आयुर्वेद को वैदिक ग्रंथ माना गया है. लगभग 2000 से 5000 वर्ष पूर्व, लिखित इस ग्रंथ
को इतिहासकार अथर्ववेद का भाग मानते हैं, हाँलाकि
अथर्ववेद से पूर्व लिखित ऋगवेद में भी रोग तथा औषधीय पौधों का उल्लेख मिलता है.
आयुर्वेद को, भारत में लिखित चार वेद, ऋगवेद, सामवेद, अथर्ववेद
एवं यजुर्ववेद के अतिरिक्त एक उपवेद माना गया है, जिसमें
वर्णित सिद्धांतों के अनुसार यदि आहार-विहार में पथ्य-अपथ्य का ध्यान रखा जाये तो
मनुष्य, प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर जीवनयापन कर, स्वस्थ्य रह सकता है.
हेमंत ऋतु में, आहार-विहार
सम्बंधी आयुर्वेदिक सिद्धांतों को आपके और आपके परिवार के लिये प्रस्तुत किया जा
रहा है .
आयुर्वेद के अनुसार वर्ष में छह ऋतुयें (हेमंत, शिशिर, वसंत, ग्रीष्म, वर्षा तथा शरद) होती हैं और प्रत्येक ऋतु में दो माह होते हैं. हेमंत ऋतु प्रारम्भ हो चुकी है तथा हेमंत माह का प्रथम माह अगहन तथा द्वितीय माह पौष (पूस) होता है. वर्तमान में, अगहन माह प्रारम्भ हो रहा है. अगहन माह से वातावरण में तापमान कम होने लगता है, और ठंड बढ़ जाती है. पौष (पूस) माह में ठंड और बढ़ जाती है.
इसी प्रकार, जितने भी प्रकार के आहार हैं, वे छह प्रकार के रसों में वर्गीकृत (बँटे हुये हैं) हैं. हेमंत ऋतु को छोड़कर, प्रकृति में, बाकी सभी ऋतुओं (शिशिर, वसंत, ग्रीष्म, वर्षा तथा शरद) में किसी न किसी रस के सेवन की मनाही होती है, किन्तु हेमंत ऋतु में समस्त रसों (मीठा, नमकीन, खट्टा, कड़वा, कसैला और तीखा) के आहार का सेवन करना चाहिये. यह बात विशेष है कि, पूरे वर्ष में, सिर्फ हेमंत ऋतु ही है जिस ऋतु में पूरे छह प्रकार के आहारीय रसों का सेवन किया जा सकता है. इस ऋतु की विशेषता यह भी है कि इस ऋतु में जठराग्नि भी पूरे वर्ष में सर्वाधिक प्रबल होती है. इसलिये गुरु प्रकृति (गरिष्ठ आहार) का भोजन भी सरलता से पच जाता है. अतः हेमंत ऋतु सर्वाधिक (सबसे अधिक) स्वास्थ्यवर्धक ऋतु मानी जाती है. दूसरी ओर प्रकृति में लगभग हर प्रकार की साग, सब्ज़ी, फल, फूल, अनाज, दलहन, तिलहन, दूध, दूध से बनने वाले व्यंजन और मेवे इत्यादि बाहुल्य में और कम दाम में उपलब्ध होती है.
किन्तु, हेंमत ऋतु में मौसम ठंडा और रूखा होता है अतः
शरीर को संतुलित करने के लिये ठंडी तासीर (शीत वीर्य) और कम तापमान के (ठंडा) आहार
और मसालों का, तथा पचने में हल्के और रूखे आहार का सेवन
नहीं करना चाहिये बल्कि गर्म तापमान का आहार, गुरु
(पचने में थोड़े भारी) और स्निग्ध (चिकनाईयुक्त) आहार का सेवन करना चाहिये.
