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Sunday, September 3, 2023

शरीर में रक्त की कमी (ऐनिमिया) नियंत्रण हेतु दैनिक आहार में लौह तत्व (आयरन) की आपूर्ति

लौह तत्व (आयरन) दैनिक आहार का एक महत्वपूर्ण खनिज तत्व है जो रक्त को लालिमा प्रदान (लाल रक्त कणिकाओं के कारण) करता है तथा शरीर के विभिन्न अंगों तक प्राण वायु (ऑक्सीजन) पहुँचाता है जिससे शारीरिक अंग सुचारू रूप से कार्य कर पाने में सक्षम हो पाते हैं. सामन्यत: एक स्वस्थ्य व्यस्क पुरुष के प्रति १०० मिली लीटर (१ डैसीलीटर) रक्त मे १३.५ से १७.५ ग्राम लौह तत्व तथा स्वस्थ्य व्यस्क महिला में प्रति १०० मिली लीटर (१ डैसी लीटर) मे १२.५ से१५.५ ग्राम लौह तत्व विद्यमान होना चाहिये. यदि लौह तत्व की यह मात्रा रक्त में सामान्य स्तर से कम होती है तो इस स्थिति को ऐनीमीया के नाम से जाना जाता है जिसे सामान्य भाषा में खून की कमी के नाम से अथवा रक्ताल्पता के नाम से भी हम जानते हैं.

नैशनल फैमिली ऐंड हैल्थ सर्वे-5 के अनुसार भारत में 72.7 % 5 वर्ष से छोटे बच्चे (6 माह से 59 माह),  लगभग 58.1 % किशोरियाँ (15-19 वर्ष की समस्त किशोरियाँ), 54.7 % महिलायें (15-49 वर्ष की किशोरियाम एवं समस्त महिलायें) एवं 52.9 % गर्भवती महिलायें (15-49 वर्ष की गर्भवती मातायें) रक्ताल्पता से पीड़ित हैं. हिन्दुस्तान टाईम्स की एक रपट के अनुसार मध्यप्रदेश में 80 प्रतिशत जनसंख्या रक्ताल्पता से पीड़ित हैं.

ऐनिमिया (रक्ताल्पता) 

रक्ताल्पता तीन प्रकार की होती है. यह इस प्रकार हैं:

1.      सामान्य रक्ताल्पताशरीर के रक्त में लाल रक्तकणिकाओं की कमी के कारण होने वाली रक्ताल्पता

2.      सिकिल सैल ऐनिमिया (अर्धचन्द्राकार रक्ताल्पता): कोशिका का हँसिया अथवा अर्धचन्द्राकार होने के कारण होने वाली रक्ताल्पता.

3.      मैगलोब्लास्टिक रक्ताल्पता: शरीर में विटामिन-बी की कमी के कारण होने वाली रक्ताल्पता. 

ऐनिमिया (रक्ताल्पता)के कारण:   

लौह तत्व की कमी के कारण इस प्रकार हैं:

1.      आहार में लौह तत्व के स्त्रोतों को आवश्यकता से कम शामिल करना अथवा शामिल नहीं करना.

2.      आहार में विटामिन-सी के स्त्रोतों को आवश्यकता से कम शामिल करना अथवा शामिल नहीं करना.

3.      प्रसव के समय अथवा मासिक धर्म के समय अधिक खून का स्त्राव होना.

4.      शरीर में लौह तत्व का अवशोषण न होना.

5.      शरीर में आंतरिक रक्त का स्त्राव होना.

6.      दर्द के साथ आंतरिक रक्त स्त्राव होना जो कि महिला को पता न लग पाये.

7.      मलेरिया के कारण लाल रक्त कणिकायें शरीर में कम हो जाना

8.      पेट में उपस्थित कृमि के कारण (यह नंगे पाँव चलने के कारण, पाँव के तलवे से शरीर में प्रवेश कर जाते हैं).

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रक्त में हीमोग्लोबिन की सीमा रेखा निम्नानुसार है:

क्र.

हितग्राही समूह की उम्र

ग्राम प्रति 100 मिली लीटर (1 डैसी लीटर) रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा

सामान्य

 (रक्ताल्पता नहीं)

अल्प रक्ताल्पता

मध्यम रक्ताल्पता

गम्भीर रक्ताल्पता

1.       

11 वर्ष के बराबर अथवा अधिक

10-10.9

7.79

7-7.9

7 से कम

2.       

12 के बराबर अथवा अधिक

11-11.9

8.-10.9

8-10.9

8 से कम

ऐनिमिया (रक्ताल्पता) की पहचान (सामान्य लक्षण):

ऐनिमिया (रक्ताल्पता) की पहचान (सामान्य लक्षण) इस प्रकार हैं :

1.      शरीर में थकावट आना, ऊर्जा की कमी महसूस करना.

