महर्षि चरक द्वारा रचित आयुर्वेद आधारित ग्रंथ
चरक संहिता के अनुसार वसंत ऋतु में चैत्र और वैशाख माह आते हैं। वसंत ऋतु के वैशाख
माह में प्रकृति में कफ प्रकुपित होता है जिस कारण शरीर में हल्का दर्द हो सकता है, आलस्य
होता है तथा नाक बहना, खाँसी और ज़ुखाम भी हो सकता है ।
चूँकि इस माह में जठराग्नि मंद होती है अत: पाचन कमज़ोर होता है । इस माह में पूर्व
की तुलना में शारीरिक बल भी कम होता है । वैशाख माह की आहार - विहार अनुशंसायें निम्नानुसार हैं जिनका पालन कर हम अपने स्वास्थ्य की रक्षा कर
सकते हैं :
आयुर्वेदिक अनुशंसा:
1.शरीर में कफ, वैशाख माह में प्रकुपित होता है । कफ को संतुलित रखने के लिये तिक्त स्वाद (रस) वाले खाद्य पदार्थ (जैसे - मिर्च, अजवाईन, पीपली और सौंठ इत्यादि), कसैले स्वाद (रस) वाले खाद्य पदार्थ (जैसे-आँवला, जामुन, कच्चा अमरूद, कच्चा केला, छिल्के वाली मूँग दाल और छिलके वाली अरहर दाल इत्यादि, जिसके सेवन से जीभ ऐंठे, ऐसे खाद्य पदार्थ) तथा कड़वे रस (स्वाद) वाले खाद्य पदार्थ (जैसे- कड़वीनीम, करेला, मेथी, हल्दी, हरड़, लौकी, परवल और मूली इत्यादि) का सेवन करना चाहिये।
2.इस माह में मीठे, खट्टे और नमकीन स्वाद के आहार का सेवन नहीं करें क्योंकि इस स्वाद के आहार कफ में वृद्धि करते हैं ।
3. इस माह में चूँकि जठराग्नि मंद रहती है अतः लघु आहार, जो पचने में सरल हों, का सेवन करें किंतु गरिष्ठ आहार (जैसे अधिक चिकनाई युक्त गहरे तले हुए तैलीय आहार, दूध तथा दूध से बने खाद्य पदार्थ, माँसाहार) का सेवन नहीं करें जो पचने में दुष्कर हों ।
4. इस माह में उबले, सिंके अथवा भुने आहार का सेवन हितकर होता है ।
5. नया अनाज तासीर में गर्म होता है अत: इस माह में नये अनाज का सेवन नहीं करें (गर्म तथा ठंडी तासीर के आहार के बारे में जानने के लिये कृपया इस लिंक पर क्लिक करें)। यदि नये अनाज का सेवन आवश्यक हो तो पहले अनाज को हल्का भून लें फिर उपयोग करें । इस ऋतु में गेहूँ के अतिरिक्त ज्वार और बाजरे का सेवन भी किया जा सकता है।
6. इस माह में कम तापमान का ठण्डा पानी, शीतल पेय पदार्थ (कोल्ड ड्रिंक्स), बर्फ, आईसक्रीम आदि का सेवन नहीं करें अन्यथा शारीरिक कफ में वृद्धि हो सकती है ।
पेय पदार्थ का सेवन:
1.वातावरण के बढ़ते तापमान की परिस्थिति में शरीर के तापमान को संतुलित बनाये रखने के लिये शरीर, स्वेद (पसीने) का त्याग करता है, जिस कारण शरीर में जल की कमी होने लगती है, अतः शरीर में जल स्तर को संतुलित रखने के लिये समय-समय पर स्वच्छ, सामान्य तापमान के जल का आवश्यकतानुसार सेवन करें । ध्यान रखें कि बहुत गर्म अथवा ठंडे जल का सेवन नहीं करें। आहार के मध्य अथवा तुरंत बाद जल का सेवन नहीं करें । हाँलाकि आवश्यकता पड़ने पर भोजन के मध्य में सीमित मात्रा में जल का सेवन कर सकते हैं।