अगहन माह में पारंपरिक एवं अनुभवजन्य आहारीय परामर्श:
हेमंत ऋतु के प्रथम, माह, अगहन में वातावरण का तापमान कम होने लगता है तथा रूखापन बढ़ने लगता है. इस ऋतु में स्निग्ध आहार का उपयोग करें अर्थात तिलहन जैसे मुँगफली, तिल, अलसी, सोयाबीन, सूरजमुखी, जैतून इत्यादि तथा इनके तेल में तले हुये व्यंजनों का सेवन करें. ध्यान रखें कि अगहन माह में ज़ीरे का सेवन नहीं करें क्योंकि ज़ीरा रुक्ष अर्थात रूखा होता है. इसी प्रकार इलायची, दालचीनी, और पुदीना इत्यादि का सेवन भी इस ऋतु में नहीं करें क्यों कि इन मसालों की भी तासीर ठंडी होती है. इस ऋतु में गर्म तासीर के मसालों का उपयोग करें जैसे काली मिर्च, मिर्च, धना, सौंफ, अदरक, सोंठ, केसर और हल्दी इत्यादि.
पौष (पूस) माह में पारंपरिक एवं अनुभवजन्य आहारीय परामर्श:
हेमंत ऋतु का द्वितीय माह पौष (पूस) होता है. यह माह अगहन माह की तुलना में अधिक ठंडा होता है. इस मास में भी, अगहन माह की ही तरह ही स्निग्ध आहार का सेवन करें अर्थात तिलहन तथा तले हुये व्यंजनों का सेवन करें क्योंकि ठंड का मौसम रूखा होता है . ध्यान रखें कि पौष (पूस) माह में दूध का सेवन करें किंतु धने (धनिया मसाले) का सेवन नहीं करें. पारंपरिक रूप से ज़ीरे के सेवन की मनाही नहीं है क्योंकि, हालाँकि, ज़ीरा रूक्ष होता है, फिर भी, ज़ीरा गर्म होता है अतः पौष माह में इसका सेवन किया जा सकता है।
हेमंत ऋतु के अगहन तथा पौष (पूस) मास हेतु पारंपरिक एवं अनुभवजन्य विहारीय
परामर्श:
अगहन तथा पूस मास में शरीर में उबटन लगायें, सरसों/ तिल के तेल की मालिश कर धूप तापें, फिर
गुनगुने / गर्म पानी से स्नान करें. नाभि में भी सरसों का तेल लगायें ऐसा करने से
शरीर गर्म रहेगा तथा खाँसी तथा ज़ुखाम होने की संभावना कम हो जायेगी. अब शरीर को
सूखी तौलिये से पोंछने के पश्चात गर्म वस्त्र धारण (स्वेटर, मफलर, टोपी, दस्ताने
और मोज़े आदि) धारण करें. ठंडी वायु के सम्पर्क में आने से बचें.
ध्यान रखें:
चूँकि हेमंत ऋतु में वातावरण में तापमान कम होने लगता है, और वायु रूखी होने लगती है. अत: ऐसे मौसम में पहले से वात से प्रभावित
व्यक्ति अथवा ५० वर्ष से अधिक की उम्र के व्यक्ति वात दोष से अधिक प्रभावित होते
हैं. ऐसे व्यक्ति, वात
में वृद्धि करने वाले आहार जैसे तीखे, कड़वे एवं कसैले
रस वाले रूखे एवं लघु (पचने में हल्के) आहार का सेवन नहीं करें. बल्कि मीठे, खट्टे और नमकीन रस वाले स्निग्ध एवं गुरु (गरिष्ठ) आहार का सेवन लाभकारी
होगा. यदि गरिष्ठ आहार के पाचन में कठिनाई आये तो भोजन के पूर्व अदरक के टुकड़े में
सेंधा नमक लगा कर चबा कर सेवन करें फिर आहार ग्रहण करें.
गर्म तासीर (ऊष्ण वीर्य) के आहार:
ठंड के दिनों में जब वातावरण का तापमान कम होता है तब आहार के निम्नलिखित अव्यवों का सेवन लाभकारी होता है:
मेवे:
बादाम त्रिकोण फल (ब्राज़ील नट) काजू, किशमिश (बिना पानी में फुलाई हुई, सूखी हुई), अखरोट, शाहबलूत (चैस्ट नट), पिंगल फल अथवा पहाड़ी बादाम (हेज़ल नट), मुँहफली, तिल के बीज (दाने), सूरजमुखी की बीज, पिस्ता और मेवा (बिना पानी में फुलाया हुआ और बिना छीला हुआ).
