मनुष्य के शरीर में आधारभूत रूप से तीन प्रकार की ऊर्जायें विद्यमान होती हैं। इन ऊर्जाओं को दोष कहा जाता है। किंतु यह दोष नहीं होते हैं बल्कि जीवन को संचालित करने के लिये आवश्यक ऊर्जा होती हैं । स्वस्थ्य जीवन हेतु इन तीनों दोषों को संतुलित रखना अनिवार्य होता है ।
हिन्दी कैलेंडर के अनुसार वसंत ऋतु में दो माह, फाल्गुन
और चैत्र होते हैं । इन दोनों माहों में से फाल्गुन माह बीत चुका है तथा चैत्र माह
प्रारंभ हो गया है । फाल्गुन माह की तुलना में चैत्र
माह में दिन का तापमान अधिक होता है किंतु रात का तापमान अभी भी कम रहता है,
जिस कारण रातें ठंडी होती हैं । फाल्गुन माह में वातावरण के तापमान
में वृद्धि होनी तो प्रारम्भ चुकी है और चैत्र माह में दिन के तामपमान में और भी
वृद्धि हो रही है, किंतु अभी ग्रीष्म ऋतु प्रारम्भ नहीं हुई
है जब वातावरण में दिन और रात दोनों का ही तापमान बढ़ जाता है । वसंत ऋतु, शिशिर तथा ग्रीष्म ऋतु के मध्य परिवर्तन की ऋतु है । हेमंत तथा शिशिर
ऋतुओं में शरीर में जो कफ संचित होता है वह वसंत ऋतु की फाल्गुन माह तथा चैत्र माह
में अधिक तापमान के कारण पिघलना प्रारंभ होता है जिसे कफ का शरीर में प्रकुपित
होना कहा जाता है । इसलिये, फाल्गुन माह में फिर चैत्र माह
में मनुष्यों में कफ़ संबंधी रोग जैसे खाँसी, ज़ुखाम नज़ला, नाक बहना, छींक आने जैसी समस्यायें होती हैं,
जो कि चैत्र माह में और बढ़ने की संभावना होती हैं ।
हेमंत और शिशिर ऋतु में त्वचा पर स्थित रोम छिद्र बंद हो जाते हैं, ताकि
इन ऋतुओं में, वातावरण के कम तापमान के बाद भी शरीर गर्म रहे,
और इस प्रकार शरीर और वातावरण के मध्य तापमान का संतुलन बना रहे ।
रोम छिद्र बंद होने के कारण शरीर में जठराग्नि (पाचक अग्नि अथवा मैटाबॉलिक फायर)
प्रबल हो जाती है । फाल्गुन माह से प्रारंभ होकर चैत्र माह में धीरे-धीरे तापमान में वृद्धि होने लगती है जिसके फलस्वरूप शरीर के रोम
छिद्र भी खुलते जाते हैं ताकि शरीर की गर्मी बाहर
निकल सके और शरीर का तापमान कम हो सके जिस कारण शरीर वातावरण के तामपमान के साथ
संतुलन स्थापित कर सके । शरीर के रोम छिद्र खुलने के कारण शरीर में जठराग्नि
धीरे-धीरे मंद होने लगती । जठराग्नि मंद होने की कारण शरीर के पाचन शक्ति की
क्षमता में भी कमी आने लगती है ।
परिवर्तित होते वातावरणीय तापमान और शरीर के दोषों पर तापमान के प्रभाव को संतुलित अवस्था में रखने के लिये ऋतुचर्या के अनुसार आहार-विहार के आयुर्वैदिक नियमों का पालन करना हितकर होता है ।
घर के बुज़ुर्गों का आहार संबंधी
अनुभवजन्य तथा पारंपरिक ज्ञान भी इस विषय में मार्गदर्शन करता है ।
आयुर्वेदिक
आहारीय अनुशंसा
प्राचीन तथा प्रमाणित
आयुर्वेदिक ग्रंथों में संकलित पथ्य-अपथ्य के आहारीय ज्ञान के अनुसार अनुशंसायें
इस प्रकार हैं -
1. शरीर में, फाल्गुन माह से अधिक कफ चैत्र माह में प्रकुपित होता है । कफ को संतुलित
रखने के लिये तिक्त स्वाद (रस) वाले खाद्य पदार्थ (जैसे - मिर्च, अजवाईन, पीपली और सौंठ इत्यादि), कसैले स्वाद (रस) वाले खाद्य पदार्थ (जैसे-आँवला, जामुन, कच्चा अमरूद, कच्चा केला, छिल्के वाली मूँग दाल और छिलके
वाली अरहर दाल इत्यादि, जिसके सेवन से जीभ ऐंठे, ऐसे खाद्य पदार्थ, तथा कड़वे रस (स्वाद) वाले खाद्य
