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बुधवार, 21 अगस्त 2024

वर्षा ऋतु के भाद्रपद (भादों ) माह के लिए आहार-विहार

अलग-अलग छह ऋतुयें तथा बारह हिंदी मास के अनुसार प्रकृति में त्रिदोष (वातपित्त तथा कफ) का प्रभाव अलग अलग होता है जिसका प्रभाव मनुष्य के शरीर पर भी पड़ता है । आहारीय सामग्रीकिसी दोष विशेष में वृद्धि करनेकम करने अथवा सम रखने में सक्षम होती हैं । अतः आहारीय सामग्री का चुनावप्रकृति का मनुष्य के शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव को संतुलित करने के दृष्टिगत्‌ करना चाहिये ।   भारत में इस विषय पर वर्षों अनुसंधान किया गया है जिसे आयुर्वेदिक ग्रंथों में संकलित किया गया है । आहार एवं स्वास्थ्य विषय पर बुज़ुर्गों के अनुभवजन्य ज्ञान को लोकोक्तियों के रूप में भी संकलित किया गया है । इस ज्ञान का लाभ मनुष्य द्वारा स्वस्थ रहने के लिये किया जा सकता है । 

वर्तमान में वर्षा ऋतु चल रही है । आयुर्वेद के अनुसार इस ऋतु में प्रकृति में वात दोष प्रकुपित होता है तथा पित्त दोष संचित होता है । 


शरीर में वात के प्रभाव की पहचान :

1.यदि किसी व्यक्ति की अवस्था 50 वर्ष से अधिक है तो उस व्यक्ति का वात से प्रभावित होने की संभावना अधिक है ।

2. यदि जोड़ोंकमर में और हड्डियों में दर्द महसूस करते हैं तो सम्भावना है कि ऐसा मनुष्य वात से प्रभावित हो ।

3. यदि पेट में गैस बन रही हो अथवा डकार आ रही हो तो सम्भावना है कि शरीर में वात का प्रभाव हो ।


वर्षा ऋतु में वात को संतुलित करने के उपाय (आयुर्वेदिक अनुशंसायें) :

वर्षा ऋतु में वात दोष को संतुलित करने के लिये मीठेखट्टे तथा नमकीन रस (स्वाद) वाली खाद्य सामग्री का सेवन करने की अनुशंसा है तथा तीखे (मिर्चअदरकअधिक मसालेदार आहार इत्यादि)कसैले (आँवलाकच्चा अमरूदपालकमसूर आदि) तथा कड़वे (करेला और नीम आदि) रस (स्वाद) की खाद्य सामग्री के सेवन  नहीं करने की अनुशंसा है ।  


भाद्रपद माह हेतु परंपरागत तथा अनुभजन्य अनुशंसायें :

भारत में, पीढ़ी दर पीढ़ी, अनुभवजय ज्ञान हस्तांतरित किये जाने की पुरानी परंपरा है। आहार सम्बंधी ज्ञान भी इसी प्रकार हस्तांतरित हुआ। भाद्रपद माह के लिये परंपरागत रूप से प्रचलित अनुभजन्य ज्ञान इस प्रकार हैं :

१.इस माह में तिक्त रस का आहार जैसे मिर्च के सेवन की अनुशंसा है ।

२.दही तथा  दही से निर्मित होने वाले आहार के सेवन की मनाही है।

इस विषय पर और अधिक जानकारी के लिए नीचे दी गई लिंक को कृपया क्लिक करें:

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भाद्रपद माह में आहारीय सावधानी :

वर्षा ऋतु  में भाद्रपद माह प्रारम्भ हो चुका हैइस माह मेंपारम्परिक ज्ञान के अनुसार दही के सेवन की मनाही है ।


वर्षा ऋतु में जठराग्नि की स्थिति और आहार :

वर्षा ऋतु में जठराग्नि मंद होती है अतः गरिष्ठ भोजनरसोई के बाहर का भोजनबासी अथवा लम्बे समय से रखा हुआ भोजनठंडा अथवा फ्रिज में रखा  भोजनखमीर युक्त भोजन एवं मशरूमका सेवन नहीं करें ।


वर्षा ऋतु और अनाज :

वात की प्रकृति रूखी होती हैअतः रूखी आहारीय सामग्री जैसे लघु धान्य एवं मोटा अनाज, (मक्काबाजराज्वारकोदो और कुटकी आदि) का सेवन नहीं करें । वर्षा ऋतु में नये चावल का सेवन भी नहीं करना चाहिये । 


वर्षा ऋतु और दालें :

चूँकि वर्षा ऋतु में वात को बढ़ाने वाली अथ गरिष्ठ अथवा भारी दालें जैसे मसूरउड़दराजमामटरतिवड़ासोयाबीनचना और छोला आदिका सेवन नहीं करें ।  मुँहफली का सेवन भी अधिक मात्रा में नहीं करें ।


वर्षा ऋतु और सब्ज़ियाँ :

चूँकि हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ (साग आदि) पाचन में गरिष्ठ जोती हैं अतः वर्षा ऋतु में इनके सेवन से बचें । गोभियाँ (पत्ता गोभीफूल गोभी आदि ), बैंगन और मूली भी वात कारक हैं अतः इस मौसम में इनके सेवन से भी बचें ।


वर्षा ऋतु एवं जल :

