बच्चों के
जीवन की नींव जो गर्भावस्था और प्रथम 2 वर्ष की उम्र अर्थात प्रथम 1000 दिन में
पड़ती है. इस समय गर्भवती स्त्री, धात्री माँ एवं शिशु के स्वास्थ्य का ध्यान रखना बहुत ही आवश्यक है. अगर
माँ स्वस्थ्य रहेगी तो शिशु भी स्वस्थ्य रहेगा. इन १००० दिवस को भाग में विभक्त
किया जाता है. यह हैं:
1. गर्भावस्था के 270 (दो सौ सत्तर दिन)
2.बच्चे के जन्म के दो साल अर्थात 730 दिन (सात सौ तीस दिन).
शिशु के समान्य विकास
हेतु गर्भवती एवं धात्री माँ के लिये आवश्यक पोषक तत्व:
1. लौह तत्व:
गर्भस्थ शिशु के शारीरिक अंगों के विकास तथा उसके शरीर के अंगों के सुचारु रूप से कार्य करने हेतु लौह तत्व आवश्यक होता है. गुड़, पालक जैसी हरी भाजियाँ, सोयाबीन और सोयाबीन से बना पनीर (टोफू), विभिन्न दालें, कुम्ड़ाह के बीज, किनोआ, अनार, अंजीर, खजूर, किशमिश लोहे की कड़ाही में पकी सब्ज़ियों का सेवन करना आवश्यक होता है. लौह तत्व की आपूर्ति दैनिक आहार में इन चीज़ों को सम्मिलित कर और पूरक गोलियों (लौह तत्व की सप्लीमैंट गोलियाँ जो कि आँगनबाड़ी अथवा स्वास्थ्य केन्द्र से प्राप्त होती हैं) के सेवन से हो जाती है.
2. विटामिन सी:
शरीर द्वारा लौह तत्व के अवशोषण हेतु खट्टे फल जैसे नींबू, संतरा, मौसंबी, चकोतरा, करौन्दा, अमरूद, आँवले, अंगूर, कच्चा आम और टमाटर का सेवन अवश्य करें. जब भी लौह तत्व युक्त भोजन का सेवन कर रहे हों उस समय दूध, दूध के उत्पाद कैसे खीर, दही, पनीर, छाछ, चाय, कॉफी एवं सम्पूर्ण अनाज का सेवन नहीं करें क्योंकि यह शरीर में लौह तत्व के अवशोषण को घटा देते हैं.
3. फोलिक अम्ल:
फोलिक अम्ल पालक, प्याज़ के
पत्ते जैसी हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ, मटर, चना, राजमा, पत्ता गोभी
(ब्रसल), ब्रॉकली (हरी गोभी), आदि हैं.
दैनिक आहार से प्राप्त होने वाले फोलिक अम्ल के अतिरिक्त, गर्भवती माँ को प्रति दिन इसकी पूरक गोली (सप्लीमैंट) के रूप में
ऊपर से करना चाहिये जिससे शिशु के भीतरी शारीरिक अंगों का विकास पूरी तरह से
हो पाये.
4. आयोडीन
युक्त भोजन:
गर्भस्थ शिशु तथा धात्री एवं गर्भवती माँ के थाईरॉईड हॉर्मोन के
निर्माण के लिये आयोडीन आवश्यक पौष्टिक तत्व है. थाईरॉईड हॉर्मोन के कारण शिशु तथा माँ का तंत्रिका तंत्र का विकास एवं
मनोवैज्ञानिक विकास अच्छा रहता है. आयोडीन युक्त नमक, आयोडीन
मिश्रित ब्रैड, दूध एवं दुग्ध उत्पाद, अंडे
एवं माँसाहार इत्यादि आयोडीन के अच्छे आहारीय स्त्रोत है.
माँ द्वारा संतुलित आहार का सेवन:
संतुलित आहार के लिये उचित मात्रा में अनाज से निर्मित उत्पाद, दाल, दूध और दूध से निर्मित
दुग्ध उत्पाद, अंडे और माँसाहार, फल
एवं सब्ज़ी और कम मात्रा में घी, तेल और मीठे का सेवन प्रति
दिन आहार में करना चाहिये. थाली में भोजन रंगबिरंगा होना चाहिये. जितने अधिक प्राकृतिक
रंग के भोज्य पदार्थ/व्यंजन सम्मिलित करेंगे आहार उतना
ही अधिक पौष्टिक होगा. ध्यान रखें कि अधिकाधिक भोज्य पदार्थ स्थानीय तौर हमारे
गाँव/कस्बे पर उत्पादित किये गये हों और मौसमी हों. ऐसा भोजन हमारे शरीर के लिये
पाचक होता है. ताज़ी सब्ज़ियों और फल की आपूर्ति हेतु घर पर ही रंगबिरंगी गृह वाटिका
ज़रूर लगायें.