2.एक गिलास स्वच्छ जल में 2 चुटकी सौंठ के चूर्ण को मिला कर सेवन करें । ऐसा करने से कफ कम होगा।
3. एक लीटर स्वच्छ जल को उबाल कर आधा लीटर कर लें । जल को ठंडा होने दें । जब जल सामान्य तापमान (रूम टैम्परेचर) पर आ जाये तब जल में आधा चम्मच शहद मिलायें और सेवन करें। इस प्रकार उपरोक्त अनुशंसित अनुपात (तथा विधि से) में स्वच्छ जल के साथ 4 चम्मच शहद तक की मात्रा में सेवन किया जा सकता है। ऐसा करने से भी शरीर में कफ़ कम होगा।
4.इस माह में दूध का सेवन नहीं करें क्योंकि दूध शारीर में कफ में वृद्धि करता है । यदि दूध का सेवन करना ही है तो दूध में सौंठ अथवा हल्दी मिला कर सेवन कर सकते हैं जिससे कफ नहीं बनेगा।
5. इस मास में में दही का सेवन नहीं करें बल्कि मसाले वाले छाछ (छाछ में, ज़ीरा, हींग, अजवाईन और कढ़ी पत्ता मिलाकर बनायें) का सेवन करें । ध्यान रखियेगा छाछ की तुलना में दही गरिष्ठ होता है।
6.इस माह में कृपया कम तापमान के शीतल पेय पदार्थ (कोल्ड ड्रिंक्स), बर्फ, आईसक्रीम आदि का सेवन नहीं करें।
वैशाख माह हेतु अनुशंसित पंच कर्म :
1.वसंत काल के वैशाख माह हेतु श्रेष्ठ पंच कर्म, वमन क्रिया है जिससे कफ को नियंत्रित किया जा सकता है। किंतु इस क्रिया को प्रशिक्षित तथा कुशल आयुर्वेदिक चिकित्सक के मार्गदर्शन में ही करें।
2. उद्वर्तन (शरीर पर पिसी हल्दी, जौ का आटे/ चने का आटे में तेल मिलाकर उबटन बना कर स्नान के पूर्व शरीर पर घिस घिस कर लगायें ) कर गुनगुने से सामान्य तापमान के स्वच्छ जल से स्नान करना चाहिये । इस प्रकार शरीर पर उबटन लगाने से शरीर में कफ कम होगा तथा त्वचा में निखार आयेगा और कांति में वृद्धि होगी । स्वच्छ जल में कड़वी नीम की कोमल पत्तियाँ मिला कर स्नान करना भी त्वचा के स्वास्थ्य के लिये लाभकारी होता है।
3.पंच महाभूत में से पृथ्वी तत्व (सेवन किये जाने वाले अनाज पृथ्वी तत्व से ही निर्मित होते हैं) तथा जल तत्व से कफ का निर्माण होता है । ऐसा कहा गया है कि ‘लंघनम परम औषधम’ अर्थात उपवास अथवा व्रत श्रेष्ठ औषधीय है । इस माह में व्रत अथवा निर्जला व्रत तथा व्रत के उपरांत सुदर्शन क्रिया (ऐनिमा) कर कफ का उपचार किया जा सकता है साथ ही शरीर की शुद्धि (डीटॉक्सिफिकेशन अथवा डीटॉक्स) भी की जा सकती है । ध्यान रहे यह सब क्रियायें किसी प्रशिक्षित एवं कुशल अयुर्वेदिक अथवा प्राकृतिक चिकित्सक के मार्गदर्शन में ही करें । स्वयं यह कार्य कतई नहीं करें।
परम्परागत एवं अनुभवजन्य ज्ञान आधारित अनुशंसाये :
1.इस माह में बेल तथा बेल के उत्पाद जैसे बेल का मुरब्बा और बेल के शर्बत का सेवन करें क्योंकि बेल में कटु (कड़वा), तिक्त (तीखा) और कसैला (जिसके सेवन से जीभ ऐंठे) रस के गुण है, इसका वीर्य उष्ण (गर्म तासीर) है, अत: कफ दोष को नियंत्रित करता है।
