माता पिता से प्राप्त
अनुवांशिक आर.बी.सी (लाल रक्त कोशिका) विकार के कारण शिशुओं, बच्चों और वयस्कों में
सिकिल सैल ऐनिमीया (अर्धचंद्राकार कोशिका
रक्ताल्पता) की समस्या हो जाती है. इस समस्या से ग्रसित व्यक्ति के रक्त में
विद्यमान लाल रक्त कोशिका (आर.बी.सी.), जिसका आकार गोल अंडाकर
होता है, परिवर्तित हो कर
अर्धचंद्राकार हो जाता है. स्वस्थ्य एवं सामन्य लाल रक्त कोशिका की तुलना में, अस्वस्थ्य लाल रक्त
कोशिका चिपचिपी होती हैं. स्वस्थ लाल रक्त कोशिका (आर.बी.सी.), रक्त के साथ शरीर की
रक्त वाहिका में प्रवाहित (बहना) होती हैं जिससे शरीर के विभिन्न अंगों में
ऑक्सीजन पहुँचती है. किन्तु अर्धचंद्राकार लाल रक्त कोशिका, रक्त वाहिका में
प्रवाहित (बहना) नहीं हो पाती हैं अत: अंगो तक ऑक्सीजन पहुँचाने का कार्य नहीं कर
पाती हैं. आमतौर पर स्वस्थ्य एवं सामान्य लाल रक्त कोशिका का जीवन १२० दिन का होत
है किंतु असामान्य लाल रक्त कोशिका का जीव १० से २० दिनों का ही रहता है जिस वजह
से शरीर में रक्तताल्पता (रक्त की कमी) होने लगती है.
सिकिल सैल ऐनिमीया
(अर्धचंद्राकार कोशिका रक्ताल्पता के लक्षण :
भ्रूण में उपस्थित
हीमोग्लोबिन (लाल रक्त कोशिका में पाया जाने वाला प्रोटीन अणु) के शिशु के शरीर पर
प्रभाव के कारण शिशु के जन्म से कुछ दिनों तक इस समस्या के लक्षण दिखाई नहीं देते
किंतु कुछ समय के उपरांत, जैसे ही शिशु के शरीर
में भ्रूण में उपस्थित हीमोग्लोबिन का स्थान असमान्य हीमोग्लोबिन ले लेता है, वैसे ही सिकिल सैल
ऐनिमीया के लक्षण शिशु में दिखाई देने लगते हैं. यह लक्षण इस प्रकार हैं:
१. शिशु का कमज़ोर होना
अपेक्षित शारीरिक विकास का नहीं हो पाना.
२. रक्ताल्पता होना, थकावट महसूस करना. लाल
रक्त कोशिका का टूटना.
३. हाथ पैर में दर्द होना, सूजन आना तथा छाती में
दर्द महसूस करना.
४. आँखों से साफ नहीं
दिखना.
५. मूत्र की सघनता में कमी
होना. शरीर में पानी की कमी होना.
६. शरीर में बिल्युरुबिन
नामक तत्व का बढ़ना जिसके कारण शरीर में पीलापन आना साथ ही संक्रमण होना.
७. प्लीहा का सामन्य रूप
से कार्य नहीं कर पाना.ना. अन्य आंतरिक अंगों
का सामान्य रूप से कार्य नहीं कर पाना.
सिकिल सैल ऐनिमिया से
बचाव :
रक्ताल्पता से ग्रसित शिशु, बालक, बालिका, यवक, युवती, गर्भवती अथवा धात्री
महिला अथवा पुरुष के उपचार के बाद भी यदि स्वास्थ्य में अपेक्षित सुधार देखने को
नहीं मिले और रक्त चढ़ाने की आवश्यक्ता लगे तो यह समझा जा सकता है कि संभावना है कि
ऐसा व्यक्ति, सिकिल सैल रक्तालपता से
ग्रसित है.
ऐसे
व्यकि की जाँच विकास खंड स्तर पर स्वास्थ्य विभाग मे अस्पताल में करवाई जा सकती
है.
सिकिल सैल रक्ताल्पता से ग्रसित युवक को सिकिल सैल से ग्रसित युवती से विवाह नहीं करना चाहिये अन्यथा संतान भी सिकिल सैल रक्ताल्पता से ग्रसित होगी.
डॉक्टर से इस समय
सम्पर्क करें :
अगर
शिशु को तेज़ बुखार, चिड़चिड़ापन, शरीर
की त्वचा में पीलापन, तेज साँसें, पेट
बाहर की ओर निकलना, हाथ और पैरों में सूजन, कमज़ोरी, बेसुध
होने, आंखों में दिक्कत होना
और दौरे पड़ने की स्थिति में शिशु को तुरंत डॉक्टर को दिखायें.
