लेखन: डी.सी. श्रीवास्तव1,
सुरेन्द्र पन्नासे एवं आर. के.झाड़े
जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, कृषि विज्ञान केन्द्र, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)
आज न केवल हमारे देश में बल्कि समूचे विश्व
में कृषि उत्पादन एवं कृषि प्रौद्योगिकी से जुडे लोगों के सामने सबसे बड़ी चुनौती
है कि किस प्रकार पौष्टिक आहार की मात्रा बढ़ायी जाये । मोटे अनाज एवं इसके उत्पाद
इस संदर्भ में अपनी अहम भूमिका निभा सकते हैं। मोटे अनाजों में मुख्यतः मक्का, ज्वार
एवं बाजरा के अतिरिक्त कंगनी, कोदो, कुटकी, चेना, रागी एवं साँवा भी शामिल है । इन मोटे आनाजों
में रागी (कर्नाटक प्रान्त), चेना व कुटकी (बिहार प्रान्त) कोदों, कुटकी
व कंगनी (मध्यप्रदेश) एवं साँवा (उत्तर प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों से लेकर
मध्यप्रदेश के मैदानी क्षेत्रों तक) शामिल हैं ।
इन मोटे अनाजों की यह विशेषता है कि ये कम
उपजाऊ एवं ढालू भूमियों में भी उत्पादित किये जा सकते हैं। इनके उत्पादन में कम
उर्वरक, सिंचाई, कृषि
क्रियाओं तथा कीटों एवं व्याधियों के रोकथाम हेतु व्यय
एवं देखभाल की आवश्यकता पड़ती है । इस कारण आर्थिक दृष्टि से कमज़ोर वर्ग के कृषक
परिवार भी मोटे अनाज की खेती कर सकते हैं । देश की 60 प्रतिशत जनसंख्या धान व गेहूँ जैसे उच्च
स्तरीय खाद्यान्नों को अपने मुख्य आहार के रूप मे सेवन करती है वहीं 40
प्रतिशत जनसंख्या मोटे अनाजों को अपने मुख्य भोजन के रूप में स्वीकार कर चुकी है ।
(कंगनी) फॉक्सटेल मिलेट
पिछले कुछ वर्षों से गेहूँ और धान के उपज में
वृद्धि के कारण मोटे अनाजों के उत्पादन में काफी ह्रास हुआ है । कृषि क्षेत्रों का
कम होते जाना और आय एवं खाद्य सुरक्षा के लिये आधुनिक कृषि पर निर्भर होना भी, मोटे
अनाज की खेती नहीं करने का कारण बना है । उपरोक्त सारी परिस्थितियाँ मोटे अनाज की
खेती को नगण्य बना रही हैं । परन्तु इन सारी विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अब यह
स्वीकार किया जाने लगा है कि मोटे अनाज की फसलें स्वास्थ्य की दृष्टि से हितकर हैं
। इनमें उच्च पोषक क्षमता, रेशे
की अधिकता एवं कार्बोज़ की आनुपातिक मात्रा में कमी है अत: मोटे अनाज खाद्यान्न के
रूप में अत्यंत मह्त्वपूर्ण हैं । ऐसी स्थिति में इनके परम्परागत स्वरूप को लघु
एवं सीमान्त कृषकों की खेती के रूप में
प्रस्तुत करने की आवश्यकता है ताकि स्वास्थ प्रदान करने वाले खाद्यान्न के तौर पर
इन अनाजों का उपयोग किया जा सके । मोटे अनाज की खेती के प्रति कृषक परिवारों का रूझान
बढ़ाने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम होगा। इन अनाजों की निम्नांकित प्रजातियाँ
(स्पेशीज) हैं, जिनके साथ वंशों (फैमिलीज) के नाम भी दिये गये हैं ।
सारणी –
क्र. |
हिन्दी नाम |
अंग्रेज़ी नाम |
वैग्यानिक नाम |
1 |
मड़ुआ/रागी |
फिंगर मिलेट |
इल्युसिन कोराकाना (गार्टल) |
2 |
कंगनी अथवा काकुन |
फॉक्स टेल मिलेट
अथवा इटैलियन मिलैट अथवा जर्मन मिलैट |
सेटेरिया इटैलिका (बाव ) |
3 |
साँवा |
बारनार्ड मिलैट |
इपीनिक्लोआ क्रसगाली (एल) (किस्म: फ्रमैनटेसी)
|
4 |
चैना |
प्रोसो मिलैट अथवा कॉमन अथवा हॉग मिलैट अथवा रैड मिलेट अथवा व्हाईट मिलैट |
पैनीकम मिलियाशियम (एल) (वैराइटी इफयूसम
कॉनट्रेक्टम तथा कॉम्पैक्टम) |
5 |
कुटकी |
लिटिल मिलैट |
पैनीकम मिलियोर (एल) |
6 |
कोदो |
कोदो अथवा डिच मिलैट |
पैस्पालम स्क्रोवाई-कुलेटम (एल) |
7 |
ब्राऊनटोप मिलैट |
ब्राऊनटोप मिलैट |
पैनीकम रेमासम (एल) |
गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वालों को भी
ये मोटे अनाज भी भरपूर मात्रा मे नही मिलते। अतः अब यह प्रयास किये जा रहे है कि मोटे
आनाजों की उन्नत किस्मों को विकसित कर इनका उत्पादन बढ़ाया जा सके तथा इनके बीजों
को आसानी से किसानों को उपलब्ध कराया जा सके । मोटे आनाज ,ए& उपस्थित पौष्टिक
त्त्व की जानकारी निम्न सारणी में प्रस्तुत है -
धान्य फसलों में उपस्थित पौष्टिक तत्व:
क्र. |
खाद्यान्न |
प्रोटीन (ग्राम) |
कार्बोज़ (ग्राम) |
वसा (ग्राम) |
रेशा (ग्राम) |
खनिज लवण (ग्राम) |
कैल्सियम (ग्राम) |
फॉस्फोरस (ग्राम) |
1.
