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Tuesday, April 9, 2024

शारदेय नवरात्रि हेतु आहार

*जय माँ शारदा*
*नवरात्रि की बधाईयाँ और शुभकामनायें कृपया स्वीकार हों,* 

बसंत ऋतु में शरीर में कफ प्रकुपित रहता है जिस कारण खाँसी, ज़ुखाम, कफ, साँस लेने में तकलीफ, अपच और अजीर्ण होता है। इन तकलीफों से बचने के लिये कफ को नियंत्रित करना तथा कुछ सावधानियाँ बरतना आवश्यक है।

नवरात्रि में आयुर्वेदिक तथा आधुनिक पोषण आहार के अनुसार निम्नलिखित उपाय अपनाना लाभकारी होगा -

1.नीम की कड़वी गोलियों का सेवन करें : नवरात्रि के प्रत्येक दिन सुबह खाली पेट कड़वी नीम की कोपलों (नई पत्तियों) की छोटी छोटी दो गोलियाँ (6 से 7 पत्तियाँ, थोड़ा सा सेंधा नमक और  3 काली मिर्च को पीस कर,एक से दो गोली तैयार करें)  प्रति व्यक्ति सेवन करें। नीम के कड़वे स्वाद से, शीत काल में शरीर में एकत्रित कफ समाप्त होने में सहायता मिलेगी।

2.उपवास, फलाहार अथवा अल्पाहार करें : कफ, पृथ्वी (अनाज) तथा जल (पानी) महाभूत से निर्मित होता है। अतः कफ को हटाने के लिये सर्वश्रेष्ठ निर्जला व्रत होता है। यदि निर्जला व्रत करना सम्भव नहीं हो तो अनाज, दलहन और तिलहन का सेवन नहीं करें।सिर्फ फलाहार, फलों के रस इत्यादि का सेवन करें।

 3. इन स्वाद के आहार का सेवन करें : मीठे, खट्टे और नमकीन आहार का सेवन नहीं करें अथवा कम करें ताकि शरीर में कफ नहीं बनें बल्कि कड़वे, तीखे और कसैले आहार का सेवन करें जिससे शरीर में कफ कम हो सके।

 4. भुने अथवा सिंके आहार उत्तम हैं : तले आहार और तिलहन का सेवन नहीं अथवा कम सेवन नहीं करें बल्कि भुने और सिंके आहार का सेवन करें।

 5. सात्विक आहार श्रेष्ठ : सात्विक आहार का सेवन करें, तामसिक आहार का सेवन नहीं करें। सात्विक आहार पचने में सरल, हल्का, ताज़ा शाकाहार होता है जो कि सतो गुण प्रधान होता है तथा इच्छाओं को कम कर विवेक को जागृत करता है। तामसिक आहार गरिष्ठ, बासी, माँसाहार, खमीरयुक्त आहार,  मद्य और नशीले पदार्थ, तमो गुण प्रधान आहार जो इच्छाओं को बढ़ाने वाला होता है तथा विवेक को समाप्त कर क्रोध बढ़ाने वाला होता है।

 6. गुनगुना जल श्रेष्ठ : नवरात्रि में गुनगुने जल का सेवन करें।

 7.वैज्ञानिक दृष्टिकोण :  वैज्ञानिक रूप से शारदेय नवरात्रि तथा चैत्र नवरात्रि के समय मौसम में  परिवर्तन हो रहा होता है  शारदेय नवरात्रि में वर्षा और चिपचिपी गर्मी से ठंड या रही होती है तथा चैत्र नवरात्रि में ठंड से गर्मी का मौसम आता  है  दोनों ओर मौसम के परिवर्तन के बीच नवरात्रि आती है  नवरात्रि के नौ दिनों के दौरान तापमान और नमी सूक्ष्मजीवों  की वृद्धि के अनुकूल होता है जिस कारण  वातावरण में सूक्ष्मजीवों की संख्या अधिक होती है जो की आहार और पे जल को दूषित कर सकते हैं  अतः घर पर ही साफ सफाई से बने ताज़े, हल्के सुपाच्य, बिना खमीर के आहार का सेवन करें । इन नौ दिनों में अचार इत्यादि नहीं बनायें।

8.साफ़-सफ़ाई का ध्यान: शरीर की, वस्त्रों की,  घर की तथा घर के आसपास की सफाई का विशेष ध्यान रखें । 

9. आहार-विहार और व्यवहार : आहार-विहार और व्यवहार को संयमित, विवेकपूर्ण  तथा सौम्य रखें । स्नान, ध्यान, पूजन, प्राणायाम तथा योगासन करें । प्रसन्नचित्त रहें । धूप में निलते समय धूप का चश्मा लगा कर और कानों को गमछे से ढककर निकलें  धूप से लौटकर तुरंत पंखे, कूलर और एयर कंडीशनर की ठंडी हवा में नहीं बैठें और तुरंत पानी नहीं पीयें     

*कृपया ध्यान दें:*
उपरोक्त उपाय शिशुओं, बच्चों, बुज़ुर्गों, गर्भवती बहनों, स्वास्थ्य लाभ ले रहे चिकित्सक की देखरेख में चल रहे भाई-बहनों को आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श लें।
यह संकलन मात्र सूचनार्थ है।

आग्रह: 
कृपया लेखे के बारे में अपने विचार, नीचे दिये गये कमेंट बॉक्स में कृपया अवश्य लिखें और प्रोत्साहित करें 

 *सादर*
*प्रियतम अवतार मेहेरबाबा की जय जय जिनेन्द्र सदा, जी मेहरामेहर * 
🙏🏻🌈🌈😇😇 🙏🏻


