दही:
यह अम्ल रस प्रधान, विपाक-अम्ल
रस प्रधान, गुरु गुणात्मक (गरिष्ठ), ग्राही
(मल को बाँधने वाला), रुचिकर, उष्ण
वीर्य, पित्त और कफ दोष को बढ़ाने वाला है ।
ग्रीष्म ऋतु में अम्ल
रस और उष्ण वीर्य के आहार का निषेध है ।
वसंत में कफ वर्धक और
शरद में पित्त वर्धक आहार के सेवन का निषेध है ।
चूँकि ग्रीष्मकाल में
वातावरण गर्म रहता है अतः शरीर को संतुलित रखने के लिये उष्ण वीर्य (गर्म तासीर)
के आहार के सेवन का निषेध है ।
साथ ही ग्रीष्म काल
में खट्टे आहार के सेवन का भी निषेध है अतः दही तथा दही से निर्मित उत्पादों के
सेवन का निषेध है ।
इसी प्रकार दही चूँकि कफ और पित्तवर्धक भी है अतः इसका वसंत और शरद ऋतु में भी सेवन का निषेध है ।
ताज़े और अच्छे से जमे दही का सेवन जो कि खट्टा नहीं हो का वर्षा ऋतु, हेमंत
ऋतु और शिशिर ऋतु में करें।
दही का रात में सेवन, गर्म
दही का सेवन तथा खट्टे और अच्छे से नहीं जमे दही के सेवन का, निषेध है ।
दही का सेवन, मूँग
को छोड़कर, बाकी द्विदल (दालों) के साथ निषिद्ध है।
दही को अकेले नहीं
खाना चाहिये बल्कि मिश्री, शहद, आँवला मूँग अथवा घी
के साथ सेवन करें ।
उपरोक्त नियम दही तथा
दही से निर्मित अन्य उत्पादों जैसे लस्सी और श्रीखंड पर भी लागू होते हैं ।
छाछ:
यह लघु अर्थात पचने
में हल्का,
अग्नि प्रदीपक, वात और कफ को कम करने वाला
किंतु खट्टा छाछ पित्त में वृद्धि करने वाला होता है ।
वात दोष से प्रभावित
व्यक्ति खट्टे छाछ में सेंधा नमक मिला कर सेवन कर सकते हैं ।
पित्त दोष से
प्रभावित व्यक्ति ताज़े छाछ में मिश्री मिला कर सेवन कर सकते हैं ।
कफ दोष से प्रभावित
व्यक्ति छाछ में त्रिकटु (सौंठ, काली मिर्च और पीपली) मिला कर सेवन कर सकते हैं ।
ध्यान दें जिनके शरीर
से खून निकल रहा हो अथवा घाव हो ऐसे व्यक्तियों को दही तथा दही के उत्पादों का
सेवन नहीं करना चाहिये।
दही तथा दही के
उतपादों के सेवन के नियमों का पालन नहीं करने से त्वचा संबंधी रोग, पांडु
रोग (शरीर में रक्त की कमी अथवा एनीमिया), चक्कर आना
जैसी समस्या हो सकती है ।
संदर्भ:
चरक संहिता
सूत्रस्थान अध्याय 27
सुश्रुत संहिता
सूत्रस्थान 45
अष्टांग हृदय
सूत्रस्थान अध्याय 5
अष्टांग हृदय सूत्रस्थान अध्याय 6
सादर
जय
बाबा जय जिनेन्द्र
प्रेषण:
डॉ. चन्द्रजीत सिंह
डॉ. किंजल्क सी.सिंह
कृषि विज्ञान केंद्र, रीवा (म.प्र.)
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