पदार्थ (जैसे- कड़वी नीम, करेला, मेथी, हल्दी, हरड़, लौकी, परवल और मूली इत्यादि) का सेवन करना चाहिये ।
2. इस माह में,
कफ को शरीर में संतुलित अवस्था में रखने के लिये खट्टे, मीठे और नमकीन स्वाद (रस) के
खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करें ।
3. इस माह में,
चूँकि जठराग्नि मंद होने लगती है अतः गुरु (गरिष्ठ आहार जैसे अधिक
चिकनाई युक्त गहरे तले हुए तैलीय आहार, दूध तथा दूध से
बने खाद्य पदार्थ, माँसाहार, गर्म
मसाले तथा गर्म तासीर (पोटैंसी) के आहार का सेवन नहीं करें । आपके अवलोकनार्थ
कृपया गर्म तथा ठंडी तासीर के आहार की सूची, इस लेख के अंत
में संलग्न की गई है ।
4. इस माह
में ठंडे मसाले तथा ठंडी तासीर (पोटैंसी) के आहार का सेवन करें ।
5. नया
अनाज तासीर में गर्म होता है अत: इस माह में नये अनाज का सेवन नहीं करें । यदि नये
अनाज का सेवन आवश्यक हो तो पहले अनाज को हल्का भून लें फिर उपयोग करें । इस ऋतु
में गेहूँ के अतिरिक्त ज्वार और बाजरे का सेवन भी किया जा सकता है ।
6. गहरे
तले हुये आहार के स्थान पर कम अथवा हल्के तले, सिंके,
भुने अथवा उबले हुये आहार का सेवन करें ।
7. यदि कफ बन
रहा जो तो शहद का सेवन लाभकारी होता है यह औषधि के रूप में कार्य करता है । ध्यान
रहे गुड़ की तसीर गर्म होती है अतः कफ दोष को स्ंतुलित करने के लिये इस माह में ग़ुड़
का सेवन नहीं किया जाता है ।
चैत्र माह में पेय पदार्थों
के सेवन की आयुर्वेदिक अनुशंसा*
1. वातावरण के बढ़ते तापमान में शरीर के तापमान को संतुलित बनाये रखने के लिये शरीर स्वेद (पसीना) का त्याग करता है, जिस कारण शरीर में जल की कमी होने लगती है, अतः शरीर में जल स्तर को संतुलित रखने के लिये समय-समय पर स्वच्छ, सामान्य तापमान के जल का आवश्यकतानुसार सेवन करें । ध्यान रखें कि बहुत गर्म अथवा ठंडे जल का सेवन नहीं करें । आहार के मध्य अथवा तुरंत बाद जल का सेवन नहीं करें । हाँलाकि आवश्यकता पड़ने पर सीमित मात्रा में जल का सेवन कर सकते हैं ।
2. शरीर में कफ को नियंत्रित करने के लिये एक लीटर स्वच्छ जल को उबालकर ठंडा
कर लें । इसमें आधे से एक चम्मच शहद मिला का सेवन करने से । इस प्रकार दिन में
लगभग चार चम्मच तक शहद का उपयोग करें । ध्यान रखें कि
शहद को कभी भी गर्म पानी के साथ उपयोग नहीं करें ।
3. यदि शहद का उपयोग नहीं करना चाहते हैं तो ऊपर दी गई विधि से स्वच्छ जल को
उबालकर और ठंडा कर तैयार
करें और शहद के स्थान पर दो चुटकी सौंठ, मिश्रित कर सेवन कर
सकते हैं । इस प्रकार के पानी के सेवन से भी कफ को नियंत्रित किया जा सकता है ।
4. वसंत ऋतु में भैंस का दूध कतई न पीयें । गाय के दूध का सेवन भी कम करें ।
दूध के सेवन से कफ बनता है । फिर भी जब भी दूध पीयें तो गाय के दूध में हल्दी और
सोंठ मिला कर पीयें जिससे दूध पीने के बाद भी कफ नहीं बनेगा ।
5. इस ऋतु में दही तथा दही से बनने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करें बल्कि आप मसाले वाले ताज़े छाछ (छाछ में, ज़ीरा, हींग, अजवाईन और कढ़ी पत्ता मिलाकर) का उपयोग कर सकते हैं ।
चैत्र माह हेतु पारम्परिक एवं अनुभवजन्य आहारीय अनुशंसा:
पीढ़ी दर पीढ़ी संकलित आहार सम्बन्धी अनुभवजन्य और परम्परागत ज्ञान भी बहुत उपयोगी साबित हुआ है । इस ज्ञान से प्राप्त, चैत्र माह की आहारीय अनुशंसा इस प्रकार हैं -
1. चैत्र माह में चने तथा चने से बने हुये खाद्य पदार्थों के सेवन की अनुशंसा