Sunday, March 17, 2024

स्पॉन्डिलियोसिस (गर्दन और पीठ के दर्द) का प्राकृतिक उपचार

आजकल की आधुनिक जीवन शैली को अपनाने के कारण काफी अधिक संख्या में लोग सर्वाइकल अर्थात (गर्दन) के तथा लम्बर अर्थात पीठ (रीढ़ की हड्डी) के स्पॉन्डिलियोसिस नामक दर्द की समस्या से जूझते मिल जाते हैं। ऐसा बताया जाता है कि प्राकृतिक चिकित्सा में इस समस्या का उपचार है। आईये जानें इस उपचार को:

 उपचार: 
 इस समस्या के प्राकृतिक निराकरण के हेतु निम्नलिखित कार्य करें: 

सामग्री:
ब्राम्ही: 20 पत्ते  
काली मिर्च: 20 दाने 
बादाम: 1 नग 
देसी मिश्री: 10 ग्राम 

काढ़े को तैयार करने की विधि:
1.उपरोक्त पूरी सामग्री को मिला लें।
2.मिली हुई सामग्री को  पत्थर के सिल पर बारीक़ पीस लें।
3. पिसी हुई सामग्री को आधे गिलास पेय जल (100 से 150 मिली लीटर ) में डाल कर मिला लें ।
4. इस काढ़े को छान लें।
5. इस शर्बत को 2 से 4 हफ्ते तक सुबह खाली पेट सेवन करें।
6. रोज़ ताज़ा काढ़ा बना कर सेवन करें।
7. वात बढ़ाने (गैस बनाने वाले) आहार का सेवन नहीं करें, वात को कम करने वाले आहार का सेवन करें।
8. ऊँची तकिया नहीं लगायें बल्कि सपाट तख्त पर सोयें।
9.शीश (सिर) और रीढ़ की हड्डी को नीचे झुका कर कार्य नहीं करें।
10. फिज़ियोथैरिपिस्ट द्वारा बताई गई कसरतें करते रहें और डॉक्टर के परामर्श को अपनायें।

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परम पिता परमेश्वर से प्रार्थना है कि वे आपको सदा स्वास्थ्य रखें।
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जय प्रियतम अवतार मेहेरबाबा, जय जिनेन्द्र सदा 
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कृपया ध्यान दें:
उपरोक्त उपचार  पारंपरिक तथा व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर ही है। इसका कोई वैज्ञानिक परीक्षण सम्बन्धी आधार नहीं है। यह लेख मात्र पाठकों के सूचनार्थ है। किसी भी अनुशंसा को अपनाने के पूर्व कृपया प्राकृतिक / आयुर्वेदिक / एलोपैथिक (अंग्रेज़ी) चिकित्सक से परामर्श अवश्य लें।

जानकारी का स्त्रोत एवं अनुभव: 
इस काढ़े के बारे में डॉ. यू.एस. शर्मा, सतना (म.प्र.) ने बताया है। डॉक्टर साहब जब बैतूल में कार्यरत थे तब बैतूल के जंगल के निवासी आदिवासी के ने बताया था। इस काढ़े का सेवन कर डॉक्टर साहब ने खुद अपना सफलतापूर्वक उपचार किया है।

आग्रह:
इस लेख के अंत में कमेंट बॉक्स दिया गया है। कृपया लेख के बारे में अपने बहुमूल्य विचार, कमेंट अथवा अनुभव कमेंट बॉक्स में लिख कर हमें सीखने का अवसर अवश्य प्रदान करें

सादर
प्रियतम अवतार मेहेरबाबा की जय जिनेन्द्र सदा 
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Wednesday, November 29, 2023

घर से बाहर खाने से पहले ध्यान दें

🌻🌼☘️🌻🌼🍀

घर से बाहर खाना खाने से पहले यह जानना अच्छा होगा कि व्यावसायिक तौर पर खाना तैयार करने के लिये निम्नलिखित खाद्य सामग्री का उपयोग किया जा सकता है, अतः अच्छा होगा कि आप सावधान रहें -


1.   दावतों अथवा घर के बाहर तैयार किये गये खाने का स्वाद बढ़ाने के लिये कभी-कभी अजीनोमोटो (एम. एस. जी. अर्थात मोनो सोडियम ग्लूटामेट) का उपयोग होता है जो कि एक रसायन है तथा इसके आहारीय उपयोग पर प्रश्न लगे हैं । 


2.  कई बार, इस प्रकार का खाना बनाने के लिये उपयोग तिथि के बाद (पुरानी) की खाद्य सामग्री एवं मसालों का उपयोग किया जाता है । 


3.  दही बड़े तथा अन्य वयंजन  बनाने के लिये खट्टे दही का उपयोग किया जाता है जो कि कई महीने पुराने होते हैं और इनमें खटास को कम करने के लिये पी.एच. स्टेबलाईज़र नामक रसायन का उपयोग किया जाता है। ध्यान दीजीये कि यह रसायन, प्राकृतिक आहार नहीं होता है ।


4.   कभी-कभी कम गुणवत्ता की तथा बची खुची सब्ज़ियों का भी उपयोग होता है जो कि नुकसानदायक हो सकती हैं ।


5.   पनीर को सफेद  बनाने के लिये ब्लीचिंग पाऊडर (कैल्शियम हायपोक्लोराईट) का उपयोग किया जाता है जो कि आहार नहीं है तथा आँतों को नुकसान पहुँचा सकता है ।