2.इस माह में तेल, तिलहन और स्निग्ध खाद्य पदार्थ का सेवन नहीं करें क्योंकि इस माह में जठराग्नि मंद होती है और तैलीय तथा स्निग्ध पदार्थों का पाचन दुष्कर होता है । ऐसा करने से अपच की स्थिति उत्पन्न हो सकती है ।
विहारीय अनुशंसा:
1. सुबह जल्दी उठें और जल्दी सोयें।
2. सुबह उठकर व्यायाम करें तदोपरांत स्नान, ध्यान और पूजन करें ।
3. दिन में निद्रा न लें और न ही आलस्य
करें ।
4.इस माह में जब भी दिन में बाहर निकलें तो सिर को ढकने के लिये, टोपी, पगड़ी गमछा अथवा छाते का उपयोग करें।
5. चूँकि धूप प्रखर हो रही है अतः धूप के चश्मे का उपयोग हितकर होगा।
कृपया ध्यान दें:
1. एक अन्य मत के अनुसार वसंत ऋतु में फाल्गुन माह और चैत्र माह आते हैं। किसी भी नई ऋतु का आगमन अचानक नहीं होता है बल्कि धीरे-धीरे होता है । अतः ग्रीष्म ऋतु की आहट वैशाख़ माह से ही सुनाई पड़ने लगती है तथा मौसम के परिवर्तन को हम महसूस कर सकते हैं । ग्रीष्म ऋतु में प्रकृति में पित्त प्रकुपित होता है । अत: यदि आप को अपने शरीर में पित्त की अधिकता के लक्षण दिख रहे हों (शरीर में उल्टी-दस्त होना, पाचन खराब होना, मितली आना, शरीर में फोड़े-फुंसी, मुँहासे होना, मुँह में छाले होना) तो पित्त वर्धक आहार का सेवन नहीं करें बल्कि पित्त का शमन (कम करने वाले) करने वाले आहार का सेवन करें।
2.उपरोक्त पथ्य-अपथ्य सम्बंधी अनुशंसायें स्वस्थ्य व्यक्तियों के लिये ही हैं. अन्य कृपया सम्मनीय चिकित्सक गणों से सम्पर्क करें ।
सादर
जय बाबा जय जिनेन्द्र
आयुर्वेदिक अनुशंसा:
1.शरीर में कफ, वैशाख माह में प्रकुपित होता है । कफ को संतुलित रखने के लिये तिक्त स्वाद (रस) वाले खाद्य पदार्थ (जैसे - मिर्च, अजवाईन, पीपली और सौंठ इत्यादि), कसैले स्वाद (रस) वाले खाद्य पदार्थ (जैसे-आँवला, जामुन, कच्चा अमरूद, कच्चा केला, छिल्के वाली मूँग दाल और छिलके वाली अरहर दाल इत्यादि, जिसके सेवन से जीभ ऐंठे, ऐसे खाद्य पदार्थ) तथा कड़वे रस (स्वाद) वाले खाद्य पदार्थ (जैसे- कड़वीनीम, करेला, मेथी, हल्दी, हरड़, लौकी, परवल और मूली इत्यादि) का सेवन करना चाहिये।
2.इस माह में मीठे, खट्टे और नमकीन स्वाद के आहार का सेवन नहीं करें क्योंकि इस स्वाद के आहार कफ में वृद्धि करते हैं ।
3. इस माह में चूँकि जठराग्नि मंद रहती है अतः लघु आहार, जो पचने में सरल हों, का सेवन करें किंतु गरिष्ठ आहार (जैसे अधिक चिकनाई युक्त गहरे तले हुए तैलीय आहार, दूध तथा दूध से बने खाद्य पदार्थ, माँसाहार) का सेवन नहीं करें जो पचने में दुष्कर हों ।
4. इस माह में उबले, सिंके अथवा भुने आहार का सेवन हितकर होता है ।
5. नया अनाज तासीर में गर्म होता है अत: इस माह में नये अनाज का सेवन नहीं करें (गर्म तथा ठंडी तासीर के आहार के बारे में जानने के लिये कृपया इस लिंक पर क्लिक करें)। यदि नये अनाज का सेवन आवश्यक हो तो पहले अनाज को हल्का भून लें फिर उपयोग करें । इस ऋतु में गेहूँ के अतिरिक्त ज्वार और बाजरे का सेवन भी किया जा सकता है।