है। चना सुपाच्य प्रकृति में लघु (हल्का) तथा स्वाद में कसैला होता है अत: पचने
में आसान और कफ को संतुलित करने वाला आहार होता है ।
2. चैत्र माह में माह में गुड़ के सेवन का निषेध है क्योंकि गुड़ की
तासीर गर्म होती है ।
3. प्रातःकाल कड़वी नीम की कोमल कोपलों की तीन से चार नई पत्तियों की गोलियाँ
बना कर सेवन करें जिससे शरीर में कफ दोष संतुलित होता है । विशेषकर चैत्र
नवरात्रि के नौ दिन यह कार्य अवश्य करें ।
चैत्र माह हेतु आयुर्वेदिक विहारीय अनुशंसा:
1. वसंत ऋतु में प्रातः काल उठ कर व्यायाम, योग, प्राणायाम
करें ।
2. दिन में सोना नहीं चाहिये अन्यथा कफ बढ़ेगा । जितना कफ बढ़ेगा उतना शरीर
में आलस्य में वृद्धि होगी ।
3. कफ के प्रभाव से शरीर में कैल्शियम की कमी होती है, जिस कारण शरीर में आलस्य का अनुभव होता है और शरीर
में कुछ दर्द का अनुभव भी हो सकता है । ऐसा होने पर कैल्शियम से भरपूर खाद्य पदार्थों
का अथवा पूरक गोलियों (सप्लीमैंट) का सेवन कर सकते हैं ।
4. ऐसी स्थिति में शरीर में ह्ल्की मालिश करना भी लाभकारी है ।
5. चूँकि इस माह में धूप प्रखर हो रही है अत: दिन में टोपी, पगड़ी लगा कर अथवा गमछे से सिर ढक कर ही धूप में
बाहर निकलें ।
6. दिन में सूती के ढीले वस्त्र धारण करना प्रारम्भ करें । रात में
तापमान के अनुसार आरामदायक वस्त्र धारण करें ।
7. रात में सोते समय गर्म मोटी चादर अथवा शॉल का उपयोग कर सकते हैं।
वसंत काल हेतु आयुर्वेद के
अनुसार पंच कर्म :
1. वसंत काल
हेतु श्रेष्ठ पंच कर्म वमन क्रिया है जिससे कफ को नियंत्रित किया जा सकता है.
किंतु इस क्रिया को प्रशिक्षित तथा कुशल आयुर्वेदिक चिकित्सक के मार्गदर्शन
में ही करें ।
2.फिर उद्वर्तन
(शरीर पर पिसी हल्दी, जौ का आटे/ चने का आटे में तेल
मिलाकर उबटन) कर गुनगुने से सामान्य तापमान के
स्वच्छ जल से स्नान करना चाहिये। जल में कड़वी नीम की कोमल पत्तियाँ मिला कर स्नान
करना भी त्वचा के स्वास्थ्य के लिये लाभकारी होता है ।
3. पंच महाभूत में से
पृथ्वी तत्व (सेवन किये जाने वाले अनाज पृथ्वी तत्व से ही निर्मित होते हैं) तथा
जल तत्व से कफ का निर्माण होता है । ऐसा कहा गया है कि ‘लंघनम
परम औषधम’ अर्थात उपवास अथवा व्रत श्रेष्ठ औषधीय है । इस माह
में व्रत अथवा निर्जला व्रत तथा व्रत के उपरांत सुदर्शन क्रिया (ऐनिमा) कर कफ का
उपचार किया जा सकता है साथ ही शरीर की शुद्धि (डीटॉक्सिफिकेशन अथवा डीटॉक्स) भी की
जा सकती है। ध्यान रहे यह सब क्रियायें किसी प्रशिक्षित एवं कुशल अयुर्वेदिक अथवा
प्राकृतिक चिकित्सक के मार्गदर्शन में ही करें । स्वयं यह कार्य कतई नहीं करें ।
मह्त्वपूर्ण बिन्दु कृपया ध्यान दें:
इस लेख में दी गई अनुशंसायें स्वस्थय व्यक्तियों
के लिये ही उपयोगी हैं । आवश्यकता होने पर कृपया चिकित्सक से सम्पर्क करें ।
गर्म तासीर (ऊष्ण वीर्य) के आहार:
1. ठंड के दिनों में जब वातावरण का तापमान कम होता है तब आहार के
निम्नलिखित अव्यवों का सेवन लाभकारी होता है :
2. मेवे: बादाम
त्रिकोण फल (ब्राज़ील नट) काजू, किशमिश (बिना पानी में
फुलाई हुई, सूखी हुई), अखरोट, शाहबलूत (चैस्ट नट), पिंगल फल अथवा पहाड़ी बादाम (हेज़ल नट), मुँहफली, तिल के बीज (दाने), सूरजमुखी की बीज, पिस्ता और मेवा (बिना पानी में फुलाया हुआ और बिना छीला हुआ) .