6.  ताज़ी खाद्य सामग्री की प्राकृतिक खुशबू के कारण, खाना खाने के पहले ही भूख खुलने लगती है, किन्तु पैकेट बंद तथा बोतल बंद खाद्य पदार्थ ताज़े नहीं होते अतः इनसे प्राकृतिक खुशबू नहीं आती है अतः इस प्रकार की खाद्य सामग्री भूख खोलने में सक्षम नहीं होती है । अधिकतर लोग बिना भूख ठीक ढंग से खुले ही इन पदार्थों का सेवन करते हैं जिनमें रंग, एसेंस (अप्राकृतिक खुशबू) और प्रिजर्वेटिव (परिरक्षक) होते हैं जो कि आहार नहीं होते तथा लंबे समय तक इन्हें खाये जाने से यह अपच कर हानि पहुँचा सकते हैं । 


7.    हाँलाकि अच्छे ब्रांड के प्रसंस्कृत उत्पाद, पूरी साफ-सफाई से तथा तय शुदा मानकों के अनुसार बनते हैं, अतः खुले में बिकने वाली खाद्य सामग्री की तुलना में ब्रांडैड प्रसंस्कृत उत्पाद गुणवत्ता में बेहतर होते हैं। कई खाद्य विज्ञान तकनीक भी ऐसी आ गई हैं जिसके अंतर्गत बिना प्रिजर्वेटिव (परिरक्षक) के उपयोग के भी परिरक्षित खाद्य उत्पाद तैयार किये जा सकते हैं ।


8.  दावत के बुफे सिस्टम में, चूँकि सभी व्यंजन, मेहमानों के समक्ष रखे हुये होते हैं जो कि बहुत ही आकर्षक होते हैं, इसलिये कई लोग अलग-अलग किंतु कई प्रकार  के व्यंजन एक साथ खा लेते हैं जिससे अपच और अजीर्ण हो सकता है ।


9.   आयुर्वेद के अनुसार चावल की तासीर ठंडी होती है जिसे रात को नहीं खाना चाहिये । इसी तरह दही के साथ उड़द का सेवन निषेध है अतः दही-बड़ा भी विरुद्ध आहार है । पके आहार के साथ कच्चे आहार के सेवन का निषेध है अत: पके खाने के साथ सलाद और फल आदि के सेवन का भी निषेध है ।   


इसलिये घर के खाने से अच्छा कुछ भी नहीं है ।


 *सादर*

*जय प्रियतम अवतार मेहेरबाबा जय जिनेन्द्र सदा*

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Sunday, September 3, 2023

शरीर में रक्त की कमी (ऐनिमिया) नियंत्रण हेतु दैनिक आहार में लौह तत्व (आयरन) की आपूर्ति

लौह तत्व (आयरन) दैनिक आहार का एक महत्वपूर्ण खनिज तत्व है जो रक्त को लालिमा प्रदान (लाल रक्त कणिकाओं के कारण) करता है तथा शरीर के विभिन्न अंगों तक प्राण वायु (ऑक्सीजन) पहुँचाता है जिससे शारीरिक अंग सुचारू रूप से कार्य कर पाने में सक्षम हो पाते हैं. सामन्यत: एक स्वस्थ्य व्यस्क पुरुष के प्रति १०० मिली लीटर (१ डैसीलीटर) रक्त मे १३.५ से १७.५ ग्राम लौह तत्व तथा स्वस्थ्य व्यस्क महिला में प्रति १०० मिली लीटर (१ डैसी लीटर) मे १२.५ से१५.५ ग्राम लौह तत्व विद्यमान होना चाहिये. यदि लौह तत्व की यह मात्रा रक्त में सामान्य स्तर से कम होती है तो इस स्थिति को ऐनीमीया के नाम से जाना जाता है जिसे सामान्य भाषा में खून की कमी के नाम से अथवा रक्ताल्पता के नाम से भी हम जानते हैं.

नैशनल फैमिली ऐंड हैल्थ सर्वे-5 के अनुसार भारत में 72.7 % 5 वर्ष से छोटे बच्चे (6 माह से 59 माह),  लगभग 58.1 % किशोरियाँ (15-19 वर्ष की समस्त किशोरियाँ), 54.7 % महिलायें (15-49 वर्ष की किशोरियाम एवं समस्त महिलायें) एवं 52.9 % गर्भवती महिलायें (15-49 वर्ष की गर्भवती मातायें) रक्ताल्पता से पीड़ित हैं. हिन्दुस्तान टाईम्स की एक रपट के अनुसार मध्यप्रदेश में 80 प्रतिशत जनसंख्या रक्ताल्पता से पीड़ित हैं.

ऐनिमिया (रक्ताल्पता) 

रक्ताल्पता तीन प्रकार की होती है. यह इस प्रकार हैं:

1.      सामान्य रक्ताल्पताशरीर के रक्त में लाल रक्तकणिकाओं की कमी के कारण होने वाली रक्ताल्पता

2.      सिकिल सैल ऐनिमिया (अर्धचन्द्राकार रक्ताल्पता): कोशिका का हँसिया अथवा अर्धचन्द्राकार होने के कारण होने वाली रक्ताल्पता.

3.      मैगलोब्लास्टिक रक्ताल्पता: शरीर में विटामिन-बी की कमी के कारण होने वाली रक्ताल्पता. 

ऐनिमिया (रक्ताल्पता)के कारण:   

लौह तत्व की कमी के कारण इस प्रकार हैं:

1.      आहार में लौह तत्व के स्त्रोतों को आवश्यकता से कम शामिल करना अथवा शामिल नहीं करना.

2.      आहार में विटामिन-सी के स्त्रोतों को आवश्यकता से कम शामिल करना अथवा शामिल नहीं करना.

3.      प्रसव के समय अथवा मासिक धर्म के समय अधिक खून का स्त्राव होना.

4.      शरीर में लौह तत्व का अवशोषण न होना.

