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Thursday, March 16, 2023

*वसंत ऋतु के चैत्र माह की आहार विहार की अनुशंसा*

मनुष्य के शरीर में आधारभूत रूप से तीन प्रकार की ऊर्जायें विद्यमान होती हैं। इन ऊर्जाओं को दोष कहा जाता है। किंतु यह दोष नहीं होते हैं बल्कि जीवन को संचालित करने के लिये आवश्यक ऊर्जा होती हैं । स्वस्थ्य जीवन हेतु इन तीनों दोषों को संतुलित रखना अनिवार्य होता है ।


हिन्दी कैलेंडर के अनुसार वसंत ऋतु में दो माह, फाल्गुन और चैत्र होते हैं । इन दोनों माहों में से फाल्गुन माह बीत चुका है तथा चैत्र माह प्रारंभ हो गया है । फाल्गुन माह की तुलना में चैत्र माह में दिन का तापमान अधिक होता है किंतु रात का तापमान अभी भी कम रहता है, जिस कारण रातें ठंडी होती हैं । फाल्गुन माह में वातावरण के तापमान में वृद्धि होनी तो प्रारम्भ चुकी है और चैत्र माह में दिन के तामपमान में और भी वृद्धि हो रही है, किंतु अभी ग्रीष्म ऋतु प्रारम्भ नहीं हुई है जब वातावरण में दिन और रात दोनों का ही तापमान बढ़ जाता है । वसंत ऋतुशिशिर तथा ग्रीष्म ऋतु के मध्य परिवर्तन की ऋतु है । हेमंत तथा शिशिर ऋतुओं में शरीर में जो कफ संचित होता है वह वसंत ऋतु की फाल्गुन माह तथा चैत्र माह में अधिक तापमान के कारण पिघलना प्रारंभ होता है जिसे कफ का शरीर में प्रकुपित होना कहा जाता है । इसलिये, फाल्गुन माह में फिर चैत्र माह में मनुष्यों में कफ़ संबंधी रोग जैसे खाँसीज़ुखाम नज़लानाक बहनाछींक आने जैसी समस्यायें होती हैं, जो कि चैत्र माह में और बढ़ने की संभावना होती हैं ।


हेमंत और शिशिर ऋतु में त्वचा पर स्थित रोम छिद्र बंद हो जाते हैंताकि इन ऋतुओं में, वातावरण के कम तापमान के बाद भी शरीर गर्म रहे, और इस प्रकार शरीर और वातावरण के मध्य तापमान का संतुलन बना रहे । रोम छिद्र बंद होने के कारण शरीर में जठराग्नि (पाचक अग्नि अथवा मैटाबॉलिक फायर) प्रबल हो जाती है । फाल्गुन माह से प्रारंभ होकर चैत्र माह में  धीरे-धीरे तापमान में वृद्धि होने लगती है जिसके फलस्वरूप शरीर के रोम छिद्र भी खुलते  जाते हैं ताकि शरीर की गर्मी बाहर निकल सके और शरीर का तापमान कम हो सके जिस कारण शरीर वातावरण के तामपमान के साथ संतुलन स्थापित कर सके । शरीर के रोम छिद्र खुलने के कारण शरीर में जठराग्नि  धीरे-धीरे मंद होने लगती । जठराग्नि मंद होने की कारण शरीर के पाचन शक्ति की क्षमता में भी कमी आने लगती है ।


परिवर्तित होते वातावरणीय तापमान और शरीर के दोषों पर तापमान के प्रभाव को संतुलित अवस्था में रखने के लिये ऋतुचर्या के अनुसार आहार-विहार के आयुर्वैदिक नियमों का पालन करना हितकर होता है । 

घर के बुज़ुर्गों का आहार संबंधी अनुभवजन्य तथा पारंपरिक ज्ञान भी इस विषय में मार्गदर्शन करता है ।


आयुर्वेदिक आहारीय अनुशंसा

प्राचीन तथा प्रमाणित आयुर्वेदिक ग्रंथों में संकलित पथ्य-अपथ्य के आहारीय ज्ञान के अनुसार अनुशंसायें इस प्रकार हैं - 

