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शनिवार, 6 जुलाई 2024

दाल के सेवन की पारंपरिक विधि एवं कारण

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आदरणीय सुधिजन
*प्रियतम अवतार मेहेरबाबा जय जिनेन्द्र सदा*
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लंबे समय में, पीढ़ी दर पीढ़ी अनुभव साझा होते-होते आहार सम्बन्धी परम्परायें विकसित होती हैं जो समय की कसौटी पर कसी हुई होती हैं इसलिए भरोसेमंद  होती हैं।  

दाल, आहार का एक महत्वपूर्ण अवयव है जो कि अन्य पौष्टिक तत्वों के अतिरिक्त प्रोटीन का उत्तम और प्रमुख स्त्रोत है जो शरीर के निर्माण और विकास में सहयोग प्रदान करता है। यह शरीर में होने वाली टूट-फूट को ठीक करता है और शरीर को रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करता है।

समय के साथ, आहार में दाल के सेवन की पारंपरिक पद्धति का भी विकास हुआ है। किन्तु क्या इन परम्पराओं का कोई वैज्ञानिक आधार भी है ? प्रस्तुत लेख इसी विषय को प्रस्तुत करने का विनम्र प्रयास है।

पारंपरिक रूप से ग्रामीण तथा कुछ हद तक शहरी भारत के लोग दाल बनाने के दौरान निम्नलिखित प्रक्रिया का पालन करते हैं : 

 1. दाल को सेंकना / भूनना फिर सिंकी / भुनी हुई दाल को पका कर कर सेवन करना।
 2. दाल को उबालते समय ऊपर आने वाले झाग / फेन को हटा देना।
 3. दिन में एक बार ही, दोपहर में दाल खाना।

*इन प्रक्रियाओं के वैज्ञानिक कारण:* 
 1. मनुष्य के पाचन तंत्र में ट्रिप्सिन नामक जैव उत्प्रेरक (एंज़ाईम, Enzyme) आहार के पाचन में सहायता करता है किन्तु दाल में ट्रिप्सिन अवरोधी कारक (ट्रिप्सिन इन्हिबिटर, Trypsin Inhibitor) विद्यमान होता है जो कि पाचन में सहायक ट्रिप्सिन जैव उत्प्रेरक को कार्य करने से रोकता है जिसका तात्पर्य है कि ट्रिप्सिन अवरोधी कारक के कारण दाल को पचाना कठिन होता है।
जब दाल सेंकी / भूनी जाती है (तापमान लगभग 80 डिग्री सेल्सियस पर), तब ट्रिप्सिन अवरोधी कारक निष्क्रिय हो जाता है, जिस वजह से दाल सुपाच्य हो जाती है।

 2. दाल उबालने के समय ऊपर आने वाले झाग / फेन में सैपोनिन (साबुन जैसा चिकना तथा लसलसा पदार्थ) होता है, जिसके साथ रैफिनोज़ शर्करा (शक्कर, Sugar) भी उपस्थित होती है जिसका पूरा पाचन आँतों में नहीं जो पाता है जिस कारण आँतों में उपस्थित जीवाणु (बैक्टीरिया, Bacteria) शर्करा का किण्वन (फर्मेंटेशन, Fermentation) करते हैं जिसके फलस्वरूप पेट में गैस (आयुर्वेद के अनुसार वात अथवा वायु) बनती है और पेट फूलता है। यदि दाल को उबालते समय झाग / फेन को हटा दिया जाये तो साथ में रैफिनोज़ शर्करा भी हट जायेगी जिससे पेट में गैस बनने की और पेट फूलने की समस्या नहीं होगी। सैपोनिन के हटने के कारण दाल लसलसी नहीं बल्कि खिली-खिली बनती है तथा दाल के टुकड़ों की सतह की बनावट और भीतर की संरचना (परिवर्तित) हो जाती है। साथ ही साथ दाल में, नमक और मसालों का अवशोषण अच्छे प्रकार से हो पाता है, जिससे दाल स्वादिष्ट बनती है।

