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शनिवार, 17 अगस्त 2024

वात (गैस) की समस्या को दूर करने हेतु आहार -विहार

त्रिदोष अर्थात वात, पित्त और कफ, शरीर की प्रमुख ऊर्जायें हैं, जिनके, शरीर को संचालित करने के लिये विभिन्न कार्य हैं। इनमें से वात, शरीर के अंगों की विभिन्न गतिविधियों को संचालित करता है तथा गति प्रदान करता है।किन्तु, शरीर में वात की वृद्धि अथवा असंतुलित होने से वायु सम्बंधी समस्या हो सकती है जिसे आयुर्वेद में वात अथवा बादी की समस्या कही जाती है। 

वात की समस्या की पहचान बार-बार डकार आना, पेट फूलना, बदबूदार गैस निकालना इत्यादि है। अन्य पहचान हैं, आंतरिक रूप से शरीर में दर्द होना, खासकर जोड़ों में होने वाला दर्द, मल त्याग में समस्या होना (कब्ज़ अथवा कॉन्स्टिपेशन), हड्डियों से कट-कट की आवाज़ होना, घबराहट होना, चक्कर आना, बी.पी. की शिकायत होना, मन भागना, एकाग्रचित्त न हो पाना और सोते समय बहुत सपने आना, हल्की नींद आना अथवा नींद न आना इत्यादि। 

वात को नियंत्रित करने के लिये, समय पर सोना, समय पर जागना, समय पर खाना खाना, घर की रसोई में बना ताज़ा खाना खाना, वात को कम करने वाला खाना खाना और वात को बढ़ाने वाले खाने को नहीं खाना, खाने को अच्छी प्रकार चबा-चबा कर खाना, भूखे पेट नहीं रहना अच्छे उपाय हैं।

वायु का शमन करने की औषधीय :
प्रकार वायु को संतुलित अथवा शमन करने के लिये तेल, विशेषकर तिल का तेल बहुत ही अच्छी औषधीय है। तेल का उपयोग शरीर की मालिश के लिये तथा आहार पकाने के लिये किया जा सकता है।

वायु, आहार, षडरस (छह प्रकार के आहारीय रस) तथा  अन्य बिंदु :
आहार में छह प्रकार के रस होते हैं।  इनका छह रसों का सदुपयोग कर के वायु का नियंत्रण किया जा सकता है।इन छह रसों का प्रभाव निम्नानुसार है 
1. कड़वे, तीखे एवं कसैले आहार के सेवन
से वायु की वृद्धि होती है अतः ऐसे आहार का सेवन नहीं करें।  
2. मीठे, खट्टे और नमकीन आहार के सेवन से वायु का शमन (कम करना है) अथवा सन्तुलित होता है। अतः यदि वायु की वृद्धि हो, ऐसे आहार का सेवन नहीं करें।
3. ठंडी तासीर का तथा रुक्ष (रूखा) आहार भी शरीर में वायु की वृद्धि करता है अतः गर्म तासीर का तथा स्निग्ध (चिकनाईयुक्त) आहार का सेवन करें जो वात को संतुलित करता है
4.शरीर में तेल की मालिश करने से भी वात संतुलित होता है। पैरों के तलवे की तिल के तेल से मालिश करने से भी शरीर की वायु सन्तुलित होती है तथा अच्छी नींद आती है।
5. हरिश्रृंगार (अन्य नाम : परिजात अथवा सिहरुआ) के पत्तों के काढ़े के सेवन से भी वायु को सन्तुलित करने में लाभ मिलता है। इस विधि को जानने के लिये निम्नलिखित लिंक को कृपया क्लिक करें :

वायु एवं आहार :
वात को  बढ़ाने और कम करने आहार इस प्रकार है :

वात को बढ़ाने वाले फल :
सेब, आग में पकाया हुआ सेब, केला, ब्लैकबेरी, सूखे फल, गूज़बैरी, लीची, अनार, सातसुमा, रभर्ब, सातसुमा, रैस्पबैरी, कच्चा केला, आँवला और कच्चा टमाटर।