5.      शरीर में आंतरिक रक्त का स्त्राव होना.

6.      दर्द के साथ आंतरिक रक्त स्त्राव होना जो कि महिला को पता न लग पाये.

7.      मलेरिया के कारण लाल रक्त कणिकायें शरीर में कम हो जाना

8.      पेट में उपस्थित कृमि के कारण (यह नंगे पाँव चलने के कारण, पाँव के तलवे से शरीर में प्रवेश कर जाते हैं).

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रक्त में हीमोग्लोबिन की सीमा रेखा निम्नानुसार है:

क्र.

हितग्राही समूह की उम्र

ग्राम प्रति 100 मिली लीटर (1 डैसी लीटर) रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा

सामान्य

 (रक्ताल्पता नहीं)

अल्प रक्ताल्पता

मध्यम रक्ताल्पता

गम्भीर रक्ताल्पता

1.       

11 वर्ष के बराबर अथवा अधिक

10-10.9

7.79

7-7.9

7 से कम

2.       

12 के बराबर अथवा अधिक

11-11.9

8.-10.9

8-10.9

8 से कम

ऐनिमिया (रक्ताल्पता) की पहचान (सामान्य लक्षण):

ऐनिमिया (रक्ताल्पता) की पहचान (सामान्य लक्षण) इस प्रकार हैं :

1.      शरीर में थकावट आना, ऊर्जा की कमी महसूस करना.

2.      चक्कर आना.

3.      वैचारिक अस्पष्टता होना, बातें देर से समझ आना. 4.स्वभाव में चिड़चिड़ापन आना.

4.      आत्म्विश्वास में कमी होना, मन डूबना, रोने का मन करना. 6. त्वचा पर, आँख के पलकों के भीतर, जीभ के बाहरी किनारों पर लाली की कमी होनी, रंग फीका होना तथा पीलापन आनाजीभ के किनारों का फूलना.

5.      नाखूनों में लाली की कमी तथा पीलापन अथवा सफेदी आना.

6.      नाखूनों का टूटना.

7.      एकग्रता न बन पाना अथवा बार बार एकाग्रता भंग होना.

8.     विद्यार्थीयों का पढ़ाई में अरुचि पैदा होना.   

ऐनिमिया (रक्ताल्पता) की पहचान (गम्भीर लक्षण):

1.      भूख कम लगना. 

2.      पैरों में सूजन होना (इडिमा होना).

3.      कम श्रम में ही साँस फूलना तथा सिरदर्द होना.

4.      हृदय की धड़कन का सामान्य रूप से बढ़ना और घटना.

5.     हाथ पैर में असंवेदंशीलता आना अथवा झुनझुनी आना.

ऐनिमिया (रक्ताल्पता) के नियंत्रण का उपाय:

रक्त की जाँच करवायें (सी.बी.सी. जाँच) और रक्ताल्पता की स्थिति की स्पष्ट जानकारी प्राप्त करें. संतुलित आहार का सेवन करें जिसमें लौह तत्व और विटामिन-सी के आहारीय स्त्रोतों को प्रमुखतः से शामिल करें.  

लौह तत्व के स्त्रोतों जैसे, बाजरा, जई का दलिया, अंकुरित दलहन, मसूर, सेम, सोयाबीन तथा सोयाबीन से बने खाद्य उत्पाद जैसे, लड्डू, बर्फी, नमकीन, चकली, मठरी, शक्कर पारा, टोफू (सोयाबीन का पनीर), टैम्पेह, गुड़. हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ (जैसे पालक, मेथी और बथुआ), लाल भाजी, चुकन्दर,तरबूज़ के बीज, लोहे की कड़ाही में बनी सब्ज़ी, अनार,खजूर, काजू, किशमिश तथा अन्य मेवे इत्यादि माँसाहार में अंडा, मछ्ली और माँस, आँगनबाड़ी से मिलने वाली आयरन-फोलिक अम्ल की लाल गोली का सेवन करें.   

विटामिन-सी के स्त्रोतों को आहार में शामिल करें जैसे करौंदा, बेर, संतरा, मौसंबी, नींबू, आँवला,अमरूद, लीची, पपीता ब्रोकली (हरी गोभी), फूल गोभी, अंकुरित गोभी (एक प्रकार की गोभी), हरी एवं लाल मिर्च, हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ जैसे पालक, शलजम के पत्ते, आलू एवं शकरकंद इत्यादि, आँगनबाड़ी से मिलने वाली आयरन-फोलिक अम्ल की लाल गोली में विटामिन-सी भी विद्यमान है.   

लौह तत्व के साथ संयोजित होने वाले प्रोटीन के स्त्रोत को आहार में सम्मिलित कर दैनिक रूप से सेवन करें जैसे अनाज जैसे गेहूँ, चावल, ज्वार, मक्का, जौ, जई इत्यादि, दलहन जैसे मूँग,अरहर, चना, उड़द, मसूर इत्यादि तथा सोयाबीन, दुग्धाहार जैसे दूध, पनीर एवं छेना, माँसाहार जैसे अंडा, लाल माँस इत्यादि प्रोटीन सप्लीमैंट भी बाज़ार में उपलब्ध हैं जिनके सेवन द्वारा शरीर को प्रोटीन उपलब्ध होता है.   

कृपया ध्यान दें:

1.      चूँकि चाय में टैनिन नाम का रसायन विद्यमान होता है जो कि भोजन में उपस्थित लौह तत्व को बाँध देता है तथा मनुष्य, आहार से लौह तत्व को अवशोषित नहीं कर पाता है इसलिये भोजन ग्रहण करने के एक घंटे पूर्व तथा 1 घंटे बाद ही चाय का सेवन करें.