वर्षा ऋतु में जल के दूषित होने की सम्भावना अधिक होती है । अतः  कच्चे पानी का सेवन नहीं करना उचित है अन्यथा पेट सम्बंधी समस्याहैजा और कॉलरा जैसी समस्या उत्पन्न हो सकती है।


वर्षा ऋतु में बरती जाने वाली सावधानियाँ :

1. सुपाच्यहल्केघर की रसोई में बने भोजन का ही सेवन करें । 

2. रात को भोजन सूर्यास्त से पहले करें । 

3. यदि लघु धान्य और मोटे अनाज का सेवन करें तो गाय के दूध से बना घी लगा कर करें । ऐसा करने से लघु धान्य एवं मोटे अनाज में स्निग्धता बढ़ेगीजिससे वात के  प्रभाव में वृद्धि नहीं होगी साथ ही पित्त भी संतुलित रहेगा ।

4. गेहूँ चूँकि स्निग्ध होता है इसलिये इस माह में गेहूँ का सेवन किया जा सकता है ।

5.   इस माह में चावल कम से कम एक वर्ष पुराना ही खायें । चावल यदि नया खायें तो पहले भून लेंफिर  खुले बर्तन में पकायें फिर सेवन करें । चावल  का सेवन दिन में ही करें । 

6.    दालों में मूँग दाल (बिना छिल्के की दाल अथवा छिल्के सहित दाल) अथवा अरहर की पतली दाल का गाय के दूध से बने घी से छौंका (बघार कर) लगा कर सेवन करें । 

7. गाय के दूध से बने घी से छौंका लगा करमूँग की दाल और पुराने अथवा भुने चावल से बनी खिचड़ी का भी सेवन कर सकते हैं ।

8. स्वच्छ जल को स्वच्छ पात्र में तब तक उबालें जब तक जल की मात्रा आधी हो जाये फिर ठंडा कर उपयोग में लें । जल को उबालते समयजल में आधा चम्मच ज़ीरा अथवा अजवाईन  अथवा दो से तीन लौंग प्रति गंज पानी में डालें और औषधीय गुणों से भरपूर जल तैयार करें और सेवन  करें जो कि पाचन को ठीक करने के लिये तथा वात को नियंत्रित करने के लिये लाभकारी होता है । 

9. खाना और पानी को ढक कर सुरक्षित स्थान पर रखें ।

10. यदि वर्षा ऋतु में साग का सेवन करना है तोपहले साग को उबालें फिर हाथ के बीच दबा कर रस निकाल कर अलग कर दें । अब साग को गाय के दूध से बने घी में भून कर सब्ज़ी बना कर सेवन कर सकते हैं ।


भाद्रपद माह  में विहार :

1. भोजन करने के पूर्व तथा पश्चात् हाथ धो कर कुल्ला अवश्य करें।

2. नाखून छोटे रखें।

3.त्वचा का ध्यान रखें।स्वच्छ जल से स्नान करें, साफ और सूखी तौलिया से शरीर पोछें तथा साफ और सूखे वस्त्र धारण करें।

4.इस समय कई लोगों को खाँसी, ज़ुखाम और मौसमी बुखार इत्यादि होता है इसलिये लोगों से हाथ न मिलायें और गले नहीं मिले। 

5. भीड़  वाली जगह जाते समय मास्क का उपयोग करें।


भाद्रपद माह और आधुनिक खाद्य विज्ञान:

चूँकि इस माह में वातावरण में अधिक

नमी और तापमान दोनों ही विद्यमान होते 

हैं अतः :

१.खाद्य पदार्थ तथा जल दोनों को ही सूक्ष्मजीव बड़ी सरलता से प्रदूषित करते हैं । इस कारण, इस माह में सिर्फ रसोई में बना ताज़ा और गर्म आहार का ही सेवन करें।

२. इस माह में खाद्य प्रसंस्करण नहीं करें अर्थात, जैम जैली, मुरब्बा और अचार इत्यादि न बनायें। 

३.भंडारित प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों बरनियों को इस माह में नहीं खोलें।


ध्यान दें:

उपरोक्त परामर्श सिर्फ स्वस्थ्य व्यक्तियों के लिये है । किसी भी प्रकार की चिकित्सा के लिये कृपया चिकित्सक से सम्पर्क करें ।


निवेदन :
कृपया लेख सम्बन्धी अपने विचार और सुझाव कमेंट बॉक्स में अंकित कर प्रोत्साहित करें।

प्रियतम अवतार मेहर बाबा की जय जय जिनेंद्र सदा
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🙏🏻🌈🌈😇😇🙏🏻
सादर 
मेहेर न्यूट्रीशन  

संदर्भ :

१.      The Ayurvedic Diet - Banyan Botanicalshttps://www.banyanbotanicals.com 

२.      Traditional methods of food habits and dietary preparations in Ayurveda, The Indian System of  Medicine: https://journalofethnicfoods.biomedcentral.com › articles

३.      Ayurveda for Everyone: https://www.youtube.com/channel/UCjKTHeGY67SWFlTnxvfdlOg

४.       Traditional Knowledge Digital Library (TKDL): http://tkdl.res.in/tkdl/langdefault/Siddha/Sid_Principles.asp?GL=Eng

Thank You for writing. Please keep in touch. Avtar Meher Baba Ki Jai Dr. Chandrajiit Singh

1 टिप्पणी:

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