वात को कम करने वाले फल :
एवोकैडो, चैरी, अँगूर, कीवी, मैलन (तरबूज़ अथवा खरबूज़), संतरा, पॉपॉ,  पीच (आड़ू), अनानास, प्लम (आलूबुखारा), आग में पकाया हुआ टमाटर इत्यादि।

फल जो वात को न बढ़ाये न कम करे :  
एप्रीकॉट (खुबानी), ग्रेपफ्रूट (चकोतरा), नींबू, लाईम, आम, पियर (नाशपाती), स्ट्रॉबैरी

वात को कम करने वाली सब्जियाँ :
आर्टिचोक (हाथीचक), एस्पैरेगस (शतावरी), चुकन्दर, गाज़र, ककड़ी, खीरा, अदरक, लीक (हरा प्याज़), भिंडी, पार्नसिप, स्वीड् (स्वीडन से आया एक प्रकार का शलजम), वॉटरक्रैस (जलकुंभी) इत्यादि।

वात को बढ़ाने वाली सब्ज़ियाँ :
बैंगन, बीन्स (फलियाँ), ब्रॉकली (हरी गोभी), पत्ता गोभी, फूलगोभी, मशरूम, प्याज़, पार्सले (अजमोद), मटर, मिर्च, आलू, पालक, स्वीट कॉर्न, मूली, शलजम और करेला।

सब्ज़ियाँ जो न वात को बढ़ाती हैं न कम करती हैं :
कूरगैट (ज़ुकनी अथवा लंबा पीला कद्दू)।

वायु तथा दाल के उपयोग की विधि :
लगभग सभी प्रकार की दालें स्वाद में कसैली तथा रुक्ष होती हैं एवं शरीर में वायु की वृद्धि करने वाली होती हैं।
दालों को हल्का भून कर और खुले बर्तन में पका कर तथा फेन को हटाने के बाद, घी अथवा तेल और हींग से छौंका लगा कर अथवा बघार कर सेवन करना चाहिये।
दाल के उपयोग की विधि जानने के लिये कृपया निम्नलिखित लिंक को क्लिक करें :

वायु तथा मोटा अनाज, अनाज, एवं तिलहन (मुँहफली) के उपयोग की विधि :
1. मोटा अनाज जैसे कोदो, कुटकी, साँवा और रागी इत्यादि स्वभाव में रुक्ष होने के कारण वात को बढ़ाने वाले होते हैं अतः इनका सेवन घी अथवा तेल के साथ ही करना चाहिये।
2. अनाज जैसे चावल में स्टार्च (माड़) होता है जिस कारण यह मल को सूखा कर देता है। अतः चावल को कमसेकम एक वर्ष पुराना ही सेवन करें  जिससे स्टार्च, सरल शर्करा (Sugar Molecule) में परिवर्तित हो जाता है जिससे चावल सुपाच्य हो जाता है। 
3. यदि चावल नया ही बनाना हो तो चावल को हल्का भून लें ऐसा करने से भी चावल अधिक सुपाच्य हो जाता है। इसी तरह अन्य अनाज को भी कम से कम एक वर्ष पुराना ही खाना चाहिये। गेहूँ स्निग्ध और स्वाद में मीठा होता है अतः  यह वात को संतुलित करता है।
4. चावल को खुले बर्तन में अधिक पानी के साथ बनायें और अतिरिक्त पानी को हटा दें जिससे स्टार्च हट जायेगा। इसी प्रकार पोहा, साबूदाना और आलू को भी अतिरिक्त पानी हटा कर बनायें को जिससे स्टार्च हट जायेगा। 
5. चावल पकाते समय थोड़ी मात्रा में देसी गाय के दूध से बना घी डालें, इससे चावल में चिपचिपापन खत्म हो जायेगा और चावल खिला-खिला बनेगा क्योंकि चावल में स्टार्च का प्रभाव कम हो जायेगा। स्टार्च (माड़) के प्रभाव  कम हुये चावल के सेवन से शरीर में वायु प्रकुपन कम होगा।
6. मुँहफली भी वात में वृद्धि करती है अतः इसका सेवन उबालकर, भूनकर तल कर करना चाहिये जिसकी मात्रा अधिक नहीं हो।