2.      यदि कैल्शियम और लौह तत्व के सप्लीमैंट (पूरक गोलियाँ) का सेवन करना हो तो दोनों के बीच  में कम से कम 2 घंटे का अंतराल होना चाहिये.

 

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Tuesday, August 8, 2023

दो से छ वर्ष के बच्चों (प्री-स्कूल बच्चे) का पोषण तथा आहार

समूची बाल्यावस्था अर्थात् प्रथम 1000 दिन, माँ तथा बच्चे के लिये तथा दो से छह वर्ष के बच्चों  (प्रीस्कूल बच्चे) की उम्र, शरीर के विकास की तथा समझ के विकास की उम्र है अत: यह आवश्यक है कि बच्चों को संतुलित तथा  पोषक आहार मिले.  

पोषक आहार का निर्णय अधिकतर मातायें करती हैं. यदि माताओं को पोषण आहार के विज्ञान की छोटी-छोटी किंतु महत्वपूर्ण बातों का ज्ञान हो तो वे अपने बच्चों के आहार के बारे में सही निर्णय ले पायेंगी. इसी विषय पर आपके लिये यह लेख प्रस्तुत है.

अधिक जानकारी हेतु आप लेखक द्वय [(डॉ. किंजल्क सी.सिंह (वैज्ञानिक- कृषि विस्तार) तथा डॉ. चन्द्रजीत सिंह (वैज्ञानिक-खाद्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी)]  से मोबाईल नम्बर 9893064376 पर बात कर सकते हैं.

लेख पढ़ने हेतु कृपया इस लिंक पर क्लिक करें

 

लेख का लिंक

 

सादर

जय प्रियतम अवतार मेहेरबाबा जय जिनेन्द्र 

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Wednesday, July 12, 2023

वजन प्रबंधन के उपाय

परिवर्तित होती उम्रव्यक्तिगत प्रकृतिअनुवांशिकी और ऋतुओं के प्रभाव से जठराग्नि कम या अधिक हो सकती है जिसका प्रभाव पाचन पर और पाचन का प्रभाव शरीर के वजन पर पड़ता ही । 

शारीरिक वजन को कम करने के कुछ उपाय जिनका उल्लेख आयुर्वेद में हैं वे इस तरह हैं :

 

1.नये चावल का सेवन नहीं करें बल्कि कम से कम एक वर्ष पुराने चावल का सेवन करें । यदि नये चावल का सेवन करना ही हो तो पहले नये चावल को भून लें फिर खुले बर्तन में पकाने के बादमाड़ हटा कर इसका सेवन करें। ऐसा चावल पचाने में हल्का होता है । चावल का सेवन दिन में करें ।

 

2.गेहूँ स्निग्ध (फैट) होता है अतः मोटा अनाज और लघु धान्य जैसे ज्वारजौ और बाजरा इत्यादि की रोटी पर गाय का शुद्ध देसी घी लगा कर सेवन करें ।

 

3.मनुष्य का शरीर पंच तत्व जैसे पृथ्वीजलअग्निआकाश तथा वायु से बना है । इन तत्वों में से पृथ्वी तत्व सर्वाधिक भारी होता है । वजनकफ दोष के कारण बढ़ता है। कफपृथ्वी तथा जल तत्व से बनता है। वजन कम करने के लिये पृथ्वी तत्व को कम ग्रहण करना चाहिये । अनाजपृथ्वी तत्व से बना है । इसका अर्थ यह है की वजन कम करने के लिये अनाज का सेवन नहीं करें अथवा कम से कम स्निग्ध अनाज जैसे गेहूँ का सेवन कम करें । इनके स्थान पर बिना माड़ का खुले बर्तन में बना चावल अथवा मोटे अनाज अथवा लघु धान्य से बनी रोटी में देसी गाय के दूध से बना घी लगा कर सेवन किया जा सकता है । अनाज के स्थान पर पत्तियों का रससलादफलअंकुरित दालें और दाल और दाल से बने व्यंजन इत्यादि का सेवन किया जा सकता है ।

 

4.वजनकफ दोष के कारण होता है। मीठेखट्टे और नमकीन खाद्य पदार्थ के सेवन से शरीर में कफ बढ़ता है जिससे वजन बढ़ता है अतः इन तीन स्वाद के खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करें ।

 

5.कड़वे (जैसे मेथी दाना, करेला और कड़वी नीम इत्यादि)कसैले (जैसे आँवला और जामुन आदि) और तीखे (जैसे मिर्च) रस के खाद्य पदार्थ से शरीर में कफ कम होता है अतः वजन भी कम होता है ।

 

6.पाचक अग्नि को बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करेंजैसेदेसी गाय के दूध से बना घीदहीमट्ठाचटनीअचार और पापड़ जैसे खाद्य पदार्थों को आहार में सम्मिलित करें । 

 

7.सूर्यास्त के पूर्व भोजन कर लें । रात्रिकाल की तुलना में सूर्य भगवान की उपस्थिति में मनुष्य की जठराग्नि प्रबल होती है तथा इस कारण भोजन सरलता से पच जाता है ।

 

8.शरीर में कफ को नियंत्रित करने के लिये पानी को उबालेंठंडा करें और 1 गिलास पानी में 1 चम्मच शहद मिला कर सेवन करें । यदि शहद का सेवन नहीं करते हों गुड़ का सेवन कर सकते हैं ।

 

 

9.शहद के स्थान पर दही के पानी का सेवन भी सुबह कर सकते हैं ।

 