3. मसाले: काली मिर्च, मिर्च, धना (धनिये का बीज), ज़ीरा, सौंफ, मेथी दाना, जावित्री, तेज़ पत्ता, अदरक, सोंठ, केसर, हल्दी, अजवाईन, जायफल, बड़ी इलायची, हींग
और पीपली .
4. तेल: सूरजमुखी
का तेल, मक्के का तेल, सरसों
का तेल, मुँहफली का
तेल, जैतून का तेल, अखरोट का
तेल, तिल का तेल, कुसुम का
तेल (सैफफ्लावर तेल) और अलसी का तेल .
5. घी: देशी
गाय के दूध से बना घी .
6. अनाज एवं मोटा अनाज: कुट्टू (बकव्हीट), जई, बिना पॉलिश अथवा कम पॉलिश किया हुआ भूरा चावल (ब्राऊन राईस), बाजरा, मक्का, राई
और मोटा अनाज .
7. दालें: अरहर, उड़द, नेवी बीन, भूरी मसूर, राजमा और मीज़ो .
8. फल: सेब का
रस, पपीता, चैरी, सूखे फल, चकोतरा, रसभरी, कीवी, नींबू, बड़ा नींबू (लाईम), लीची, आम, संतरा, पंजा फल (पॉपॉ - एक तरह का पपीता जैसा
दिखने वाला फल), आड़ू / रतालू (पीच), अनानास, आलू बुखारा (प्लम), रसभरी (रैस्पबैरी), सैत्सुमा (एक प्रकार का
संतरा), स्ट्रॉबैरी, पकाया
हुआ सेब, खुबानी (ऐप्रिकॉट), ब्लैकबैरी (कृष्णबदरी), पका केला, करौंदा (क्रैनबैरी), हरे अंगूर और चकोतरा .
9. सब्ज़ियाँ: हाथीचक ), बिना पकाया हुआ टमाटर, पकाया हुआ टमाटर, टमाटर का सॉस, बैंगन, शिमला मिर्च, लहसुन, हरा प्याज़ (लीक), प्याज़, गाज़र, मूली, मशरूम, प्याज़, सरसों
का साग, पार्सनिप (गाज़र की तरह सफेद रंग का मूल), मिर्च, स्वीड (एक प्रकार का शलजम), परवल, शलजम, चुकंदर, स्वीट कॉर्न, जलकुम्भी (वॉटरक्रेस), ब्रसल स्प्राऊट गोभी, बरडॉक जड़ (बरडॉक रूट) और
जैतून .
10. दूध एवं दुग्ध उत्पाद: गाढ़ा दूध (कंडैंस्न्ड दूध), क्रीम, अंडे का पीला भाग, सोया दूध और मेयोनेज़ (एक प्रकार का मक्खन), छाछ, दही, (ध्यान रखें कि छाछ और दही का सेवन ग्रीष्म ऋतु में अधिक लाभकारी होता
11. पेय पदार्थ: कॉफी, चाय, कोला, गर्म चॉकलेट, नींबू का शर्बत, मॉल्ट का रस (अंकुरित और भुने जौ का रस) और सन्तरे का रस .
12. मीठा: शहद, खार (मार्मिट), पुडिंग (आटे अथवा मैदे को बेक
(सेंकना) कर के अथवा उबाल कर बनाया गया मीठा व्यंजन), सफेद
शक्कर, भूरी शक्कर अथवा खाँड, देसी गुड़ और पिंड खजूर (प्रसंस्कृत अथवा तैयार किया गया) .