1.   शरीर में, फाल्गुन माह से अधिक कफ चैत्र माह में प्रकुपित होता है । कफ को संतुलित रखने के लिये तिक्त स्वाद (रस) वाले खाद्य पदार्थ (जैसे - मिर्चअजवाईनपीपली और सौंठ इत्यादि)कसैले स्वाद (रस) वाले खाद्य पदार्थ (जैसे-आँवलाजामुनकच्चा अमरूदकच्चा केलाछिल्के वाली मूँग दाल और छिलके वाली अरहर दाल इत्यादि, जिसके सेवन से जीभ ऐंठे, ऐसे खाद्य पदार्थ, तथा कड़वे रस (स्वाद) वाले खाद्य पदार्थ (जैसे- कड़वी नीमकरेलामेथीहल्दीहरड़लौकी, परवल और मूली इत्यादि) का सेवन करना चाहिये ।

2. इस माह में, कफ को शरीर में संतुलित अवस्था में रखने के लिये खट्टेमीठे और नमकीन स्वाद  (रस) के खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करें ।  

3. इस माह में, चूँकि जठराग्नि मंद होने लगती है अतः गुरु (गरिष्ठ आहार जैसे अधिक चिकनाई युक्त गहरे तले हुए तैलीय आहारदूध तथा दूध से बने खाद्य पदार्थ, माँसाहारगर्म मसाले तथा गर्म तासीर (पोटैंसी) के आहार का सेवन नहीं करें । आपके अवलोकनार्थ कृपया गर्म तथा ठंडी तासीर के आहार की सूची, इस लेख के अंत में संलग्न की गई है ।

4. इस माह में ठंडे मसाले तथा ठंडी तासीर (पोटैंसी) के आहार का सेवन करें ।

5. नया अनाज तासीर में गर्म होता है अत: इस माह में नये अनाज का सेवन नहीं करें । यदि नये अनाज का सेवन आवश्यक हो तो पहले अनाज को हल्का भून लें फिर उपयोग करें । इस ऋतु में गेहूँ के अतिरिक्त ज्वार और बाजरे का सेवन भी किया जा सकता है ।

6. गहरे तले हुये आहार के स्थान पर कम अथवा हल्के तलेसिंके, भुने अथवा उबले हुये आहार का सेवन  करें ।

7. यदि कफ बन रहा जो तो शहद का सेवन लाभकारी होता है यह औषधि के रूप में कार्य करता है । ध्यान रहे गुड़ की तसीर गर्म होती है अतः कफ दोष को स्ंतुलित करने के लिये इस माह में ग़ुड़ का सेवन नहीं किया जाता  है 


चैत्र माह में पेय पदार्थों के सेवन की आयुर्वेदिक अनुशंसा* 

1. वातावरण के बढ़ते तापमान में शरीर के तापमान को संतुलित बनाये रखने के लिये शरीर स्वेद (पसीना) का त्याग करता हैजिस कारण शरीर में जल की कमी होने लगती है, अतः शरीर में जल स्तर को संतुलित रखने के लिये समय-समय पर स्वच्छ, सामान्य तापमान के जल का आवश्यकतानुसार सेवन करें । ध्यान रखें कि बहुत गर्म अथवा ठंडे जल का सेवन नहीं करें । आहार के मध्य अथवा तुरंत बाद जल का सेवन नहीं करें । हाँलाकि आवश्यकता पड़ने पर सीमित  मात्रा में जल का सेवन कर सकते हैं ।

2.  शरीर में कफ को नियंत्रित करने के लिये एक लीटर स्वच्छ जल को उबालकर ठंडा कर लें । इसमें आधे से एक चम्मच शहद मिला का सेवन करने से । इस प्रकार दिन में लगभग चार चम्मच तक शहद का उपयोग करें । ध्यान रखें कि शहद को कभी भी गर्म पानी के साथ उपयोग नहीं करें ।  

3.  यदि शहद का उपयोग नहीं करना चाहते हैं तो ऊपर दी गई विधि से स्वच्छ जल को उबालकर और ठंडा कर तैयार करें और शहद के स्थान पर दो चुटकी सौंठ, मिश्रित कर सेवन कर सकते हैं । इस प्रकार के पानी के सेवन से भी कफ को नियंत्रित किया जा सकता है ।

4.  वसंत ऋतु में भैंस का दूध कतई न पीयें । गाय के दूध का सेवन भी कम करें । दूध के सेवन से कफ बनता है । फिर भी जब भी दूध पीयें तो गाय के दूध में हल्दी और सोंठ मिला कर पीयें जिससे दूध पीने के बाद भी कफ नहीं बनेगा ।