कृपया ध्यान दें : 
स्टार्चयुक्त आहार के सेवन से वायु की समस्या में वृद्धि हो सकती है। इस समस्या का हल आहार से स्टार्च को हटा देने में है।

वायु एवं चाय सेवन :
चाय के सेवन से जठराग्नि मंद  हो जाती है जिससे आहार का पाचन पूरी तरह से नहीं हो पाता है अतः धीरे-धीरे चाय के सेवन को रोक देना अच्छा होता है।

आयुर्वेद के अनुसार आहार लेने का समय :
यदि आहार सही समय लिया जाये तो पाचन कार्य सुचारु रूप से होगा जिससे वायु कम बनेगी। आहार लेने का उचित समय इस प्रकार है :
1. सुबह का भोजन दिन भर का मुख्य तथा भारी होना चाहिये लगभग 10 बजे के आस-पास ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि सुबह 10.00 बजे से दोपहर 2.00 बजे तक शरीर में पित्त दोष सक्रिय (Bile Acid) होता है जो कि पाचन के लिये आवश्यक है। सुबह 10.00 बजे भोजन करने से दोपहर 2.00 तक आहार का पाचन पूर्ण रूप से हो जाता है।
2. शाम का भोजन हल्का होना चाहिये, जिसे  शाम को 4.00 बजे तक कर लेना चाहिये ताकि सूर्यास्त होने के पूर्व आहार का पाचन हो जाये क्योंकि सूर्यास्त होने के उपरांत जठराग्नि (Metabolic fire or Digestive fire) मंद हो जाती है जिससे आहार पूरी तरह से पच नहीं पाता है, फिर शरीर में वायु प्रकुपित हो सकती है।

वायु एवं आधुनिक पोषण विज्ञान :
पाचन क्रिया को दुरुस्त रखने के लिये आँतों में स्थित मित्र सूक्ष्मजीव सहायक होते हैं। मित्र सूक्ष्मजीव को सुचारू रूप से कार्य करने के लिये विटामिन-बी सहायता करती है। वायु की समस्या पाचन के दुरुस्त नहीं होने के कारण भी हो सकती है। अतः, पाचन को दुरुस्त कर वायु की समस्या (गैस्ट्रिक समस्या) का समाधान करने के लिये विटामिन-बी के खाद्य स्त्रोत अथवा विटामिन -बी की पूरक गोलियों (जैविक अथवा रासायनिक गोलियाँ) का सेवन भी लाभकारी सिद्ध हो सकता है । पूरक गोलीयों को सप्लीमैंट भी कहा जाता है। 

विटामिन-बी की कमी से पाचन दुरुस्त नही होने की पहचान :
यदि मुँह में छाले हो जाते हैं तो यह समझें कि पाचन दुरुस्त नहीं है और पाचन को दुरुस्त करने के लिये निम्नलिखित कार्य करें :
1. हल्का, सुपाच्य आहार (आसानी से पच सकने वाले आहार जैसे छिल्के वाली मूँग की दाल और चावल की खिचड़ी का सेवन करें।
2. विटामिन-बी की पूरक गोलियों (सप्लीमैंट) का सेवन किया जा सकता है।

आहार लेने के बाद वायु से मुक्ति के उपाय :
आहार लेने के बाद निम्नलिखित कार्य करें जिससे वायु से मुक्त होने में सहायता मिलेगी:
1. सौ कदम आराम से टहलें।
2. कुछ देर पवन मुक्तासन (पैर पीछे कर के घुटने के बल इस प्रकार बैठना कि पीठ एकदम सीधी रहे)।
3. बायें करवट ले कर कुछ देर लेटना। बायें ओर ही हमारा जठर होता है जहाँ आहार के पाचन का कार्य सम्पन्न होता है।

