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मंगलवार, 29 अक्टूबर 2024

वात का प्रभाव एवं आहार-विहार से नियंत्रण

शरीर में तीन प्रकार के दोष, वात, पित्त और कफ होते हैं । दरअसल यह दोष नहीं बल्कि ऊर्जायें होती हैं जो शरीर तथा शरीर की क्रियाओं का संचालन करते हैं। 


स्वास्थ्य हेतु यह आवश्यक है कि इन तीनों ऊर्जाओं को संतुलित रखा जाये । इन शारीरिक ऊर्जाओं को संतुलन में रखने हेतु बुद्धिमत्तापूर्वक आहार का सेवन करना चाहिये, किंतु इस प्रकार के आहारीय प्रबंधन करने के लिये, आहार विज्ञान का ज्ञान होना आवश्यक है, इस हेतु ही, तीन दोषों में से एक, वात संतुलन हेतु आहार विहार प्रबंधन विषयक लेख  आपके समक्ष प्रस्तुत है ।


शरीर में वात के प्रभाव :

नीचे दिये गये कारणों से शरीर में वात असंतुलित हो सकता है अत: इनसे बचना लाभकारी होगा:  

1. यदि शरीर में, जोड़ों, कमर में और हड्डियों में दर्द महसूस करते हैं तो सम्भावना है कि ऐसा मनुष्य वात से प्रभावित हो ।

2. यदि पेट में गैस बन रही हो अथवा डकार आ रही हो तो सम्भावना है कि शरीर में वात का प्रभाव हो ।

3. बहुत अधिक उलझे हुये स्वप्न आना और नींद हल्की हो जाना ।

4. मन में लगातार उलझन होना  अथवा मन उद्वेलित रहना, मन में चंचलता होना आथवा मन अशाँत होना ।


वात का प्रभाव:

1.  वात का प्रभाव  पूरे शरीर में दर्द के रूप में हो सकता है किंतु इसका प्रभाव कमर के नीचे के अंगो में अर्थात पैरों में अधिक होता है ।

2. वर्षा ऋतु में वात प्रकुपित होता है, ग्रीष्म ऋतु में यह संचित होता है और शरद ऋतु में इसका शमन होता है ।

3.प्रतिदिन, वात, प्रात: तथा अपरान्ह (दोपहर) 2 से 6 मध्य वात प्रभावी होता है।


वात की सर्वोत्तम औषधि:

1.आहार में तेल का उपयोग और स्निग्ध आहार ।

2. गर्म तासीर और तापमान काकQ आहार एवं गर्म गुनगुने तापमान का जल।

3. गुनगुने तापमान के तेल की मालिश ।

4. ध्यान रखें कि ठंडी तासीर और तापमान के और रूखे आहार के सेवन से बचें ।  

5. हरिश्रंगार (पारिजात अथवा सिहरुआ) के पत्तियों के सेवन से भी वात को नियंत्रित किया जा सकता है, इसका लिंक नीचे दिया गया है:

कृपया इस लिंक को क्लिककरें ।


वात को संतुलित करने के आयुर्वेदिक 

उपाय : 

वात दोष को संतुलित करने के लिये निम्नलिखित उपाय अपनाये जा सकते हैं:  

1. मीठे, खट्टे तथा नमकीन रस (स्वाद) वाली खाद्य सामग्री का सेवन करने की अनुशंसा है ।

2.तीखे (मिर्च, अदरक, अधिक मसालेदार आहार इत्यादि), कसैले (आँवला, कच्चा अमरूद, पालक, मसूर आदि) तथा कड़वे (करेला और नीम आदि) रस (स्वाद) की खाद्य सामग्री के सेवन  नहीं करने की अनुशंसा है।  

3.रूखे और ठंडी तासीर के आहार का सेवन नहीं करें इससे वात बढ़ता है। स्निग्ध (जिसमें तेल हो) और गर्म तासीर का आहार वात को कम करता है । 


वात और जठराग्नि की स्थिति तथा आहार : 

वर्षा ऋतु में जठराग्नि मंद होती है अतः गरिष्ठ भोजन, रसोई के बाहर का भोजन, बासी अथवा लम्बे समय से रखा हुआ भोजन, ठंडा अथवा फ्रिज में रखा  भोजन, खमीर युक्त भोजन एवं मशरूम, का सेवन नहीं करें ।


वात और अनाज :

वात की प्रकृति रूखी होती है अतः रूखी आहारीय सामग्री जैसे लघु धान्य एवं मोटा अनाज, (मक्का, बाजरा, ज्वार, कोदो और कुटकी आदि) का सेवन नहीं करें । वर्षा ऋतु में नये चावल का सेवन भी नहीं करना चाहिये। 


 वात और दालें : 

चूँकि वर्षा ऋतु में वात को बढ़ाने वाली अथवा गरिष्ठ अथवा भारी दालें जैसे मसूर, उड़द, राजमा, मटर, तिवड़ा, सोयाबीन, चना और छोला आदि, का सेवन नहीं करें । मुँहफली का सेवन भी अधिक मात्रा में नहीं करें ।


वात और सब्ज़ियाँ : 