13. अन्य आहारीय अवयव: बबूल का गोंद, विभिन्न प्रकार के अचार, नमक, धूँये से उपचारित आहार (स्मोक्ड फूड), सिरका, खमीर (यीस्ट), बिस्कुट, केक, चॉकलेट और जैम.
शीत वीर्य (ठंडी तासीर) के मसाले और आहार :
गर्मी के दिनों में जब वातावरण का तापमान अधिक
होता है तब आहार के निम्नलिखित अवयवों का सेवन लाभकारी होता है .
1. मेवे: कुम्ड़ाह
की बीज, बादाम (पानी में फुलाया हुआ तथा छिलका उतारा
हुया) एवं नारियल और खजूर का फल और भीगी (पानी में फुलाई हुई) किशमिश .
2. मसाला: इलायची, दालचीनी, लौंग, पुदीना और नारियल .
3. तेल : नारियल
का तेल, तिल का तेल और वनस्पति तेल .
4. अनाज एवं मोटा अनाज तथा इनसे तैयार उत्पाद: जौ, जवा, किनोवा, फलियाँ, ब्राऊन
ब्रैड (गेहूँ से बनी डबल रोटी), सफेद ब्रैड (मैदे से
बनी डबल रोटी), सफेद चावल, पीला चावल, गेहूँ, राजगीर
एवं टैपिओका .
5. दालें: मूँग दाल, लाल
मसूर, पिंटो बीन, सोयाबीन, अंकुरित दालें और सफेद सेम (व्हाईट बीन) .
6. फल: स्ट्रॉबैरी, अंगूर (लाल, बैंगनी / काले), तरबूज़, खरबूज़, नाशपाती
(ऐवोकैडो), अंजीर, अनार, रभर्ब (रेवाचीनी), सेब, ऐवोकैडो (एक प्रकार की नाशपाती), नाशपाती
(पियर), केला, बेल, सिंघाड़ा, जामुन, इमली, किशमिश और खजूर का फल (जिसका प्रसंस्करण नहीं किया गया है).
7. सब्ज़ियाँ: आलू,, भिंडी, फ्रैंच बीन, मटर, शतावर, फलियाँ, ब्रौकली (हरी गोभी), पत्ता गोभी, फूल गोभी, केल गोभी, बेल वाली सब्ज़ियाँ (जैसे तुरई, कुम्ड़ाह, स्क्वॉश और ज़ुकनी आदि), पालक, धनिया पत्ती, लैटस (सलाद पत्ता), अजवाईन पत्ता अथवा अजमोद पत्ता (सलाद), खीरा, ककड़ी और करेला (भावप्रकाश के अनुसार अहिमा अर्थात कयदेव निघंटु के अनुसार
न गर्म न ठंडा, ग़र्म तासीर: भोजन कतुहलम के अनुसार) .
8. दूध एवं दुग्ध उत्पाद: गाय का दूध, बिना
मलाई का दूध, मक्खन, बकरी का
दूध, चीज़, अंडे का सफेद भाग, गाय के दूध से बना घी, आईस क्रीम, मार्जरीन और योगर्ट (एक प्रकार का दही) .
9. पेय पदार्थ: नारियल
का पानी .
10. मीठा: मिश्री .
11. अन्य आहारीय अवयव: गोंद कतीरा .
संदर्भ:
1.वागभट्ट ऋषि द्वारा लिखित अष्टांग हृदय, सूत्रस्थान का तीसरा अध्याय, ऋतुचर्या अध्याय ।
2. ऋषि चरक द्वारा लिखित चरक संहिता सूत्र स्थान का छँटवा अध्याय, त्स्याशितीय अध्याय ।
3. Youtube/ayurvedaforeveryone.com
4. Youtube/easyayurveda.com
5. https://www.banyanbotanicals.com/
6. https://www.ayurvedakendra.in/discover-ayurveda/the-theory-of ayurveda/ritucharya/
7. Youtube/ojayurveda
*सादर जय बाबा, जय
जिनेन्द्र सदा*
मान्यवर, लेख के बेहतरी के लिये आपके कमेंट और सुझाव बहुत महत्वपूर्ण हैं, कृपया अपने कीमती समय से कुछ क्षण ज़रूर निकालियेगा, सादर जय बाबा, जय जिनेन्द्र सदा 💐💐
जवाब देंहटाएंशानदार सलाह एव तकनीकी सुझाव
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भैया, जय प्रियतम अवतार मेहेरबाबा जय जिनेन्द्र सदा 💐💐💐💐
जवाब देंहटाएं