5.   इस ऋतु में दही तथा दही से बनने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करें बल्कि आप मसाले वाले ताज़े छाछ (छाछ मेंज़ीराहींगअजवाईन और कढ़ी पत्ता मिलाकर) का उपयोग कर सकते हैं ।    


चैत्र माह  हेतु पारम्परिक एवं अनुभवजन्य आहारीय अनुशंसा:

पीढ़ी दर पीढ़ी संकलित आहार सम्बन्धी अनुभवजन्य और परम्परागत ज्ञान भी बहुत उपयोगी साबित हुआ है । इस ज्ञान से प्राप्त, चैत्र माह की आहारीय अनुशंसा इस प्रकार हैं -    

1. चैत्र माह में चने तथा चने से बने हुये खाद्य पदार्थों के सेवन की अनुशंसा है। चना सुपाच्य प्रकृति में लघु (हल्का) तथा स्वाद में कसैला होता है अत: पचने में आसान और कफ को संतुलित करने वाला आहार होता है । 

2. चैत्र माह में माह में गुड़  के सेवन का निषेध है क्योंकि गुड़ की तासीर गर्म होती है ।

3. प्रातःकाल कड़वी नीम की कोमल कोपलों की तीन से चार नई पत्तियों की गोलियाँ बना कर सेवन करें जिससे शरीर में कफ दोष संतुलित होता है  । विशेषकर चैत्र नवरात्रि के नौ दिन यह कार्य अवश्य करें ।


चैत्र माह  हेतु आयुर्वेदिक विहारीय अनुशंसा: 

1. वसंत ऋतु में प्रातः काल उठ कर व्यायामयोगप्राणायाम करें ।

2.  दिन में सोना नहीं चाहिये अन्यथा कफ बढ़ेगा । जितना कफ बढ़ेगा उतना शरीर में आलस्य में वृद्धि होगी ।

3. कफ के प्रभाव से शरीर में कैल्शियम की कमी होती है, जिस कारण शरीर में आलस्य का अनुभव होता है और शरीर में कुछ दर्द का अनुभव भी हो सकता है । ऐसा होने पर कैल्शियम से भरपूर खाद्य पदार्थों का अथवा पूरक गोलियों (सप्लीमैंट) का सेवन कर सकते हैं ।

4. ऐसी स्थिति में शरीर में ह्ल्की मालिश करना भी लाभकारी है ।

5. चूँकि इस माह में धूप प्रखर हो रही है अत: दिन में टोपी, पगड़ी लगा कर अथवा गमछे से सिर ढक कर ही धूप में बाहर निकलें ।

6. दिन में सूती के ढीले वस्त्र धारण करना प्रारम्भ करें । रात में तापमान के अनुसार आरामदायक वस्त्र धारण करें ।

7.  रात में सोते समय गर्म मोटी चादर अथवा शॉल का उपयोग कर सकते हैं।  


वसंत काल हेतु आयुर्वेद के अनुसार पंच कर्म :

1. वसंत काल हेतु श्रेष्ठ पंच कर्म वमन क्रिया है जिससे कफ को नियंत्रित किया जा सकता है. किंतु इस क्रिया को  प्रशिक्षित तथा कुशल आयुर्वेदिक चिकित्सक के मार्गदर्शन में ही करें ।

2.फिर उद्वर्तन (शरीर पर पिसी हल्दीजौ का आटे/ चने का आटे में तेल मिलाकर उबटन) कर  गुनगुने से सामान्य तापमान के स्वच्छ जल से स्नान करना चाहिये। जल में कड़वी नीम की कोमल पत्तियाँ मिला कर स्नान करना भी त्वचा के स्वास्थ्य के लिये लाभकारी होता है ।

3. पंच महाभूत में से पृथ्वी तत्व (सेवन किये जाने वाले अनाज पृथ्वी तत्व से ही निर्मित होते हैं) तथा जल तत्व से कफ का निर्माण होता है । ऐसा कहा गया है कि लंघनम परम औषधमअर्थात उपवास अथवा व्रत श्रेष्ठ औषधीय है । इस माह में व्रत अथवा निर्जला व्रत तथा व्रत के उपरांत सुदर्शन क्रिया (ऐनिमा) कर कफ का उपचार किया जा सकता है साथ ही शरीर की शुद्धि (डीटॉक्सिफिकेशन अथवा डीटॉक्स) भी की जा सकती है। ध्यान रहे यह सब क्रियायें किसी प्रशिक्षित एवं कुशल अयुर्वेदिक अथवा प्राकृतिक चिकित्सक के मार्गदर्शन में ही करें । स्वयं यह कार्य कतई नहीं करें ।    