चूँकि हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ (साग आदि) पाचन में गरिष्ठ जोती हैं अतः वात की स्थिति में इनके सेवन से बचें । गोभियाँ (पत्ता गोभी, फूल गोभी आदि ), बैंगन और मूली भी वात कारक हैं अतः इस मौसम में इनके सेवन से भी बचें ।


वात सन्तुलन एवं पेय जल : 

दूषित जल पाचन तन्त्र को खराब कर सकता है जिससे वायु असन्तुलित हो सकती है। अतः पाचन तन्त्र को ठीक रखने के लिये स्वच्छ जल का सेवन करें ।


वात संतुलित रखने के लिये की बरती जाने वाली सावधानियाँ : 

1.सुपाच्य, हल्के, घर की रसोई में बने भोजन का ही सेवन करें । 

2.रात को भोजन सूर्यास्त से पहले करें । 

3.यदि लघु धान्य और मोटे अनाज का सेवन करें तो गाय के दूध से बना घी लगा कर करें । ऐसा करने से लघु धान्य एवं मोटे अनाज में स्निग्धता बढ़ेगी, जिससे वात के  प्रभाव में वृद्धि नहीं होगी साथ ही पित्त भी संतुलित रहेगा ।

4.गेहूँ चूँकि स्निग्ध होता है इसलिये इस माह में गेहूँ का सेवन किया जा सकता है।

5.इस माह में चावल कम से कम एक वर्ष पुराना ही खायें । चावल यदि नया खायें तो पहले भून लें, फिर  खुले बर्तन में पकायें फिर सेवन करें । चावल  का सेवन दिन में ही करें । 

6.दालों में मूँग दाल (बिना छिल्के की दाल अथवा छिल्के सहित दाल) अथवा अरहर की पतली दाल का गाय के दूध से बने घी से छौंका (बघार कर) लगा कर सेवन करें । 

7.अरहर की भुनी दाल खुले बर्तन में पकाकर तथा फेन को हटा कर बनायें और घी का छौंका लगा कर सेवन करें। 

8.गाय के दूध से बने घी से छौंका लगा कर, मूँग की दाल और पुराने अथवा भुने चावल से बनी खिचड़ी का भी सेवन कर सकते हैं।

9.स्वच्छ जल को स्वच्छ पात्र में तब तक उबालें जब तक जल की मात्रा आधी हो जाये फिर ठंडा कर उपयोग में लें । जल को उबालते समय, जल में आधा चम्मच ज़ीरा अथवा अजवाईन  अथवा दो से तीन लौंग प्रति गंज पानी में डालें और औषधीय गुणों से भरपूर जल तैयार करें और सेवन  करें जो कि पाचन को ठीक करने के लिये तथा वात को नियंत्रित करने के लिये लाभकारी होता है । 

10.खाना और पानी को ढक कर सुरक्षित स्थान पर रखें ।

11.यदि वर्षा ऋतु में साग का सेवन करना है तो, पहले साग को उबालें फिर हाथ के बीच दबा कर रस निकाल कर अलग कर दें । अब साग को गाय के दूध से बने घी में भून कर सब्ज़ी बना कर सेवन कर सकते हैं ।


 वात को कम करने के लिये विहार:

1.शरीर में जहाँ भी दर्द हो उस स्थान में पर गुनगुने तेल की हल्की मालिश भी लाभकारी होती है। वात की उत्तम प्राकृतिक औषधीय तेल है।

2.अनुशंसित रूप से रोज़ ध्यान करें, प्रसन्न रहें, स्वयं  को चिंतामुक्त  रखें ।

3.मन में किसी भी प्रकार के तनाव नहीं आने दें । 

4.बहुत तेज़ दौड़ना, भागना, कसरत करना, भावनात्मक वेग में नहीं बहना है ।

5.तेज़ आवाज़ में बजता हुआ संगीत अथवा तेज़ थाप और धुन का संगीत नहीं सुनना है।


शरीर की गैस से मुक्त होने के लिये :

आहार लेने के पश्चात्, आहार के पाचन के फलस्वरूप वायु का निर्माण होता है जिससे मुक्त होना आवश्यक होता है ज्जिसके लिये निम्नलिखित प्रयास लाभदायक हो सकते हैं:

1. सुबह पवन मुक्तासन करें ।

2. खाना खाने के बाद 100 कदम टहलें ।

3. खाना खाने के बाद वज्रासन करें ।

4. सोने के पहले बायें करवट ले कर कुछ  
    देर  लेटें।

आग्रह:
कृपया उपरोक्त लेख के बारे में अपने अमूल्य सुझाव, विचार और  प्रश्न, दिये गये कमेंट बॉक्स में अभिव्यक्त करें

अधिक जानकारी के लिये सम्पर्क करें- डॉ.सी.जे.सिंह
खाद्य वैज्ञानिक
वॉट्स ऐप क्रमांक: 9893064376

सादर


Thank You for writing. Please keep in touch. 
Avtar Meher Baba Ki Jai Jai Jinendra Always 

Meher Nutrition
Dr. Kinjulck C. Singh
Dr. Chandrajiit Singh
jawaharkisan.blogspot.com  
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1 टिप्पणी:

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