10. आधुनिक पोषण विज्ञान के अनुसार पिसी गेहूँ (वह गेहूँ जिससे रोटी बनती है) में ग्लूटन नामक तत्व होता है जो कि वजन बढ़ने के लिये उत्तरदाई होता है,  किंतु कठिया गेहूँ (जिससे सूजी और दलिया बनता है) में ग्लूटन की मात्रा सीमित होती है अत: वजन प्रबंधन हेतु पिसी गेहूँ के स्थान पर कठिया गेहूँ से बने व्यंजन का सेवन करना अच्छा होगा ।   


11.उचित मात्रा में मौसमानुकूल टहलेंव्यायामयोगासनध्यानऔर पूजन करें ।

 

12.प्रतिदिन अच्छी और पूरी नींद लें ।

 

यदि आप अपने विचार प्रकट करना चाहें अथवा सुझाव देना चाहें तो कृपया कमेंट बॉक्स में लिख सकते हैं

सादर

जय बाबा जय जिनेंद्र सदा

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Thursday, July 6, 2023

वर्षा ऋतु के श्रावण (सावन) माह में आहार विहार

ग्रीष्म ऋतु पूर्ण हो चुकी है तथा विसर्ग काल में वर्षा ऋतु प्रारंभ हो चुकी है। यह चातुर्मास का भाग है जो की व्रत, उपवास, ध्यान, पूजन, संयम और शाकाहार का समय है। इस ऋतु के दो भाग हैं श्रावण और भाद्रपद। श्रावण माह में फुहार के रूप में निरंतर वर्षा होती है जो की प्रकृति हेतु अत्यंत पोषक होती है। वातावरण में नमी बढ़ती है और तापमान कम होता है। परिवर्तित होती ऋतु के अनुसार आहारविहार संयम और अनुशासन रखने से शरीर संतुलित और स्वस्थ रहता है। इस हेतु निम्नलिखित अनुशंसाओं का पालन लाभकारी हो सकता है।


अ. वर्षा ऋतु एवं दोष: 

वर्षा ऋतु में शरीर में: 

1.वात दोष प्रकुपित होता है। 

2. वर्षा ऋतु में पित्त दोष संचित होता है।


ब. वात प्रकुपन का शरीर पर प्रभाव:

शरीर में वात दोष की वृद्धि के कारण:

1.शरीर में भारीपन लगता है।

2.शरीर के विभिन्न अंगों में तथा शरीर के जोड़ों में दर्द हो सकता है।

3. शरीर में गैस बन सकती है तथा डकार इत्यादि आ सकती है। 

4. मल कड़ा हो सकता है, मल त्याग कठिन हो सकता है और कब्ज़ जैसी समस्यायें हो सकती हैं। 


स. वात की प्रकृति:

1.वात की प्रकृति ठंडी होती है।

2.वात की प्रकृति रूखी होती है।


द. वात को संतुलित करने वाले आहार का प्रकार: 

1.आहार गर्म तासीर का होना चाहिये, ठंडा नहीं।

2.आहार स्निग्ध होना चाहिये, रूक्ष (रूखा) नहीं।

3.आहार लघु अर्थात पचने में हल्का होना चाहिये गरिष्ठ अर्थात पचने में कठिन और भारी नहीं होना चाहिये।


इ. आयुर्वेदिक अनुशंसा

वर्षा ऋतु एवं आहार रस:

अनाज, दलहन, तिलहन, सब्ज़ी, फल, दूध एवं दुग्ध उत्पाद इत्यादि का आहार तैयार करने के लिये चुनाव निम्नलिखित आहार रस के नियम के आधार पर ही करें:

1.वात को शरीर में संतुलित रखने के लिये मीठे, नमकीन और खट्टे रस के आहार का सेवन करें। 

2.वर्षा ऋतु में कड़वे, तीखे और कसैले रस की आहार का सेवन नहीं करें। 

3.वात में वृद्धि करने वाले आहार का सेवन नहीं करें बल्कि वात को कम करने वाले आहार का सेवन करें। 


पथ्यकर तथा अपथ्यकर खाद्य पदार्थ:

विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ जिनका सेवन वर्षा ऋतु में किया जा सकता है, वह इस प्रकार हैं:


सब्ज़ियाँ: 

1.वर्षा ऋतु में बेल वाली सब्ज़ियाँ जैसे लौकी, कुम्ड़ाह, गिल्की, तरोई, परवल, भिंडी, टिंडा, खीरा, ककड़ी इत्यादि का सेवन हितकर है। 

2.आलूसाबूदाना, बैंगन, गोभियाँ, मूली, फलियाँ, साग और कंद का सेवन नहीं करना चाहिये।

3.यदि साग का सेवन करना ही हो तो, साग को साफ कर, धो कर, पानी में उबाल लें। इसके उपरांत साग को पानी से निकाल कर रस निचोड़ कर अलग कर दें फिर कम तेल में भून लें। अब इस साग की सब्ज़ी बनायें।


फल: 

1.सेब, केला, देसी पका आम, नाशपाती, अनार इत्यादि का सेवन किया जा सकता है।

2.खरबूज़, तरबूज़ इत्यादि का सेवन नहीं करें।


अनाज: 

1.वर्षा ऋतु में गेहूँ की तरह स्निग्ध और जौ जैसे अनाज का सेवन किया जाना हितकर है। नये अनाज का उपयोग नहीं करें बल्कि कम से कम एक वर्ष पुराने अनाज का उपयोग करें। साथ में देसी गाय के दूध से बने घी का उपयोग करें।

2.वर्षा ऋतु में चावल का सेवन नहीं करें। यदि चावल का सेवन करना ही है तो नये चावल का सेवन नहीं करें बल्कि कमसेकम एक वर्ष पुराने चावल का सेवन करें। यदि नये चावल का सेवन करना ही हो तो पहले नये चावल को भून लें फिर खुले बर्तन में पकाने के बाद, माड़ हटा कर इसका सेवन करें। ऐसा चावल पचाने में हल्का होता है। चावल का सेवन दिन में करें।