सिकिल
सैल रक्ताल्पता में
ध्यान देने वाली बातें :
1. ठंड
से बचें. सिकिल सैल रक्ताल्पता से
ग्रसित शिशु, बच्चे अथवा व्यक्ति को ठंड से बचायें. ठंडे
मौसम में गर्म कपड़े धारण करवायें ठंडे पानी से स्नान नहीं करायें तथा ठंडे तापमान
का तथा ठंडी तासीर के खान- पान का सेवन नहीं करने दें. इस व्यक्ति को सर्दी, खाँसी और ज़ुखाम से
बचायें. तापमान के कम हो जाने से रक्त वाहिका संकुचित हो जाती हैं जिससे सिकिल सैल
रक्ताल्पता की समस्या बढ़ सकती है. बहुत अधिक तापमान से भी बचें.
2. प्रभावित व्यक्ति को
बहुत अधिक मेहनत अथवा कसरत नहीं करनी चाहिये जिससे शरीर में ऑक्सीजन की आवश्यक्ता
बढ़ जाये अन्यथा प्रभावित व्यक्ति को श्वाँस लेने में कठिनाई हो सकती है. थोड़ी
शारीरिक गतिविधि वह कर सकता है जिसमें उसकी साँस नहीं फूले.
3. समुद्र तल से अधिक
ऊँचाई पर नहीं जायें जहाँ ऑक्सीजन की कमी होती है अत: श्वाँस फूल सकती है.
4. पौष्टिक भोजन का सेवन
करें, नियमित रूप से पानी
पियें. पूरक फोलिक अम्ल की गोली, ५ मिलीग्राम प्रति दिन १० माह तक, ज़िंक की १० मिलीग्राम
की गोली प्रति दिन(१ से २महिने) वयस्कता तक सेवन करें.
5. ऐसे आहार का सेवन नहीं
करें
जिससे
शरीर में अम्लता बढ़े जैसे चाय, कॉफी. नशीली वस्तुयें जैसे
सिगरैट, बीड़ी, तम्बाकू, भाँग, धतूरा तथा मदिरा .
6. भोजन में सोडे का उपयोग
नहीं करें साथ ही सोडायुक्त पेय पदार्थ का सेवन भी नहीं करें जिससे विटामिन-बी का
शरीर में अवशोषण बाधित होगा.
7. रात के समय चावल, दही, खट्टी खाद्य सामग्री
एवं फलों का सेवन नहीं करें.
आहार संबंधी
सावधानियाँ :
1. सिकिल सैल ऐनीमिया से
प्रभावित व्यक्ति के लिये
प्रोटीन, ऊर्जा, कैल्शियम, विटामिन-डी, विटामिन-बी कॉम्प्लैक्स, विटामिन-सी, ज़िंक (जस्ता) और कॉपर
(ताँबा) महत्वपूर्ण पोषक तत्व हैं जिन्हें आहार अथवा पूर्क पोषक तत्व गोलियों
(स्प्लीमैंट) द्वारा ग्रहण करना चाहिये..
2. प्रतिदिन, उचित समय पर सम्पूर्ण
तथा ताज़े आहार का सेवन करें. भोजन में मौसमी एवं स्थानीय खाद्य सामग्री जैसे
सम्पूर्ण अनाज (मैदा तथा मैदे से बनी खाद्य सामग्री का सेवन नहीं करें. ), दाल, मेवे, तिलहन / तिल, रंगबिरंगी सब्ज़ियाँ और
फल, गुड़, दूध (हल्दी के साथ) तथा
दुग्ध पदार्थ का सेवन करें. खाने में मेथी दाना और मुनगा भी शामिल कर सकते हैं जो
कि कैल्शियम के अच्छे स्त्रोत हैं.
3. थाली में अधिक से अधिक
रंग के व्यंजनों को शामिल करें. घर पर पोषण गृह वाटिका लगायें जिसमें स्थानीय एवं
मौसमी, रंगबिरंगी सब्ज़ी और
फलदार वृक्ष लगायें और मौसमी और ताज़े फल सब्ज़ी घर पर ही पायें.
4. ठंड के दिनों में, स्नान करने के पूर्व
शरीर में तेल की मालिश कर के धूप तापें जिससे शरीर में विटामिन – डी का निर्माण
होगा. विटामिन –डी की उपस्थिति में
शरीर कैल्शियम को भली-भाँति अवशोषित कर सकेगा. आवश्यक्ता पड़ने पर दर्द निवारक
दवाईयों का भी उपयोग कर सक्ते हैं किंतु यह सभी उपचार अच्छे चिकित्सक के देखरेख
में ही करें.
5. ग्रसित व्यकि तथा इस
व्यक्ति की देखरेख कर रहे व्यक्ति को सिकिल सैल तथा इसके प्रबंधन विषय के बारे में
शिक्षित, जागरुक तथा प्रशिक्षित
होना ज़रूरी है.
6. सिकिल सैल रक्ताल्प्ता
ग्रसित व्यक्ति को प्रसन्न्चित्त रहना चाहिये.
7. सिकिल सैल रक्ताल्प्ता से ग्रसिक व्यक्ति को तनाव से दूर रहना चाहिये.
आग्रह ;
कृपया अपने विचार और सुझाव नीचे दिये गये कमैन्ट बॉक्स में अवश्य अंकित कर प्रोत्साहितव
करें
सादर
कृपया ध्यान दें :
उपरोक्त लेख केवल सूचनार्थ है, आवश्यकता पड़ने पर कृपया चिकित्सक से संपर्क करें.
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