शिशु का आहार:
1. जन्म के उपरांत शिशु का आहार:
प्रसव के पश्चात् 6 माह तक शिशु को केवल स्तनपान कराना चाहिये.
2.सातवें (7 वें) माह से की अवधि में:
दो से तीन (2 – 3) छोटे चम्मच नरम दाल – दलिया अथवा दाल – चावल अथवा दाल - रोटी मसलकर अर्ध ठोस (चम्मच से गिराने पर सरके, बहे नही), खूब मसले साग एवं फल, प्रतिदिन दो बार तथा दें। स्तनपान जारी रखें। नियमित स्तनपान भी जारी
रखें.
3.आठवें से नौवें (8-9 वें) माह से की अवधि में:
नरम दाल – दलिया अथवा
दाल - चावल अथवा दाल - रोटी, की धीरे - धीरे मात्रा
बढ़ायें. नियमित स्तनपान भी करायें. लगभग 2-3 बार आधी कटोरी भोजन दें.
टुकडों में नरम फल भी अवश्य दें. यदि मांस, मछली एवं
अण्डा खाते हैं तो उसे भी शामिल
करें.
4.नौवें से ग्यारवें (9-11 वें) माह की अवधि में:
नरम दाल - दलिया, दाल
- चावल, दाल - रोटी, प्रतिदिन
धीरे - धीरे मात्रा बढ़ाते हुए दें. अच्छी तरह कटे हुए फल एवं बिना मसला
आहार हुआ दिन में तीन बार दें . नियमित स्तनपान जारी रखें. एक बार में 250 मिली का कप/कटोरी भरकर आहार बच्चे को खिलायें.
5.बारवें माह से दो वर्ष (12 माह - 2 वर्ष) की अवधि में:
घर पर पका पूरा खाना, धुले एवं कटे फल, 3 भोजन तथा 2 नाश्ते के रूप में दें, एक बार में 250 मिली0 का कप भरकर आहार बच्चा प्रत्येक भोजन में
ग्रहण करें. स्तनपान के बीच में आहार देना चाहिए, नियमित
स्तनपान जारी रखें.
गर्भावस्था
के दौरान लिये जाने वाले महत्वपूर्ण कार्य:
1. गर्भावस्था की पहचान होने पर अतिशीघ्र निकटम स्वास्थ्य केन्द्र पर
जाकर पंजीकरण करना नियमित जाँच कराना.
2.पौष्टिक व संतुलित आहार का सेवन करना.
3. स्तनपान के सम्बन्ध में उचित जानकारी प्राप्त करना.
4.चिकित्सक द्वारा दिए गये परामर्शों का पालन करना.
सुनिश्चित करना:
1.जन्म के एक घंटे के भीतर बच्चे को स्तनपान कराना.
2.बच्चे को कोलस्ट्रम (प्रारम्भिक पीला दूध) बच्चे को पिलाना.
3. छह माह तक शिशु को केवल स्तनपान कराना.
4. छह माह तक के बाद ऊपरी आहार की शुरुआत करना
5.शिशु एवं बच्चे को नियमित स्वास्थ्य जाँच कराना.
6.शिशु एवं बच्चे का नियमित व समय से टीकाकरण कराना.
आग्रह:
कृपया लेख सम्बन्धी अपने बहुमूल्य विचार नीचे दिये गये कमेंट बॉक्स में अंकित करने की कृपा करें
सादर
प्रियतम अवतार मेहेरबाबा की जय जय जिनेन्द्र सदा !!!
Thank You for writing.
Please keep in touch. Avatar Meher Baba Ji Ki Jai !!!
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जवाब देंहटाएंआग्रह:
हटाएंकृपया लेख सम्बन्धी अपने बहुमूल्य विचार नीचे दिये गये कमेंट बॉक्स में अंकित करने की कृपा करें
सादर
प्रियतम अवतार मेहेरबाबा की जय जय जिनेन्द्र सदा !!!
बहुत ही सार्थक जानकारी है
हटाएंबहुत ही सार्थक जानकारी है पिंकू इसी तरह से लिखते रहो जनकल्याण की भावना से कार्य करो तभी जीवन सफल है तभी सही मायने में अपने अध्ययन अध्यापन का उपयोग कर सकोगे मेरी और से विशेष शुभकामनाएं एवं आशीर्वाद है
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