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रविवार, 19 अक्टूबर 2008

प्रफुल्लित मन से खाना खाएं

बुज़ुर्ग कहते हैं, मन लगा कर खाना खायेंगे तो यह शरीर को लगेगा. पर, मन क्या है???. मन पञ्च ज्ञानेन्द्रियों का स्वामी है. यह हैं चक्षु, घ्राण, रसना, स्पर्श और कर्ण।
चक्षु से आहार की सुन्दरता को देखा जाता है, घ्राण से खाने की खुशबू ली जाती है, रसना से व्यंजनों के ज़ायके का लुत्फ़ लिया जाता है, स्पर्श से आहार के तापमान और तेक्ष्चर का आनंद लिया जाता है और कर्ण से खाने के गुणों का बखान सुना जाता है.

जब इन सभी इद्रियों का ध्यानपूर्वक, पूर्ण उपयोग कर आहार ग्रहण किया जाता है तो इसे प्रफ्फुल्लित मन से भोजन ग्रहण करना कहा जाता है. ऐसी स्थिति में भोजन पचाने के लिए उपयोगी रसायन अपना कार्य भलीभांति कर पाते हैं, और शरीर भोजन और उसकी पौष्टिकता का पूरा लाभ ले पता है. जैसे, खाने की खुशबू से भूख का भड़कना आपने अनुभव किया होगा।

यदि इन इन्द्रियों का ध्यान भोजन से हटा तो भोजन ग्रहण करने और शरीर द्वारा स्वीकार करने में कमी आती है। जिसके फलस्वरूप भोजन का पूरा उपयोग करने में शरीर चूक जाता है. उदहारण स्वरुप यदि टेलिविज़न पर तनावपूर्ण सीरियल देखते हुए भोजन करें, तो स्पर्श को छोड़ कर बाकी चार इन्द्रियां तनाव की स्थिति में कार्य करने लगेंगी, जिससे मन और शरीर तनाव में आ जायेंगे और खाना हजम नहीं हो पायेगा.

इन्द्रियों का सीधा प्रभाव मन पर, मन का प्रभाव शरीर पर, शरीर का प्रभाव स्वस्थ्य और स्वस्थ्य का असर मन पर पड़ता है. यह खाद्य चक्र निरंतर चलता रहता है. इस चक्र को प्रफ्फुल्लित और सुचारू अवस्था में रखना हित कर होता है.

खाते समय सभी इन्द्रियों को भोजन के आलावा अन्य विषयों के समबन्ध में मौन रखना सर्वश्रेष्ठ रहता है. तो खाते समय बात न करना, टेलीविजन न देखना और अन्य विचारों का न आना अच्छा होता है.

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