वायु को नियंत्रित करने के अन्य घरेलू उपाय :
वायु को घरेलू रूप से सन्तुलित करने के उपाय निम्नानुसार हैं:
1. दाल को बघारने अथवा छौंका लगाने के लिये के लिये हींग का उपयोग किया जा सकता है।
2. कुम्ड़ाह बनाते समय मेथी के दाने का उपयोग वायु को संतुलित करने के लिये लाभकारी होता है क्योंकि मेथी का दाना कैल्शियम का बहुत अच्छा स्त्रोत होता है जो पाचन में सहयोग प्रदान करता है।
3. यदि गैस बने और पेट फूले तो हींग, अजवाईन और काले नमक को बराबर मात्रा में मिश्रित करें। इस मिश्रण का थोड़ी सी मात्रा में सेवन करें तथा ऊपर से गुनगुने पानी का सेवन कर लें।
4. पेट को पूरी तरह से साफ रखने के लिये मैदे से बने आहार का सेवन नहीं करना बल्कि चीत्तीदार केले और पूरी तरह से पके पपीते का सेवन करना, रात को सोने से पहले आधे गिलास गुनगुने पानी में  एक चम्मच ईसबगोल की भूसी मिश्रित कर के सेवन करना लाभकारी होता है जिससे कब्ज़ होने की संभावना कम होती है  जिससे वायु का प्रकुपन भी कम होगा। छिल्के सहित खाये जाने वाले फल एवं सब्ज़ियों का सेवन करना तथा आटे को चोकर सहित सेवन करना भी  पेट साफ रखने में सहायक होता है।
5. शिशुओं का पेट फूले तो नाभी में हींग का पानी लगाने से लाभ मिलता है तथा शरीर में फंसी वायु डकार द्वारा शरीर से बाहर आ जाती है।

व्यायाम जिनसे वायु नहीं बढ़े :
वायु का प्रभाव 40 से 45 वर्ष से अधिक आयु वाले व्यक्तियों में अधिक होता है। ऐसे व्यक्तियों को अधिक तथा थकाने वाले कठिन व्यायाम जैसे व्यायाम शाला (जिम) में जा कर भारी वजन उठाना, कुश्ती लड़ना, कबड्डी खेलना, तेज़-तेज़ दौड़ना अथवा चलना, तैरना अथवा नाचना जिनसे अधिक शारीरिक परिश्रम वाले कार्य नहीं चाहिये जिससे अधिक स्वेद (पसीना) निकले, साँस की लय टूटे अथवा चेहरे पर विकृति आये। इस प्रकार की गतिविधियों से शरीर में वायु प्रकुपित हो सकती है।
इसके विपरीत हल्के-फुल्के व्यायाम, धीरे चलना अथवा टहलना, कसरत, योगासन, प्राणायाम करना, शाँत संगीत सुनना जिससे साँस न उखड़े बल्कि चेहरे पर प्रसन्नता और शाँति का भाव आये साँस आराम से तथा लयबद्ध चले, से शरीर में वायु सन्तुलित होती है।
पाचन दुरुस्त रखने के उपाय जानने के लिये कृपया निम्नलिखित लिंक को क्लिक करें :

आपका ही
मेहेर न्यूट्रिशन

कृपया ध्यान दें :
उपरोक्त लेख सिर्फ सूचनार्थ है और आहार सम्बन्धी है। कृपया चिकित्सा अथवा दवाई की आवश्यकता पर चिकित्सक से सम्पर्क करें।

निवेदन :
कृपया लेख सम्बन्धी अपने विचार और सुझाव कमेंट बॉक्स में अंकित कर प्रोत्साहित करें।

प्रियतम अवतार मेहर बाबा की जय जय जिनेंद्र सदा
💐💐💐💐💐💐💐
🙏🏻🌈🌈😇😇🙏🏻

Thank You for writing. Please keep in touch. Avtar Meher Baba Ki Jai Dr. Chandrajiit Singh

3 टिप्‍पणियां:

  1. निवेदन:
    कृपया लेख सम्बन्धी अपने विचार और सुझाव कमेंट बॉक्स में अंकित कर प्रोत्साहित करें।

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  2. उत्तर
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय हितेश भैया, सादर प्रियतम अवतार मेहेरबाबा, जय जिनेंद्र सदा 💐💐

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