होता है।

2.अभ्यंग (मालिश) कर, वात को नियंत्रित करने के लिये तिल का तेल श्रेष्ठ है। तिल के तेल के अलावा सरसों के तेल का भी उपयोग किया जा सकता है।


दूध एवं दुग्ध उत्पाद: 

1.वर्षा ऋतु में, पाचन दुरुस्त होने की स्थित में स्वस्थ व्यक्ति, स्वस्थ देसी गाय के दूध का सेवन कर सकता है। दूध में थोड़ी सी सोंठ का चूर्ण मिला कर सेवन करना हितकर होता है।

2. इस ऋतु में भैंस के दूध का सेवन नहीं करें, यह गरिष्ठ होता है। 

3.इस ऋतु में, खोवा पनीर और चीज़ का उपयोग नहीं करें यह गरिष्ठ होते हैं।

4.सावन माह में कभीकभी दही का सेवन किया जा सकता है। दही तासीर

में गर्म होता है किंतु ध्यान रखियेगा कि खीरे और दही का रायता, अथवा दही और उड़द की दाल से बने दही बड़े का सेवन नहीं करें।

5.पतले, देसी गाय के दूध से बने ऐसे ताज़े छाछ का सेवन करें जो की खट्टा नहीं हो। छाछ संबंधी अधिक जानकारी आगे लेख में दी गई है।

6.वर्षा ऋतु में सीमित मात्रा में देसी गाय के दूध से बना घी का, आहार के साथ सेवन करना हितकर होता है।


अन्य खाद्य पदार्थ: 

श्रावण में शाकाहार का ही सेवन करें। यह सुपाच्य होते हैं। माँसाहार जैसे खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करें यह गरिष्ठ होते हैं।


आयुर्वेद के अनुसार वर्षा ऋतु में पेय जल का उपयोग: 

1.पानी उबालते समय चौथाई अथवा आधा चम्मच अजवाईन अथवा ज़ीरा अथवा 1 अथवा 2 काली मिर्च अथवा 2 लौंग अथवा सोंठ का छोटा टुकड़ा 1 लीटर पानी में डाल कर तब तक उबालें जब तक पानी की मात्रा आधी हो जाये। अब इस पानी को छान लें। इस तरह से तैयार पानी को ठंडा कर अथवा गुनगुना भी पिया जा सकता है। ऐसा करने से औषधीय जल तैयार होगा जिसके सेवन से शरीर में वात संतुलित रहेगा।

2.वर्षा ऋतु में शुद्ध जल को उबालकर ठंडा करें फिर एक गिलास पानी में 1 चम्मच पुराना शहद मिला कर सेवन करना भी हितकर होता है।


पाचक अग्नि बढ़ाने के लिये: 

1.खाने के पूर्व सोंठ पर नमक लगाकर चबाचबा कर खायें।

2.रोटी पर, चावल, दाल और सब्ज़ी में ऊपर से घी और तेल डाल का खायें।

3.खाने में ताज़ा दही और पतला छाछ, जो खट्टा नहीं हुआ हो, कम मात्रा में खाया जा सकता है। छाछ को काली मिर्च + पीपली + सोंठ का त्रिकटु चूर्ण का 2 से तीन चुटकी डाल सकते हैं। अब दही को ज़ीरा + कढ़ी पत्ता + हींग से छौंक सकते हैं और स्वादानुसार काला नमक भी डाला जा सकता है।

4.सोंठ चूर्ण + गुड़ + शुद्ध देस घर में बना घी मिला कर छोटा लड्डू बना कर सेवन करें, इससे पाचन अच्छा होगा।

5.अचार और मूँग के पापड़, पुदीने की चटनी का सेवन कर सकते हैं।


आहार के बाद: 

देसी पान का सौंफ,अजवाईन, लौंग, जावित्री और इलायची इत्यादि के साथ सेवन कर सकते हैं। यह आहार के पाचन में सहायक होते हैं।


आहार कब और कितना करें: 

चूँकि वर्षा ऋतु में पाचक अग्नि मंद होती है अतः

1.भूख लगने और भूख खुलने पर ही आहार लें।

2.पूरी तरह पेट भर कर आहार नहीं लें, बल्कि पेट पूरी तरह से भरने के कुछ पहले आहार लेना रोक दें।

3.सूर्यास्त के पूर्व शाम भोजन ग्रहण करें।


अनुभवजन्य अनुशंसा:

1.श्रावण माह में हरड़ (हरितकी) के सेवन की अनुशंसा है  जिसकी प्रकृति गर्म होती है तथा यह लघु (पचने में हल्का होता है)। सेवन की विधि: हरितिका चूर्ण 1 से 2 ग्राम + सेंधा नमक + ऊपर से गुनगुने पानी सेवन करें। यहवायु के अनुमोलन के लिये पेट अच्छे से साफ होने के लिये लाभकारी है।