दस्त के उपाय के रूप में चावल के माड़ का उपयोग किया जा सकता है। माड़ को तैयार करने की विधि निम्नानुसार है

चावल + चौदह गुना पानी + उबाल लें + छान लें + माड़ तैयार पायें

तैयार माड़ + छौंका (शुद्ध देसी घी + ज़ीरा + कढ़ी पत्ता + कोकम + किसा अदरक + स्वादानुसार सेंधा नमक) (कोकम खट्टा होने के बाद भी पित्त नहीं बढ़ाता है।)

3.मोटा अनाज तथा लघुधान्य प्रकृति में खुश्क होते हैं अतः वात दोष में वृद्धि कर सकते हैं। वर्षा ऋतु में इनके सेवन की मनाही है। यदि इनका सेवन करना ही हो तो साथ में देसी गाय के दूध से बने शुद्ध घी का उपयोग अवश्य करें।


दालें:

1.हरी छिल्के वाली मूँग की दाल का सेवन श्रेष्ठ होता है।

2.पतली अरहर की दाल का भी सेवन किया जा सकता है। 

3.इन दालों में शुद्ध देसी घी से छौंका लगा कर सेवन करना हितकर होता है। 

4.सोयाबीन, उड़द मसूर की दाल मटर, चने और छोले जैसी गरिष्ठ दालों का सेवन न करना हितकर होता है।


तेल और घी का उपयोग: 

1.अधिक तेल और घी में बने आहार का सेवन नहीं करें बल्कि तेल अथवा देसी गाय के दूध से बने घी का उपयोग आहार में ऊपर से अवश्य करें जैसे दाल और सब्ज़ी में ऊपर से तेल अथवा शुद्ध देसी घी को डालना, रोटी में शुद्ध देसी घी लगाना। शुद्ध देसी घी से पित्त नियंत्रित होता है।

2.अभ्यंग (मालिश) कर, वात को नियंत्रित करने के लिये तिल का तेल श्रेष्ठ है। तिल के तेल के अलावा सरसों के तेल का भी उपयोग किया जा सकता है।


दूध एवं दुग्ध उत्पाद: 

1.वर्षा ऋतु में, पाचन दुरुस्त होने की स्थित में स्वस्थ व्यक्ति, स्वस्थ देसी गाय के दूध का सेवन कर सकता है। दूध में थोड़ी सी सोंठ का चूर्ण मिला कर सेवन करना हितकर होता है।

2. इस ऋतु में भैंस के दूध का सेवन नहीं करें, यह गरिष्ठ होता है। 

3.इस ऋतु में, खोवा पनीर और चीज़ का उपयोग नहीं करें यह गरिष्ठ होते हैं।

4.सावन माह में कभीकभी दही का सेवन किया जा सकता है। दही तासीर

में गर्म होता है किंतु ध्यान रखियेगा कि खीरे और दही का रायता, अथवा दही और उड़द की दाल से बने दही बड़े का सेवन नहीं करें।

5.पतले, देसी गाय के दूध से बने ऐसे ताज़े छाछ का सेवन करें जो की खट्टा नहीं हो। छाछ संबंधी अधिक जानकारी आगे लेख में दी गई है।

6.वर्षा ऋतु में सीमित मात्रा में देसी गाय के दूध से बना घी का, आहार के साथ सेवन करना हितकर होता है।


अन्य खाद्य पदार्थ: 

श्रावण में शाकाहार का ही सेवन करें। यह सुपाच्य होते हैं। माँसाहार जैसे खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करें यह गरिष्ठ होते हैं।


आयुर्वेद के अनुसार वर्षा ऋतु में पेय जल का उपयोग: 

1.पानी उबालते समय चौथाई अथवा आधा चम्मच अजवाईन अथवा ज़ीरा अथवा 1 अथवा 2 काली मिर्च अथवा 2 लौंग अथवा सोंठ का छोटा टुकड़ा 1 लीटर पानी में डाल कर तब तक उबालें जब तक पानी की मात्रा आधी हो जाये। अब इस पानी को छान लें। इस तरह से तैयार पानी को ठंडा कर अथवा गुनगुना भी पिया जा सकता है। ऐसा करने से औषधीय जल तैयार होगा जिसके सेवन से शरीर में वात संतुलित रहेगा।

2.वर्षा ऋतु में शुद्ध जल को उबालकर ठंडा करें फिर एक गिलास पानी में 1 चम्मच पुराना शहद मिला कर सेवन करना भी हितकर होता है।


पाचक अग्नि बढ़ाने के लिये: 

1.खाने के पूर्व सोंठ पर नमक लगाकर चबाचबा कर खायें।

2.रोटी पर, चावल, दाल और सब्ज़ी में ऊपर से घी और तेल डाल का खायें।

3.खाने में ताज़ा दही और पतला छाछ, जो खट्टा नहीं हुआ हो, कम मात्रा में खाया जा सकता है। छाछ को काली मिर्च + पीपली + सोंठ का त्रिकटु चूर्ण का 2 से तीन चुटकी डाल सकते हैं। अब दही को ज़ीरा + कढ़ी पत्ता + हींग से छौंक सकते हैं और स्वादानुसार काला नमक भी डाला जा सकता है।

4.सोंठ चूर्ण + गुड़ + शुद्ध देस घर में बना घी मिला कर छोटा लड्डू बना कर सेवन करें, इससे पाचन अच्छा होगा।

5.अचार और मूँग के पापड़, पुदीने की चटनी का सेवन कर सकते हैं।


आहार के बाद: 