मसाले:
काली मिर्च, मिर्च, धना (धनिये का बीज), ज़ीरा, सौंफ, मेथी दाना, जावित्री, तेज़ पत्ता, अदरक, सोंठ, केसर, हल्दी, अजवाईन, जायफल, बड़ी इलायची, हींग और पीपली।
तेल:
सूरजमुखी का तेल, मक्के का तेल, सरसों का तेल, मुँहफली का तेल, जैतून का तेल, अखरोट का तेल, तिल का तेल, कुसुम का तेल (सैफफ्लावर तेल) और अलसी का तेल।
घी:
देशी गाय के दूध से बना घी।
अनाज एवं मोटा अनाज:
कुट्टू (बकव्हीट), जई, बिना पॉलिश अथवा कम पॉलिश किया हुआ भूरा चावल (ब्राऊन राईस), बाजरा, मक्का, राई
और मोटा अनाज।
दालें:
अरहर, उड़द, नेवी बीन, भूरी मसूर, राजमा और मीज़ो।
फल:
सेब का रस, पपीता, चैरी, सूखे फल, चकोतरा, रसभरी, कीवी, नींबू, बड़ा नींबू (लाईम), लीची, आम, संतरा, पंजा फल (पॉपॉ - एक तरह का पपीता जैसा दिखने वाला फल), आड़ू / रतालू (पीच), अनानास, आलू बुखारा (प्लम), रसभरी (रैस्पबैरी), सैत्सुमा (एक प्रकार का संतरा), स्ट्रॉबैरी, पकाया हुआ सेब, खुबानी (ऐप्रिकॉट), ब्लैकबैरी (कृष्णबदरी), पका केला, करौंदा (क्रैनबैरी), हरे अंगूर और चकोतरा।
सब्ज़ियाँ:
हाथीचक (आर्टिचोक), बिना पकाया हुआ टमाटर, पकाया हुआ टमाटर, टमाटर का सॉस, बैंगन, शिमला मिर्च, लहसुन, हरा प्याज़ (लीक), प्याज़, गाज़र, मूली,
मशरूम, प्याज़, सरसों का साग, पार्सनिप (गाज़र की तरह सफेद रंग का मूल), मिर्च, स्वीड (एक प्रकार का शलजम), परवल, शलजम, चुकंदर, स्वीट कॉर्न, जलकुम्भी (वॉटरक्रेस), ब्रसल स्प्राऊट गोभी, बरडॉक जड़ (बरडॉक रूट) और जैतून।
दूध एवं दुग्ध उत्पाद:
गाढ़ा
दूध (कंडैंस्न्ड दूध), क्रीम, अंडे का
पीला भाग, सोया दूध और मेयोनेज़ (एक प्रकार का मक्खन), छाछ, दही, (ध्यान रखें कि
छाछ और दही का सेवन ग्रीष्म ऋतु में अधिक लाभकारी होता है)।
पेय पदार्थ:
कॉफी, चाय, कोला, गर्म चॉकलेट, नींबू का शर्बत, मॉल्ट का रस (अंकुरित और भुने जौ का रस) और सन्तरे का रस।
मीठा:
शहद, खार (मार्मिट), पुडिंग (आटे अथवा मैदे को बेक (सेंकना) कर के अथवा उबाल कर बनाया गया मीठा व्यंजन), सफेद शक्कर, भूरी शक्कर अथवा खाँड, देसी गुड़ और पिंड खजूर (प्रसंस्कृत अथवा तैयार किया गया)।
अन्य आहारीय अवयव:
बबूल का गोंद, विभिन्न प्रकार के
अचार, नमक, धूँये से उपचारित आहार (स्मोक्ड फूड), सिरका, खमीर (यीस्ट), बिस्कुट, केक, चॉकलेट और जैम।
शीत वीर्य (ठंडी तासीर) के मसाले और आहार :
हेमंत ऋतु में जब वातावरण का तापमान काम होने लगता है और ठंड बढ़ने लगती है तब आहार के निम्नलिखित अव्यवों का सेवन लाभकारी होता है।