6. इस माह में कम तापमान का ठण्डा पानी, शीतल पेय पदार्थ (कोल्ड ड्रिंक्स), बर्फ, आईसक्रीम आदि का सेवन नहीं करें अन्यथा शारीरिक कफ में वृद्धि हो सकती है ।
पेय पदार्थ का सेवन:
1.वातावरण के बढ़ते तापमान की परिस्थिति में शरीर के तापमान को संतुलित बनाये रखने के लिये शरीर, स्वेद (पसीने) का त्याग करता है, जिस कारण शरीर में जल की कमी होने लगती है, अतः शरीर में जल स्तर को संतुलित रखने के लिये समय-समय पर स्वच्छ, सामान्य तापमान के जल का आवश्यकतानुसार सेवन करें । ध्यान रखें कि बहुत गर्म अथवा ठंडे जल का सेवन नहीं करें। आहार के मध्य अथवा तुरंत बाद जल का सेवन नहीं करें । हाँलाकि आवश्यकता पड़ने पर भोजन के मध्य में सीमित मात्रा में जल का सेवन कर सकते हैं।
2.एक गिलास स्वच्छ जल में 2 चुटकी सौंठ के चूर्ण को मिला कर सेवन करें । ऐसा करने से कफ कम होगा।
3. एक लीटर स्वच्छ जल को उबाल कर आधा लीटर कर लें । जल को ठंडा होने दें । जब जल सामान्य तापमान (रूम टैम्परेचर) पर आ जाये तब जल में आधा चम्मच शहद मिलायें और सेवन करें। इस प्रकार उपरोक्त अनुशंसित अनुपात (तथा विधि से) में स्वच्छ जल के साथ 4 चम्मच शहद तक की मात्रा में सेवन किया जा सकता है। ऐसा करने से भी शरीर में कफ़ कम होगा।
4.इस माह में दूध का सेवन नहीं करें क्योंकि दूध शारीर में कफ में वृद्धि करता है । यदि दूध का सेवन करना ही है तो दूध में सौंठ अथवा हल्दी मिला कर सेवन कर सकते हैं जिससे कफ नहीं बनेगा।
5. इस मास में में दही का सेवन नहीं करें बल्कि मसाले वाले छाछ (छाछ में, ज़ीरा, हींग, अजवाईन और कढ़ी पत्ता मिलाकर बनायें) का सेवन करें । ध्यान रखियेगा छाछ की तुलना में दही गरिष्ठ होता है।
6.इस माह में कृपया कम तापमान के शीतल पेय पदार्थ (कोल्ड ड्रिंक्स), बर्फ, आईसक्रीम आदि का सेवन नहीं करें।
वैशाख माह हेतु अनुशंसित पंच कर्म :
1.वसंत काल के वैशाख माह हेतु श्रेष्ठ पंच कर्म, वमन क्रिया है जिससे कफ को नियंत्रित किया जा सकता है। किंतु इस क्रिया को प्रशिक्षित तथा कुशल आयुर्वेदिक चिकित्सक के मार्गदर्शन में ही करें।
2. उद्वर्तन (शरीर पर पिसी हल्दी, जौ का आटे/ चने का आटे में तेल मिलाकर उबटन बना कर स्नान के पूर्व शरीर पर घिस घिस कर लगायें ) कर गुनगुने से सामान्य तापमान के स्वच्छ जल से स्नान करना चाहिये । इस प्रकार शरीर पर उबटन लगाने से शरीर में कफ कम होगा तथा त्वचा में निखार आयेगा और कांति में वृद्धि होगी । स्वच्छ जल में कड़वी नीम की कोमल पत्तियाँ मिला कर स्नान करना भी त्वचा के स्वास्थ्य के लिये लाभकारी होता है।