देसी पान का सौंफ,अजवाईन, लौंग, जावित्री और इलायची इत्यादि के साथ सेवन कर सकते हैं। यह आहार के पाचन में सहायक होते हैं।


आहार कब और कितना करें: 

चूँकि वर्षा ऋतु में पाचक अग्नि मंद होती है अतः

1.भूख लगने और भूख खुलने पर ही आहार लें।

2.पूरी तरह पेट भर कर आहार नहीं लें, बल्कि पेट पूरी तरह से भरने के कुछ पहले आहार लेना रोक दें।

3.सूर्यास्त के पूर्व शाम भोजन ग्रहण करें।


अनुभवजन्य अनुशंसा:

1.श्रावण माह में हरड़ (हरितकी) के सेवन की अनुशंसा है  जिसकी प्रकृति गर्म होती है तथा यह लघु (पचने में हल्का होता है)। सेवन की विधि: हरितिका चूर्ण 1 से 2 ग्राम + सेंधा नमक + ऊपर से गुनगुने पानी सेवन करें। यहवायु के अनुमोलन के लिये पेट अच्छे से साफ होने के लिये लाभकारी है।

2.श्रावण माह में हरी पत्तेदार सब्जियाँ, साग और नींबू के सेवन का निषेध है।


आधुनिक आहारीय ज्ञान:

वर्षा ऋतु में अपच होना, अजीर्ण होना, पित्त बढ़ना (एसिडिटी होना) पेट खराब होना, दस्त लगना, बुखार आना होता है। 

1.शुद्ध पेय जल का ही सेवन करें। पेय जल को पहला उबाल आने के बाद 21 मिनट तक उबालें, फिर ठंडा कर साफ धुले हुये सूती के कपड़े से छान कर सेवन करें।

2.वर्षा ऋतु में वातावरण में नमी और गर्मी की अधिकता के कारण सूक्ष्मजीवों की संख्या और गतिविधि तेजी से बढ़ती है जो की आहार को जल्द ही दूषित कर सकते हैं, अतः ताज़े और तापमान में गर्म आहार के सेवन की अनुशंसा है। रखे हुये बासी और ठंडे भोजन का सेवन कतई नहीं करें।

3.बाहर बने आहार की गुणवत्ता के प्रति आश्वस्त होना कठिन है अतः घर की रसोई में तैयार आहार का ही सेवन करें।

4.भोजन और पानी को हमेशा ढक कर रखें।


वर्षा ऋतु एवं विहार:

1.वात के निवारण हेतु शरीर में स्नान के पूर्व तिल के तेल की मालिश की जा सकती है।

2.त्वचा विकार से बचने हेतु 100 ग्राम नारियल के तेल में 5 ग्राम कपूर मिला कर स्नान के बाद शरीर पर लगाया जा एकता है। घमौरियाँ हों तो हल्दी चूर्ण और कपूर मिला कर लगायें। 

3.वात के कारण मन को एकाग्रचित्त करना कठिन होता है। मन को एकाग्रचित्त करने के लिये ध्यानपूजन करना लाभकारी हो सकता है। 

4.व्यायाम करने से वात में वृद्धि हो सकती है अतः हल्का फुल्का व्यायाम ही करें।

5.दिन में निद्रा नहीं लें।

6.समयसमय पर नाखून काटें, खाना खाने के पहले और बाद में साबुन और साफ पानी से हाथ धोयें, कुल्ला करें, सुबह और शाम मंजन करें, रोज़ साफ पानी और साबुन का उपयोग कर स्नान करें, साफ, धुले हुये तथा इस्त्री किये हुये वस्त्र धारण करें।

7.ए.सी. और कूलर का उपयोग तथा छत पर ठंडी हवा में निद्रा लेना अब बंद कर देना चाहिये क्योंकि क्योंकि ठंडी हवा से वात दोष में वृद्धि होती है।

8.मच्छरों और कीड़ों से बचने के लिये मच्छरदानी का प्रयोग करें।

9.वर्षा में भीगें नहीं, कीचड़ से बचें,अंधेरे में न जायें।

10.साफ और सूखी तैलिये का ही उपयोग करें और ऐसे ही वस्त्रों को धारण करें।

11. छाता, बरसाती, बरसाती चप्पल और जूते तथा टॉर्च, लालटेन का उपयोग करें। आवश्यकतानुसार घर की मरम्मत करवायें, घर साफसुथरा रखें और घर के आसपास पानी एकत्रित नहीं होने दें जिससे, मच्छर, मक्खी और कीटपतंगे पैदा नहीं होंगे।

12.इस मौसम में मन प्रफुल्लित, कल्पनाशील और सृजनात्मक हो जाता है, इस अवसर का लाभ लेते हुये सृजनात्मक गतिविधियों जैसे लेखन, शिल्पकला, चित्रकला, सिलाई और कढ़ाई इत्यादि में भाग लेना हितकर होता है।


 ध्यान दें: 

ऊपर दी गई अनुशंसा सिर्फ स्वास्थ्य व्यक्तियों के लिये है। अन्य व्यक्ति चिकित्सक से परामर्श लेने की कृपा करें।


संदर्भ: 

1.चरक संहिता सूत्रस्थान अध्याय 27

2. सुश्रुत संहिता सूत्रस्थान 45

3.अष्टांग हृदय सूत्रस्थान अध्याय 5

4. अष्टांग हृदय सूत्रस्थान अध्याय 6


सादर

प्रियतम अवतार मेहरबाबा की जय, जय जिनेंद्र 

Thank You for writing. Please keep in touch. Avtar Meher Baba Ki Jai Dr. Chandrajiit Singh