मह्त्वपूर्ण बिन्दु कृपया ध्यान दें:

इस लेख में दी गई अनुशंसायें स्वस्थय व्यक्तियों के लिये ही उपयोगी हैं । आवश्यकता होने पर कृपया चिकित्सक से सम्पर्क करें ।


गर्म तासीर (ऊष्ण वीर्य) के आहार:

1.  ठंड के दिनों में जब वातावरण का तापमान कम होता है तब आहार के निम्नलिखित अव्यवों का सेवन लाभकारी होता है : 

2. मेवे: बादाम त्रिकोण फल (ब्राज़ील नट) काजूकिशमिश (बिना पानी में फुलाई हुईसूखी हुई)अखरोटशाहबलूत (चैस्ट नट), पिंगल फल अथवा पहाड़ी बादाम (हेज़ल नट)मुँहफलीतिल के बीज (दाने)सूरजमुखी की बीजपिस्ता और मेवा (बिना पानी में फुलाया हुआ और बिना छीला हुआ) .

3. मसाले: काली मिर्चमिर्चधना (धनिये का बीज)ज़ीरासौंफमेथी दानाजावित्रीतेज़ पत्ताअदरकसोंठकेसरहल्दीअजवाईनजायफलबड़ी इलायचीहींग और पीपली .

4. तेल: सूरजमुखी का तेलमक्के का तेलसरसों का तेलमुँहफली  का तेलजैतून का तेलअखरोट का तेलतिल का तेलकुसुम का तेल (सैफफ्लावर तेल) और अलसी का तेल .  

5.  घी: देशी गाय के दूध से बना घी .

6. अनाज एवं मोटा अनाज:  कुट्टू (बकव्हीट)जईबिना पॉलिश अथवा कम पॉलिश किया हुआ भूरा चावल (ब्राऊन राईस)बाजरामक्काराई और मोटा अनाज .   

7.  दालें: अरहर,  उड़दनेवी बीनभूरी मसूरराजमा और मीज़ो .

8. फल: सेब का रसपपीताचैरीसूखे फलचकोतरारसभरीकीवीनींबूबड़ा नींबू (लाईम)लीचीआमसंतरापंजा फल (पॉपॉ - एक तरह का पपीता जैसा दिखने वाला फल)आड़ू / रतालू (पीच)अनानासआलू बुखारा (प्लम)रसभरी (रैस्पबैरी)सैत्सुमा (एक प्रकार का संतरा)स्ट्रॉबैरीपकाया हुआ सेबखुबानी (ऐप्रिकॉट), ब्लैकबैरी (कृष्णबदरी)पका केलाकरौंदा (क्रैनबैरी)हरे अंगूर और चकोतरा .

9. सब्ज़ियाँ: हाथीचक )बिना पकाया हुआ टमाटरपकाया हुआ टमाटरटमाटर का सॉसबैंगनशिमला मिर्चलहसुनहरा प्याज़ (लीक)प्याज़गाज़रमूलीमशरूमप्याज़सरसों का सागपार्सनिप (गाज़र की तरह सफेद रंग का मूल)मिर्चस्वीड (एक प्रकार का शलजम)परवलशलजमचुकंदरस्वीट कॉर्नजलकुम्भी (वॉटरक्रेस)ब्रसल स्प्राऊट गोभीबरडॉक जड़ (बरडॉक रूट) और जैतून .

10. दूध एवं दुग्ध उत्पाद: गाढ़ा दूध (कंडैंस्न्ड दूध)क्रीमअंडे का पीला भागसोया दूध और मेयोनेज़ (एक प्रकार का मक्खन)छाछदही, (ध्यान रखें कि छाछ और दही का सेवन ग्रीष्म ऋतु में अधिक लाभकारी होता

11. पेय पदार्थ:  कॉफीचायकोला,  गर्म चॉकलेटनींबू का शर्बतमॉल्ट का रस (अंकुरित और भुने जौ का रस) और सन्तरे का रस .

12. मीठा: शहदखार (मार्मिट)पुडिंग (आटे अथवा मैदे को बेक (सेंकना) कर के अथवा उबाल कर बनाया गया मीठा व्यंजन)सफेद शक्करभूरी शक्कर अथवा खाँडदेसी गुड़ और पिंड खजूर (प्रसंस्कृत अथवा तैयार किया गया) .