3.पंच महाभूत में से पृथ्वी तत्व (सेवन किये जाने वाले अनाज पृथ्वी तत्व से ही निर्मित होते हैं) तथा जल तत्व से कफ का निर्माण होता है । ऐसा कहा गया है कि ‘लंघनम परम औषधम’ अर्थात उपवास अथवा व्रत श्रेष्ठ औषधीय है । इस माह में व्रत अथवा निर्जला व्रत तथा व्रत के उपरांत सुदर्शन क्रिया (ऐनिमा) कर कफ का उपचार किया जा सकता है साथ ही शरीर की शुद्धि (डीटॉक्सिफिकेशन अथवा डीटॉक्स) भी की जा सकती है । ध्यान रहे यह सब क्रियायें किसी प्रशिक्षित एवं कुशल अयुर्वेदिक अथवा प्राकृतिक चिकित्सक के मार्गदर्शन में ही करें । स्वयं यह कार्य कतई नहीं करें।
परम्परागत एवं अनुभवजन्य ज्ञान आधारित अनुशंसाये :
1.इस माह में बेल तथा बेल के उत्पाद जैसे बेल का मुरब्बा और बेल के शर्बत का सेवन करें क्योंकि बेल में कटु (कड़वा), तिक्त (तीखा) और कसैला (जिसके सेवन से जीभ ऐंठे) रस के गुण है, इसका वीर्य उष्ण (गर्म तासीर) है, अत: कफ दोष को नियंत्रित करता है।
2.इस माह में तेल, तिलहन और स्निग्ध खाद्य पदार्थ का सेवन नहीं करें क्योंकि इस माह में जठराग्नि मंद होती है और तैलीय तथा स्निग्ध पदार्थों का पाचन दुष्कर होता है । ऐसा करने से अपच की स्थिति उत्पन्न हो सकती है ।
विहारीय अनुशंसा:
1. सुबह जल्दी उठें और जल्दी सोयें।
2. सुबह उठकर व्यायाम करें तदोपरांत स्नान, ध्यान और पूजन करें ।
3. दिन में निद्रा न लें और न ही आलस्य
करें ।
4.इस माह में जब भी दिन में बाहर निकलें तो सिर को ढकने के लिये, टोपी, पगड़ी गमछा अथवा छाते का उपयोग करें।
5. चूँकि धूप प्रखर हो रही है अतः धूप के चश्मे का उपयोग हितकर होगा।
कृपया ध्यान दें:
1. एक अन्य मत के अनुसार वसंत ऋतु में फाल्गुन माह और चैत्र माह आते हैं। किसी भी नई ऋतु का आगमन अचानक नहीं होता है बल्कि धीरे-धीरे होता है । अतः ग्रीष्म ऋतु की आहट वैशाख़ माह से ही सुनाई पड़ने लगती है तथा मौसम के परिवर्तन को हम महसूस कर सकते हैं । ग्रीष्म ऋतु में प्रकृति में पित्त प्रकुपित होता है । अत: यदि आप को अपने शरीर में पित्त की अधिकता के लक्षण दिख रहे हों (शरीर में उल्टी-दस्त होना, पाचन खराब होना, मितली आना, शरीर में फोड़े-फुंसी, मुँहासे होना, मुँह में छाले होना) तो पित्त वर्धक आहार का सेवन नहीं करें बल्कि पित्त का शमन (कम करने वाले) करने वाले आहार का सेवन करें।
2.उपरोक्त पथ्य-अपथ्य सम्बंधी अनुशंसायें स्वस्थ्य व्यक्तियों के लिये ही हैं. अन्य कृपया सम्मनीय चिकित्सक गणों से सम्पर्क करें ।
सादर
जय बाबा जय जिनेन्द्र
Thank You
for writing. Please keep in touch. Avtar Meher Baba Ki Jai Dr. Chandrajiit Singh
आदरणीय पाठकगण, कृपया लेख के बारे में अपने विचार और सुझाव इस कमेंट बॉक्स में लिखकर ज़रूर प्रोत्साहित करें, सादर जय बाबा जय जिनेन्द्र 💐💐
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