 3. पाचन तंत्र में ताँबा (कॉपर Copper) नामक रासायनिक तत्व उपस्थित होता है जो कि आहार के पाचन में सहायक होता है, किन्तु इस तत्व को सक्रिय करने वाला जैव उत्प्रेरक, स्वयं दिन में ही सक्रिय होता हैं सूर्य ढलने के बाद नहीं। अतः ताँबे का उपयोग पाचन तन्त्र दिन में ही कर पाता है रात में नहीं जिसके फलस्वरूप दिन में आहार का पाचन सुचारू रूप से हो पाता है किंतु रात में नहीं। दालें, प्रोटीन का उत्तम स्त्रोत होने के कारण दुष्पाच्य होती हैं।  अन्य पोषक तत्वों की तुलना में प्रोटीन का पाचन में सबसे कठिन होता है। रात में जब आहार का पाचन कम होता है ऐसे समय प्रोटीन का पाचन और भी अधिक दुष्कर हो जाता है। इसलिये रात को दाल का सेवन नहीं किया जाता है।

ताँबा रात में कम सक्रिय होता है यह प्रमाण इस बात से मिलता है कि रात में ताँबे पर निर्भर, मनुष्य के शरीर में उपस्थित, सुपर ऑक्साईड डाय म्युटेज़ (एस.ओ.डी., SOD) जैव उत्प्रेरक भी रात को कम सक्रिय हो जाता है इसी तरह शरीर में उपस्थित हॉर्मोन कॉर्टिसॉल और इन्स्युलिन भी दिन की तुलना में रात को कम सक्रिय हो जाते हैं जो कि शरीर में ताँबे के उपापचय, अवशोषण और शरीर के विभिन्न हिस्सों के वितरण हेतु आवश्यक हैं, अतः रात को ताँबे की शरीर में, सक्रियता भी धीमी पड़ जाती है।

आयुर्वेद के अनुसार सूर्य ढलने के बाद जठराग्नि जो कि आहार के पाचन के लिये आवश्यक है, वह भी मन्द पड़ जाती है। इस कारण रात को आहार का पाचन ठीक प्रकार से नहीं हो पाता है।

*इसका अर्थ :*
दाल को भून / सेंकने के बाद पका कर सेवन करना, दाल को उबालते समय ऊपर आने वाले झाग / झाग को हटा देना और दिन में ही दाल खाने की पारंपरिक पद्धति, विज्ञान भी स्वीकारता है।

*कृपया ध्यान दें:* 
आधुनिक पोषण विज्ञान के अनुसार एक वयस्क व्यक्ति (महिला अथवा पुरुष) को प्रति किलोग्राम शारीरिक वजन पर 0.8 ग्राम से 1 ग्राम प्रोटीन की आवश्यकता प्रति दिन होती है, वहीं बढ़ते बच्चों को लगभग 2 ग्राम प्रोटीन प्रति किलोग्राम शारीरिक वजन, प्रतिदिन की आवश्यकता होती है।

*संदर्भ :*  
1.आई.सी.एम.आर. गाईडलाईन्स 2024।
 2. न्युट्रिटिव वैल्यू ऑफ इंडियन फूड्स, आई.सी.एम.आर. एवं एन.आई.एन.
 3. फूड एंड न्यूट्रिशन, स्वामीनाथन।

*आग्रह:*
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*सादर*
*मेहेर न्यूट्रिशन*
न्यूट्रिशन की जानकारी के लिये 
WA: 83193 93727
*जय प्रियतम अवतार मेहेरबाबा जय जिनेन्द्र सदा*
🙏🏻🌈🌈😇😇🙏🏻

Thank You for writing. Please keep in touch. Avtar Meher Baba Ki Jai Dr. Chandrajiit Singh

3 टिप्‍पणियां:

  1. *आग्रह:*
    कृपया लेख के बारे में अपने विचार और सुझाव नीचे दिये गये कमेंट बॉक्स में अंकित कर प्रोत्साहित करें।

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  2. आउ भी गांव में अरहर दाल को पहले हल्का गर्म किया जाता है फिर पानी में भिगो कर सुखा कर दरा जाता है तब उसके दाल का सोंधा पन का क्या कहना।

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