13. अन्य आहारीय अवयव: बबूल का गोंदविभिन्न प्रकार के अचारनमकधूँये  से उपचारित आहार (स्मोक्ड फूड)सिरकाखमीर (यीस्ट)बिस्कुटकेकचॉकलेट और जैम.

  

शीत वीर्य (ठंडी तासीरके मसाले और आहार :

गर्मी के दिनों में जब वातावरण का तापमान अधिक होता है तब आहार के निम्नलिखित अवयवों का सेवन लाभकारी होता है .

1. मेवे: कुम्ड़ाह की बीजबादाम (पानी में फुलाया हुआ तथा छिलका उतारा हुया) एवं नारियल और खजूर का फल और भीगी (पानी में फुलाई हुई) किशमिश .  

2. मसाला: इलायचीदालचीनी, लौंग, पुदीना और नारियल .

3.   तेल : नारियल का तेलतिल का तेल और वनस्पति तेल .

4.   अनाज एवं मोटा अनाज तथा इनसे तैयार उत्पाद: जौजवाकिनोवाफलियाँब्राऊन ब्रैड (गेहूँ से बनी डबल रोटी)सफेद ब्रैड (मैदे से बनी डबल रोटी),  सफेद चावलपीला चावलगेहूँराजगीर एवं टैपिओका .

5.   दालें: मूँग दाललाल मसूरपिंटो बीनसोयाबीनअंकुरित दालें और सफेद सेम (व्हाईट बीन) .

6.   फल: स्ट्रॉबैरीअंगूर (लालबैंगनी / काले)तरबूज़खरबूज़नाशपाती (ऐवोकैडो)अंजीरअनाररभर्ब (रेवाचीनी)सेबऐवोकैडो (एक प्रकार की नाशपाती)नाशपाती (पियर)केलाबेलसिंघाड़ाजामुनइमलीकिशमिश और खजूर का फल (जिसका प्रसंस्करण नहीं किया गया है).

7. सब्ज़ियाँ: आलू,, भिंडीफ्रैंच बीनमटर,  शतावर,  फलियाँब्रौकली (हरी गोभी)पत्ता गोभीफूल गोभीकेल गोभीबेल वाली सब्ज़ियाँ (जैसे तुरईकुम्ड़ाहस्क्वॉश और ज़ुकनी आदि)पालकधनिया पत्तीलैटस (सलाद पत्ता)अजवाईन पत्ता अथवा अजमोद पत्ता (सलाद)खीराककड़ी और करेला (भावप्रकाश के अनुसार अहिमा अर्थात कयदेव निघंटु के अनुसार न गर्म न ठंडाग़र्म तासीर: भोजन कतुहलम के अनुसार) .

8.   दूध एवं दुग्ध उत्पाद: गाय का दूधबिना मलाई का दूधमक्खनबकरी का दूधचीज़अंडे का सफेद भागगाय के दूध से बना घीआईस क्रीममार्जरीन और योगर्ट (एक प्रकार का दही) .

9.   पेय पदार्थ: नारियल का पानी .

10.  मीठा: मिश्री .

11. अन्य आहारीय अवयव: गोंद कतीरा .


संदर्भ:

1.वागभट्ट ऋषि द्वारा लिखित अष्टांग हृदयसूत्रस्थान का तीसरा अध्यायऋतुचर्या अध्याय ।

2. ऋषि चरक द्वारा लिखित चरक संहिता सूत्र स्थान का छँटवा अध्यायत्स्याशितीय अध्याय ।

3.  Youtube/ayurvedaforeveryone.com

4.      Youtube/easyayurveda.com

5.   https://www.banyanbotanicals.com/

6.   https://www.ayurvedakendra.in/discover-ayurveda/the-theory-of ayurveda/ritucharya/

7.      Youtube/ojayurveda

                                                                         *सादर जय बाबाजय जिनेन्द्र सदा*  


2 comments:

  1. मान्यवर, लेख के बेहतरी के लिये आपके कमेंट और सुझाव बहुत महत्वपूर्ण हैं, कृपया अपने कीमती समय से कुछ क्षण ज़रूर निकालियेगा, सादर जय बाबा, जय जिनेन्द्र सदा 💐💐

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  2. शानदार सलाह एव तकनीकी सुझाव

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