|
गेहूँ |
11-80 |
71-20 |
1-50 |
1-20 |
1-50 |
41-00 |
306-00 |
2.
|
धान |
6-80 |
78-20 |
0-50 |
0-20 |
0-60 |
10-00 |
160-00 |
3.
|
जौ |
11-50 |
69-60 |
1-30 |
3-90 |
1-20 |
26-00 |
215-00 |
4.
|
मक्का |
11-10 |
66-20 |
3-60 |
2-70 |
1-50 |
20-00 |
348-00 |
मोटे अनाज में उपस्थित पौष्टिक तत्व:
क्र. |
खाद्यान्न |
प्रोटीन (ग्राम) |
कार्बोज़ (ग्राम) |
वसा (ग्राम) |
रेशा (ग्राम) |
खनिज लवण (ग्राम) |
कैल्सियम (ग्राम) |
फॉस्फोरस (ग्राम) |
1.
|
ज्वार |
10-40 |
72-60 |
1-90 |
1-60 |
1-60 |
25-00 |
222-00 |
2.
|
बाजरा |
11-60 |
67-50 |
5-00 |
1-20 |
2-30 |
42-00 |
296-00 |
3.
|
रागी |
7-30 |
72-00 |
1-30 |
3-60 |
2-70 |
344-00 |
283-00 |
4.
|
चीना |
12-50 |
70-40 |
1-10 |
2-20 |
1-90 |
14-00 |
206-00 |
5.
|
कँगनी |
12-30 |
60-90 |
4-30 |
8-00 |
3-30 |
31-00 |
290-00 |
6.
|
कोदो |
8-30 |
65-90 |
1-40 |
9-00 |
2-60 |
27-00 |
188-00 |
7.
|
कुटकी |
8-70 |
75-70 |
5-30 |
8-60 |
1-70 |
17-00 |
220-00 |
8.
|
साँवा |
11-60 |
74-30 |
5-80 |
14-70 |
4-70 |
14-00 |
121-00 |
स्त्रोत :- भारतीय खाद्यान्नों का पोषक मान, 1991, एन.आई.एन., हैदराबाद, भारत।
मोटे
अनाजों की मुख्य विशेषतायें:
1.
मोटे अनाजों में अमीनो अम्ल संतुलित मात्रा में पाया जाता है जैसे मिथियोनिन, सिसटटीन
एवं लाईसिन अमिनो अम्ल ।
2.
इसमें थाईमिन, राईबोफ्लेबिन, कोलिन एवं नियासिन विटामिन भी प्रचुर मात्रा
में पाये जाते हैं ।
3.
रागी कैल्सियम का मुख्य स्त्रोत है । यह मुख्य रूप से कैल्सियमयुक्त पौष्टिक
आहार में प्रयोग किया जाता है जो कि गर्भवती महियों एवं छोटे बच्चों को विशिष्ट
आहार के रूप मे दिया जा सकता है ।
4.
मोटे अनाज मधुमेह की बीमारी की रोकथाम मे भी काफी उपयुक्त पाये गये है क्योकि
ये मनुष्य के खून ग्लुकोज़ को मे बहुत धीरे-धीरे छोड़ते हैं जिससे शरीर मे शक्कर की
मात्रा संतुलित रहती है ।
5.
प्रसंस्करण एवं उत्पाद विकास को मूल्य अभिवृद्धि प्रणाली को शामिल करके मोटे
अनाजों को लोकप्रिय बनाने का प्रयास किया जाना चाहिये । ग्राम स्तर पर स्वयं
सहायता समूहों के माध्यम से छोटी मिलें स्थापित करके मूल्य अभिवृद्धि उत्पाद जैसे
आटा, डिब्बाबंद
हल्के खाद्य पदार्थ, बच्चों हेतु पोषण आहार तथा बिस्कुट, ब्रेड, स्नैक्स
आदि का उत्पादन का कार्य अच्छी तरह से किया जा सकता है।
6.
मोटे अनाजों का भंडारण अन्य अनाजों की अपेक्षा अधिक समय तक किया जा सकता है
क्योंकि भंडारण के दौरान इसमें कीट एवं रोग भी कम लगते है ।
मोटे अनाज की विशेषता:
विशिष्ट तथ्य |
औषधीय एवं पोषक़ मूल्य |
मोटे अनाज द्वारा निर्मित खाद्य पदार्थ |
·
प्रोटीन,
विटामिन एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों की अधिकता ·
सीमान्त
क्षेत्र में विकास ·
स्वस्थ,
पूरक खाद्य |
कम मात्रा में कार्बोज़ तथा विटामिन-ए, बी-कॉम्प्लेक्स, बीटा-केरोटीन, आयरन, कैल्सियम,
प्रोटीन की
उपस्थिति के कारण मोटे अनाज बुज़ुर्ग, बीमार एवं शर्करा रोगियों हेतु अनुशंसित खाद्यान्न
हैं |
मिठाई बेक्ड खाद्य शर्करा रोगी हेतु खाद्य स्नैक्स शिशु खाद्य पूरक खाद्य |
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