2.      चक्कर आना.

3.      वैचारिक अस्पष्टता होना, बातें देर से समझ आना. 4.स्वभाव में चिड़चिड़ापन आना.

4.      आत्म्विश्वास में कमी होना, मन डूबना, रोने का मन करना. 6. त्वचा पर, आँख के पलकों के भीतर, जीभ के बाहरी किनारों पर लाली की कमी होनी, रंग फीका होना तथा पीलापन आनाजीभ के किनारों का फूलना.

5.      नाखूनों में लाली की कमी तथा पीलापन अथवा सफेदी आना.

6.      नाखूनों का टूटना.

7.      एकग्रता न बन पाना अथवा बार बार एकाग्रता भंग होना.

8.     विद्यार्थीयों का पढ़ाई में अरुचि पैदा होना.   

ऐनिमिया (रक्ताल्पता) की पहचान (गम्भीर लक्षण):

1.      भूख कम लगना. 

2.      पैरों में सूजन होना (इडिमा होना).

3.      कम श्रम में ही साँस फूलना तथा सिरदर्द होना.

4.      हृदय की धड़कन का सामान्य रूप से बढ़ना और घटना.

5.     हाथ पैर में असंवेदंशीलता आना अथवा झुनझुनी आना.

ऐनिमिया (रक्ताल्पता) के नियंत्रण का उपाय:

रक्त की जाँच करवायें (सी.बी.सी. जाँच) और रक्ताल्पता की स्थिति की स्पष्ट जानकारी प्राप्त करें. संतुलित आहार का सेवन करें जिसमें लौह तत्व और विटामिन-सी के आहारीय स्त्रोतों को प्रमुखतः से शामिल करें.  

लौह तत्व के स्त्रोतों जैसे, बाजरा, जई का दलिया, अंकुरित दलहन, मसूर, सेम, सोयाबीन तथा सोयाबीन से बने खाद्य उत्पाद जैसे, लड्डू, बर्फी, नमकीन, चकली, मठरी, शक्कर पारा, टोफू (सोयाबीन का पनीर), टैम्पेह, गुड़. हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ (जैसे पालक, मेथी और बथुआ), लाल भाजी, चुकन्दर,तरबूज़ के बीज, लोहे की कड़ाही में बनी सब्ज़ी, अनार,खजूर, काजू, किशमिश तथा अन्य मेवे इत्यादि माँसाहार में अंडा, मछ्ली और माँस, आँगनबाड़ी से मिलने वाली आयरन-फोलिक अम्ल की लाल गोली का सेवन करें.   

विटामिन-सी के स्त्रोतों को आहार में शामिल करें जैसे करौंदा, बेर, संतरा, मौसंबी, नींबू, आँवला,अमरूद, लीची, पपीता ब्रोकली (हरी गोभी), फूल गोभी, अंकुरित गोभी (एक प्रकार की गोभी), हरी एवं लाल मिर्च, हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ जैसे पालक, शलजम के पत्ते, आलू एवं शकरकंद इत्यादि, आँगनबाड़ी से मिलने वाली आयरन-फोलिक अम्ल की लाल गोली में विटामिन-सी भी विद्यमान है.   

लौह तत्व के साथ संयोजित होने वाले प्रोटीन के स्त्रोत को आहार में सम्मिलित कर दैनिक रूप से सेवन करें जैसे अनाज जैसे गेहूँ, चावल, ज्वार, मक्का, जौ, जई इत्यादि, दलहन जैसे मूँग,अरहर, चना, उड़द, मसूर इत्यादि तथा सोयाबीन, दुग्धाहार जैसे दूध, पनीर एवं छेना, माँसाहार जैसे अंडा, लाल माँस इत्यादि प्रोटीन सप्लीमैंट भी बाज़ार में उपलब्ध हैं जिनके सेवन द्वारा शरीर को प्रोटीन उपलब्ध होता है.   

कृपया ध्यान दें:

1.      चूँकि चाय में टैनिन नाम का रसायन विद्यमान होता है जो कि भोजन में उपस्थित लौह तत्व को बाँध देता है तथा मनुष्य, आहार से लौह तत्व को अवशोषित नहीं कर पाता है इसलिये भोजन ग्रहण करने के एक घंटे पूर्व तथा 1 घंटे बाद ही चाय का सेवन करें.

2.      यदि कैल्शियम और लौह तत्व के सप्लीमैंट (पूरक गोलियाँ) का सेवन करना हो तो दोनों के बीच  में कम से कम 2 घंटे का अंतराल होना चाहिये.

 

Thank You for writing. Please keep in touch. Avatar Meher Baba Ki Jai - Dr. Kinjulck C. Singh Dr. Chandrajiit Singh

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