मेवे:
कुम्ड़ाह की बीज, बादाम (पानी में फुलाया हुआ तथा छिलका उतारा हुया) एवं नारियल और खजूर का फल और भीगी (पानी में फुलाई हुई) किशमिश।
मसाला: इलायची, दालचीनी, लौंग, पुदीना और नारियल।
तेल :
नारियल का तेल, तिल का तेल और वनस्पति तेल।
अनाज एवं मोटा अनाज तथा इनसे तैयार उत्पाद:
जौ, जवा, किनोवा, फलियाँ, ब्राऊन ब्रैड (गेहूँ से बनी डबल रोटी), सफेद ब्रैड (मैदे से बनी डबल रोटी), सफेद चावल, पीला चावल, गेहूँ, राजगीर एवं टैपिओका।
दालें:
मूँग दाल, लाल मसूर, पिंटो बीन, सोयाबीन, अंकुरित दालें और सफेद सेम (व्हाईट बीन)।
फल:
स्ट्रॉबैरी, अंगूर (लाल, बैंगनी / काले), तरबूज़, खरबूज़, नाशपाती (ऐवोकैडो), अंजीर, अनार, रभर्ब (रेवाचीनी), सेब, ऐवोकैडो (एक प्रकार की नाशपाती), नाशपाती (पियर), केला, बेल, सिंघाड़ा, जामुन, इमली, किशमिश और खजूर का फल (जिसका प्रसंस्करण नहीं किया गया है)।
सब्ज़ियाँ:
आलू,, भिंडी, फ्रैंच बीन, मटर, शतावर, फलियाँ, ब्रौकली (हरी गोभी), पत्ता गोभी, फूल गोभी, केल गोभी, बेल वाली सब्ज़ियाँ (जैसे तुरई, कुम्ड़ाह, स्क्वॉश और ज़ुकनी आदि), पालक, धनिया पत्ती, लैटस (सलाद पत्ता), अजवाईन पत्ता अथवा अजमोद पत्ता (सलाद), खीरा, ककड़ी और करेला (भावप्रकाश के अनुसार अहिमा अर्थात कयदेव निघंटु के अनुसार न गर्म न ठंडा, ग़र्म तासीर: भोजन कतुहलम के अनुसार)।
दूध एवं दुग्ध उत्पाद:
गाय का दूध, बिना मलाई का दूध, मक्खन, बकरी का दूध, चीज़, अंडे का सफेद भाग, गाय के दूध से बना घी, आईस क्रीम, मार्जरीन और योगर्ट (एक प्रकार का दही)।
पेय पदार्थ:
नारियल का पानी।
मीठा:
मिश्री।
अन्य आहारीय अवयव:
गोंद कतीरा।
संदर्भ:
१. वागभट्ट ऋषि द्वारा लिखित
अष्टांग हृदय, सूत्रस्थान का तीसरा अध्याय, ऋतुचर्या अध्याय ।
२. ऋषि चरक द्वारा लिखित चरक
संहिता सूत्र स्थान का छँटवा अध्याय, त्स्याशितीय
अध्याय ।
३. Youtube/ayurvedaforeveryone.com
४. Youtube/easyayurveda.com
५. https://www.banyanbotanicals.com/
सादर जय प्रियतम अवतार मेहेरबाबा जय जिनेंद्र
आदरणीय पाठकों
जवाब देंहटाएंसादर जय बाबा,
यह लेख आपको हेमंत ऋतु में उचित आहार के चयन में सहायता करेगा, इस उद्देश्य के साथ लिखा गया है।
आपके विचारों,सुझावों और प्रतिक्रियाओं का स्वागत है जिसे आप कमेन्ट बॉक्स में ज़रूर लिखें।
पूरे परिवार को नववर्ष मुबारक हो,
प्रियतम अवतार मेहेरबाबा सदा कृपा करें,
जय बाबा, जय जिनेन्द्र सदा !!!!!