2.श्रावण माह में हरी पत्तेदार सब्जियाँ, साग और नींबू के सेवन का निषेध है।


आधुनिक आहारीय ज्ञान:

वर्षा ऋतु में अपच होना, अजीर्ण होना, पित्त बढ़ना (एसिडिटी होना) पेट खराब होना, दस्त लगना, बुखार आना होता है। 

1.शुद्ध पेय जल का ही सेवन करें। पेय जल को पहला उबाल आने के बाद 21 मिनट तक उबालें, फिर ठंडा कर साफ धुले हुये सूती के कपड़े से छान कर सेवन करें।

2.वर्षा ऋतु में वातावरण में नमी और गर्मी की अधिकता के कारण सूक्ष्मजीवों की संख्या और गतिविधि तेजी से बढ़ती है जो की आहार को जल्द ही दूषित कर सकते हैं, अतः ताज़े और तापमान में गर्म आहार के सेवन की अनुशंसा है। रखे हुये बासी और ठंडे भोजन का सेवन कतई नहीं करें।

3.बाहर बने आहार की गुणवत्ता के प्रति आश्वस्त होना कठिन है अतः घर की रसोई में तैयार आहार का ही सेवन करें।

4.भोजन और पानी को हमेशा ढक कर रखें।


वर्षा ऋतु एवं विहार:

1.वात के निवारण हेतु शरीर में स्नान के पूर्व तिल के तेल की मालिश की जा सकती है।

2.त्वचा विकार से बचने हेतु 100 ग्राम नारियल के तेल में 5 ग्राम कपूर मिला कर स्नान के बाद शरीर पर लगाया जा एकता है। घमौरियाँ हों तो हल्दी चूर्ण और कपूर मिला कर लगायें। 

3.वात के कारण मन को एकाग्रचित्त करना कठिन होता है। मन को एकाग्रचित्त करने के लिये ध्यानपूजन करना लाभकारी हो सकता है। 

4.व्यायाम करने से वात में वृद्धि हो सकती है अतः हल्का फुल्का व्यायाम ही करें।

5.दिन में निद्रा नहीं लें।

6.समयसमय पर नाखून काटें, खाना खाने के पहले और बाद में साबुन और साफ पानी से हाथ धोयें, कुल्ला करें, सुबह और शाम मंजन करें, रोज़ साफ पानी और साबुन का उपयोग कर स्नान करें, साफ, धुले हुये तथा इस्त्री किये हुये वस्त्र धारण करें।

7.ए.सी. और कूलर का उपयोग तथा छत पर ठंडी हवा में निद्रा लेना अब बंद कर देना चाहिये क्योंकि क्योंकि ठंडी हवा से वात दोष में वृद्धि होती है।

8.मच्छरों और कीड़ों से बचने के लिये मच्छरदानी का प्रयोग करें।

9.वर्षा में भीगें नहीं, कीचड़ से बचें,अंधेरे में न जायें।

10.साफ और सूखी तैलिये का ही उपयोग करें और ऐसे ही वस्त्रों को धारण करें।

11. छाता, बरसाती, बरसाती चप्पल और जूते तथा टॉर्च, लालटेन का उपयोग करें। आवश्यकतानुसार घर की मरम्मत करवायें, घर साफसुथरा रखें और घर के आसपास पानी एकत्रित नहीं होने दें जिससे, मच्छर, मक्खी और कीटपतंगे पैदा नहीं होंगे।

12.इस मौसम में मन प्रफुल्लित, कल्पनाशील और सृजनात्मक हो जाता है, इस अवसर का लाभ लेते हुये सृजनात्मक गतिविधियों जैसे लेखन, शिल्पकला, चित्रकला, सिलाई और कढ़ाई इत्यादि में भाग लेना हितकर होता है।


 ध्यान दें: 

ऊपर दी गई अनुशंसा सिर्फ स्वास्थ्य व्यक्तियों के लिये है। अन्य व्यक्ति चिकित्सक से परामर्श लेने की कृपा करें।


संदर्भ: 

1.चरक संहिता सूत्रस्थान अध्याय 27

2. सुश्रुत संहिता सूत्रस्थान 45

3.अष्टांग हृदय सूत्रस्थान अध्याय 5

4. अष्टांग हृदय सूत्रस्थान अध्याय 6


सादर

प्रियतम अवतार मेहरबाबा की जय, जय जिनेंद्र 

Thank You for writing. Please keep in touch. Avtar Meher Baba Ki Jai Dr. Chandrajiit Singh

1 comment:

  1. कृपया अपने विचार और सुझाव कमेंट बॉक्स में अंकित करने की कृपा करें, सादर जय बाबा जय जिनेंद्र सदा 😇😇🌈🌈🙏🙏

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